हिंदुत्व में ऋण/पंच‌ऋण एवं पंचमहायज्ञ

हिंदुत्व में ऋण/पंच‌ऋण एवं पंचमहायज्ञ

शतपथ ब्राह्मण तथा मनुस्मृति में, पांच ऋणों का वर्णन है। जोनिम्नलिखित हैं-: 

  1. देव‌ऋण

  2. ऋषि ऋण

  3. पित ऋण

  4. अतिथि ऋण

  5. भूत ऋण।

देव‌ऋण-:

ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य का जन्म होता है और ईश्वर मनुष्य को जीवन के लिए आवश्यक वायु, जल, प्रकाश, ऊर्जा देता है, इसलिए मनुष्य ईश्वर का ऋणी होता है जिसे देव‌ऋण के रूप में जाना जाता है। 

ऋषि ऋण-:

ऋषि या गुरु अध्यापन के माध्यम से हमें जीवन संचालन का ज्ञान देता है, अतः एक मनुष्य ऋषि या गुरु के प्रति भी ऋणी होता है, जिसे ऋषिऋण कहा जाता है। 

पितृ ऋण-:

पिता हमें जन्म देता है तथा बच्चों का पालन पोषण करता है, उसे योग्य नागरिक बनता है, अतः एक मनुष्य पिता के प्रति ऋणी होता है जैसे पितृऋण कहा जाता है

अतिथि ऋण-:

हम अन्य लोगों के आतिथ्य को स्वीकार करके, अन्य व्यक्तियों के प्रति ऋणी हो जाते हैं, जिसे अतिथि ऋण कहा जाता है

भूत ऋण-:

हमारा शरीर तथा यह पर्यावरण पांच भूत तत्वों से मिलकर बना है, जल, अग्नि ,वायु ,पृथ्वी ,आकाश और हम इन्हीं तत्वों तथा पशु पक्षियों का उपयोग करके जीवन जी पाते हैं, इसलिए हम इन भूत तत्वों के प्रति ऋणी हो जाते हैं; जिसे भूत‌ऋण कहा जाता है। 

पंच महायज्ञ 

उपरोक्त पांचो ऋणों से मुक्त होने के लिए, मनुस्मृति तथा हिंदू साहित्य में पांच महायज्ञ बताए गए हैं-:

  • देवी यज्ञ 

  • ब्रह्म यज्ञ 

  • पितृ यज्ञ 

  • मनुष्य यज्ञ 

  • भूत यज्ञ

देवी यज्ञ -;

देव‌ऋण से मुक्ति के लिए देवयज्ञ किया जाता है,

  • इसके अंतर्गत विभिन्न देवी देवताओं की पूजा आराधना, यज्ञ, हवन आदि किए जाते हैं। 

ब्रह्म यज्ञ -:

ऋषि-ऋण से मुक्त होने के लिए ब्रह्म-यज्ञ किया जाता है,

  • इसके अंतर्गत गुरुओं के ज्ञान का प्रसार करने के साथ-साथ गुरु या अध्यापक का सेवा-सत्कार की भी शामिल है। 

पितृ यज्ञ -:

पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए पितृ-यज्ञ का प्रावधान है। 

  • इसके अंतर्गत मातृ-पितरों के प्रति तर्पण, श्राद्ध किया जाता है। 

  • वंश परंपरा को आगे बढ़ाया जाता है। 

मनुष्य यज्ञ -:

अतिथि रन से मुक्त होने के लिए मनुष्य-यज्ञ किया जाता है। 

  • इसमें अतिथियों का आदर-सत्कार किया जाता है तथा भंडारा आदि कराया जाता है। 

भूत यज्ञ-:

भूत ऋण से मुक्त होने के लिए भूत-यज्ञ का प्रावधान है। 

  • इसके अंतर्गत आसपास के पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के प्रति अहिंसा का भाव रखते हुए उनके संरक्षण एवं संवर्धन पर ध्यान दिया जाता है।

पंच महायज्ञ का महत्व -:

  • देवयज्ञ का महत्व- आध्यात्मिकता का विकास। 

  • ब्रह्म यज्ञ का महत्व- ज्ञान परंपरा आगे बढ़ाने में सहायक। 

  • पितृ यज्ञ का महत्व-वंश परंपरा आगे बढ़ाने तथा समाजीकरण में उपयोगी। 

  • मनुष्य यज्ञ का महत्व- आपसे सहचर एवं सहयोग बढ़ाने में सहायक। 

  • भूत यज्ञ का महत्व- पर्यावरण संरक्षण में सहायक। 

  • इसके अतिरिक्त नैतिकता के विकास एवं अंतिम रूप से मोक्ष प्राप्ति में भी सहायक है। 

 

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