औद्योगिक समाज में वर्ग

औद्योगिक समाज में वर्ग 

वर्ग का अर्थ-:

वर्ग व्यक्तियों का वह समूह होता है, जिसकी सामान सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक प्रस्थिति होती है। 

वर्ग की विशेषताएं-:

  • सदस्यता- वर्ग की सदस्यता जन्मजात ना होकर , योग्यता या कार्य आधारित होती है। 

  • समान स्थिति- एक वर्ग के लोगों की लगभग एक समान सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति होती है। 

  • वर्गीय-चेतना-: प्रत्येक वर्ग के लोगों में आपसी वर्गीय चेतन होती है। 

  • पिरामिड संरचना- वर्ग की संरचना पिरामिडनुमा होती है। 

  • खुली व्यवस्था- जाति की तुलना में वर्ग एक खुली व्यवस्था है; वर्ग में, एक वर्ग का व्यक्ति दूसरे वर्ग में आ जा सकता है। 

  • कम स्थायित्व- वर्ग उपेक्षाकृत जाति की तुलना में काम स्थाई होते हैं। 

वर्ग का विभाजन-:

आर्थिक आधार पर-

  • उच्च वर्ग-उद्योगपति एवं पूंजीपति शामिल हैं। 

  • मध्यम वर्ग – इसके अंतर्गत डॉक्टर ,इंजीनियर ,नौकरशाह शामिल हैं। 

  • निम्न वर्ग- इसके अंतर्गत मजदूर एवं श्रमिक शामिल हैं।  

कार्य के आधार पर -:

  • बुद्धिजीवी वर्ग – बुद्धिजीवी वर्ग एक शिक्षित वर्ग है, जिसके अंतर्गत डॉक्टर ,वकील, इंजीनियर ,दार्शनिक आदि आते हैं। 

  • शासक वर्ग – इसके अंतर्गत राजनेता एवं पदाधिकारी शामिल है। 

  • नौकरशाह वर्ग – इसके अंतर्गत नौकरी करने वाले कर्मचारी शामिल है। 

  • श्रमिक वर्ग – इसके अंतर्गत मजदूरी करने वाली मजदूर शामिल है। 

  • कृषक वर्ग –इसके अंतर्गत कृषि करने वाली कृषक शामिल है

  • व्यापारी वर्ग- व्यापार करने वाली व्यापारी शामिल हैं। 

वर्ग संघर्ष -:

“दो वर्गों के मध्य अपने वर्गीय हितों को लेकर संघर्ष या विवादपूर्ण स्थिति होना, वर्गीय-संघर्ष कहलाता है”। 

वर्ग संघर्ष के कारण-:

  • कमजोर वर्गों का शोषण किया जाना। 

  • कमजोर वर्ग अपने आर्थिक खेतों की पूर्ति हेतु, संघर्ष करता है। 

  • विभिन्न वर्गों में वैचारिक मतभेद की स्थिति होना। 

  • आर्थिक असमानता की स्थिति। 

  • शान द्वारा विभिन्न वर्गों के मध्य पक्षपात किया जाना। 

वर्ग संघर्षका प्रभाव-

  1. कार्यों में गतिरोध (हड़ताल के कारण)। 

  2. श्रमिकों द्वारा तोड़फोड़ से संपत्ति को नुकसान। 

  3. संगठन की कर कुशलता में कमी। 

  4. संगठन में आपसी सहयोग का अभाव। 

कार्ल मार्क्स का वर्ग सिद्धांत-:

कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक दास कैपिटल तथा कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में वर्ग संघर्ष की अवधारणा दी है। 

कार्ल मार्क्स के अनुसार- समाज में दो प्रकार के वर्ग पाए जाते हैं-:

  • पूंजीपति वर्ग – वह वर्ग जिसे उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व होता है, इसे बुर्जुआ वर्ग भी कहा जाता है। 

  • श्रमिक वर्ग- वह वर्ग जो अपना श्रम बेचकर जीवन यापन करता है, इसे सर्वहारा वर्ग भी कहा जाता है। 

कार्ल मार्क्स की वर्ग संघर्ष के सिद्धांत की विशेषताएं-:

  1. इतिहास में हर काल में दो विरोधी वर्ग थे-एक शासक वर्ग दुसरा शोषक वर्ग। 

  2. शोषक वर्ग का उत्पादन के साधनों पर, स्वामित्व होता है। 

  3. शोषित वर्ग श्रम बेचकर अपना जीवन यापन करता है। 

  4. जब शोषण की नीतियां शोषितों के लिए असहनीय हो जातीं हैं, तो शोषित वर्ग शोषक वर्ग पर हमला कर देता है। 

  5. और इस वर्ग संघर्ष में सदैव सर्वहारा अर्थात शोषित वर्ग विजय होता है। 

  6. अंत में साम्यवाद की स्थापना हो जाती है। 

कार्ल मार्क्स के वर्ग सिद्धांत की आलोचना –

  • उनके अनुसार इतिहास में हमेशा वर्ग संघर्ष रहता है, जबकि ऐसा नहीं है। 

  • उनके अनुसार केवल दो वर्गों का ही अस्तित्व है, जबकि वर्तमान में दो से अधिक वर्ग हैं। 

  • उन्होंने सामान्य के लिए संघर्ष या क्रांति को बढ़ावा दिया, जो अनुचित है।  

  • उनका वर्गीय सिद्धांत कल्पना पर आधारित है, क्योंकि उनके अनुसार क्रांति के बाद शांति की स्थिति हो जाती है, जबकि ऐसा निश्चित नहीं है। 

 

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