भारत में औद्योगीकरण
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Toggleऔद्योगीकरण का अर्थ एवं परिभाषा-:
“औद्योगीकरण का तात्पर बड़े-बड़े उद्योगों का विकास तथा लघु कुटीर उद्योगों के स्थान पर बड़े पैमाने की मशीनरी व्यवस्था से है” — संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार।
-: भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ 1854 से माना जाता है, क्योंकि 1854 में मुंबई में पहली सफल कपड़ा मिल स्थापित की गई थी।
औद्योगीकरण के लक्षण/विशेषताएं-:
नवीन तथा बड़े उद्योगों की स्थापना।
हाथ की तुलना में मशीनों से उत्पादन।
श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण।
मानव शक्ति की तुलना में (जड़ शक्ति -: कोयला, पेट्रोल, परमाणु ऊर्जा) का प्रयोग।
प्राचीन सामाजिक मान्यताओं विश्वासों में कमी।
आर्थिक उन्नति पर विशेष बल।
औद्योगीकरण के कारक-;
नवीन मशीनों का आविष्कार होना।
भाव शक्ति (परमाणु शक्ति, जल ऊर्जा) का प्रयोग।
नई उत्पादन विधियों का विकास।
जनसंख्या वृद्धि; के कारण मांग बड़ी, मांग बढ़ने से श्रम आपूर्ति बड़ी, श्रम आपूर्ति बढ़ने से उत्पादन बढ़ा।
उदारीकरण – सरकार द्वारा आर्थिक प्रतिबंध घटाएं जाने से निजी क्षेत्र के द्वारा अधिकरण को बढ़ावा दिया गया।
हरित क्रांति का प्रभाव; इससे कृषि उत्पादन तेजी से बड़ा, परिणाम स्वरुप कच्चे माल की आपूर्ति बड़ी।
संचार एवं यातायात के साधनों का तीव्र विकास आदि।
औद्योगीकरण का प्रभाव-:
सकारात्मक प्रभाव -:
प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
सामाजिक बंधनों में कमी।
गरीबी, भुखमरी में कमी।
तार्किकता को बढ़ावा मिला।
अंधविश्वासों में कमी।
आधुनिक सुविधाओं (जैसे-A.C. आदि ) को बढ़ावा।
नकारात्मक प्रभाव-
सामाजिक जीवन पर-नकारात्मक प्रभाव-:
संयुक्त परिवारों का विघटन
कर्ता या मुखिया की भूमिका का ह्रास।
आपसी संबंधों की मधुरता में कमी।
मानवतावादी भावना में गिरावट।
विवाह-विच्छेद के मामलों में वृद्धि।
आर्थिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव-:
हस्तशिल्पों का पतन।
श्रमिकों का शोषण को बढ़ावा, क्योंकि श्रमिकों से मशीनों की भांति काम करवाया जाता है।
बेरोजगारी में वृद्धि (मशीनीकरण के कारण।
वर्ग संघर्ष की स्थिति को बढ़ावा।