शिक्षा के स्तर

[ शिक्षा के स्तर ]

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[ शिक्षा के स्तर ]

मानव जीवन एवं समाज की आवश्यकता के अनुसार शिक्षाविदों ने शिक्षा को तीन स्तरों में विभाजित किया है

  • प्रारंभिक शिक्षा (6 वर्ष से 14 वर्ष तक की शिक्षा)

  • माध्यमिक शिक्षा (14 वर्ष से 18 वर्ष तक की शिक्षा)

  • उच्च शिक्षा। 

प्रारंभिक शिक्षा 

प्रारंभिक शिक्षा का तात्पर्य विद्यार्थी को सबसे पहले (अर्थात प्रथम स्तर पर) प्राप्त होने वाली शिक्षा से है। 

और प्रारंभिक शिक्षा मुख्य शिक्षा होती है क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा ही आगे की शिक्षा का आधार या नींव होती है, तथा प्रारंभिक शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। 

प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य-:

  • बच्चे का शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक विकास करना। 

    • शारीरिक -पोषण तथा पोषण की शिक्षा देना)

    • मानसिक -सोचने समझने तथा याद रखना की क्षमता विकसित करना)

    •  बौद्धिक -तर्क वितर्क क्षमता बढ़ाना) 

  • बच्चे का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना ,अर्थात उसे अच्छा आचरण करने की अच्छा चरित्र रखने की शिक्षा देना। 

  • देश की संस्कृति एवं परंपराओं के प्रति आदर एवं निष्ठा का भाव विकसित करना। 

  • बच्चों के अंदर विश्व बंधुत्व की भावना, सामूहिक भावना तथा एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना विकसित करना। 

  • बालकों को उनकी मातृभाषा एवं आसपास के पर्यावरण का ज्ञान कराना। 

  • भविष्य की शिक्षा के लिए आधार नींव तैयार करना।

सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा

सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा का तात्पर्य 6 से 14 वर्ष तक के सभी वर्ग, सभी क्षेत्र के बच्चों को उपयुक्त प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करवाने से है। 

सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा का महत्व

  • सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा देश के समस्त बच्चों के मानसिक शारीरिक और बौद्धिक विकास में सहायक है। 

  • सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा बच्चों के मानवता पूर्ण नैतिक आचरण के विकास में सहायक है। 

  • सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा समाजीकरण का माध्यम है। 

  • सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा बच्चों को मातृभाषा एवं आसपास के पर्यावरण का ज्ञान कराने में सहायक है। 

  • भविष्य की शिक्षा की नींव तैयार करने में सहायक है। 

सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियां

  • निकटतम दूरी पर पर्याप्त शिक्षण संस्थाओं की कमी। 

  • शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त आधारभूत संरचना जैसे प्रयोगशाला पुस्तकालय जल व्यवस्था की कमी। 

  • उपयुक्त तरीके से समझाने वाले प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी। 

  • शैक्षिक पाठ्यवस्तु का आसपास के वातावरण से कम जुड़ाव होना। 

  • सामाजिक रूढ़ियों के कारण बालिकाओं को रोज स्कूल ना भेजना बल्कि उनसे घरेलू काम करवाना। 

  • परिवार पलायन की प्रवृत्ति के कारण बच्चों के स्कूल छोड़ने की समस्या। 

समाधान-: 

  • शिक्षा में व्यय बढ़ाकर, शिक्षण संस्थाओं का विस्तार किया जाए ताकि सभी बच्चों को निकटतम दूरी पर स्कूल प्राप्त हो सके। 

  • शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त आधारभूत संरचना जैसे पुस्तकालय जल व्यवस्था प्रयोगशाला आदि की व्यवस्था की जाए। 

  • शिक्षकों को उपयुक्त तरीके से समझाने या पढ़ाने नहीं बल्कि सिखाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। 

  • शैक्षिक पाठ्यक्रम को ऐसीइस प्रकार से बनाया जाए जिसे पढ़कर बच्चे आसपास की घटनाओं को आसानी से समझ सके। 

  • स्कूल छोड़ने की प्रगति को कम करने के लिए शैक्षिक संस्थानों में बच्चों को खेल खिलौने तथा उपयुक्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जाए। 

माध्यमिक शिक्षा-: 

प्रारंभिक शिक्षा और उच्च शिक्षा के मध्य की शिक्षा को माध्यमिक शिक्षा कहते हैं सामान्य रूप से माध्यमिक शिक्षा का तत्वपर 14 से 18 वर्ष आयु के बच्चों की शिक्षा से है। 

मध्यमिक शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के बीच की कड़ी का काम करती हैं। 

माध्यमिक शिक्षा की कुछ समस्याएं हैं

  • विषयवार शिक्षकों का अभाव। 

  • प्रयोगशाला एवं पुस्तकालय की दयनीय स्थिति। 

  • कोचिंग सेंटर तथा गाइडों पर निर्भरता। 

  • कक्ष की क्षमता से अधिक विद्यार्थियों की संख्या होना। 

  • अच्छे अंक लाने के लिए विद्यार्थियों पर अनावश्यक दबाव होना।

प्रारंभिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए किए गए प्रयास-: 

संवैधानिक उपबंध-: 

अनुच्छेद 21 (क) -: इसके तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। 

अनुच्छेद 45-: इस अनुच्छेद के तहत राज्य का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्रदान करें। 

अनुच्छेद 51 (क) इस अनुच्छेद के तहत माता-पिता एवं पालक का यह मूल कर्तव्य है कि वह अपनी 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराएं। 

विभिन्न सरकारी कार्यक्रम-: 

सर्व शिक्षा अभियान-: 

यह अभियान भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000-01 में चलाया गया था। 

इस अभियान का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष तक के सभी वर्ग के सभी स्थान के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराना है। 

इस अभियान के तहत प्राथमिक स्कूलों की स्थापना तथा प्राथमिकस्कूलों में पर्याप्त सामग्री तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की पूर्ति की जाती है। 

इस अभियान का नारा था सब पढ़े सब बढ़े। 

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान-: 

यह अभियान भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में चलाया गया , इस अभियान का मुख्य उद्देश्य 14 से 18 वर्ष तक के सभी वर्ग के सभी स्थानों के बच्चों को माध्यमिक शिक्षा(कक्षा 9वीं से 12वीं) उपलब्ध करवाना है,

इस अभियान के तहत भी माध्यमिक स्कूलों की स्थापना की जाती है तथा माध्यमिक स्कूलों में पर्याप्त शिक्षण सामग्री एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की पूर्ति की जाती है। 

इस अभियान का नारा है -:बढ़े चलो बढ़े चलो। 

समग्र शिक्षा अभियान

वर्ष 2018 में भारत सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान को एकीकृत करके समग्र शिक्षा अभियान प्रारंभ किया ।

जिसका उद्देश्य 6 वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक के सभी बच्चों(सभी पर भी सभी धर्म सभी जाति सभी स्थान के बच्चों) को प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध करवाना है। 

इस अभियान का नारा है -: सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा। 

कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना-: 

इसी अभियान के तहत वंचित एवं गरीब परिवारों बालिकाओं को शिक्षा एवं आवास की सुविधा उपलब्ध करवाने हेतु कस्तूरबा गांधी विद्यालय योजना चलाई जा रही ,जिसकी शुरुआत 2005 में हुई, इन विद्यालयों में 75% अनुसूचित जाति जनजाति बालिकाओं के लिए आरक्षित हैं एवं 25% सीटें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की बालिकाओं के लिए आरक्षित है। 

मध्यान्ह भोजन योजना

केंद्र सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत 1995 में की गई। 

इस योजना का उद्देश्य प्रारंभिक एवं माध्यमिक स्तर के बच्चों का नामांकन ठहराव एवं पोषण स्तर बढ़ाना है 

इस योजना के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों को स्कूल के अंदर ही पका पकाया दोपहर का भोजन प्रदान किया जाता है। 

मध्य प्रदेश में माध्यमिक एवं प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति-: 

  • मध्य प्रदेश में, वर्ष 2018-19 के अनुसार मध्यप्रदेश में शासकीय प्राथमिक (1-8)विद्यालयों की कुल संख्या 80807 थी तथा शासकीय माध्यमिक विद्यालयों (8-12)की संख्या 30228 थी। 

  • जिसमें से प्राथमिक शालाओं में कुल नामांकन 77.30 लाख थे । एवं माध्यमिक शाला में कुल नामांकन 43.63 लाख थे। 

  • प्राथमिक शाला में कुल नामांकन(77.30 लाख) में से लगभग 40लाख बालक एवं 36‌.92 लाख बालिकाओं के नामांकन थे। 

  • वर्ष 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में प्राथमिक स्तर पर विद्यालय छोड़ने की 4.2 प्रतिशत तथा माध्यमिक स्तर पर विद्यालय छोड़ने की दर 4.7 प्रतिशत थी। 

 

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा के उन्नयन हेतु चलाए जाने वाली सरकारी कार्यक्रम-: 

मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा के विकास विस्तार के लिए स्कूली शिक्षा विभाग ,मध्यप्रदेश शासन कार्यरत है।  

पढो- कमाओ योजना-: 1978

इस योजना का उद्देश्य बालक बालिकाओं को स्वरोजगार के लिए तैयार करना था। 

इस योजना के तहत माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को हस्तकला, फर्नीचर, स्कूल गणवेश आदि के निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है। 

ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड-1986

यह योजना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1986 में चलाई गई इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक प्राथमिक शाला में  शिक्षक, पक्के कमरे, बरामदे , पुस्तकालय एवं ब्लैक बोर्ड की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। 

म.प्र.शिक्षा गारंटी योजना-:1997

इस योजना के तहत ऐसे अनुसूचित जाति जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में जहां 25 से अधिक स्कूली बच्चे तथा ऐसे सामान्य क्षेत्र जहां 40 से अधिक स्कूली बच्चे रहते हैं वहां पर सामुदायिक मांग पर गारंटी के साथ 1 किलोमीटर के दायरे में 90 दिन के अंदर सरकारी स्कूल प्रारंभ किया जाता है। 

स्कूल चले हम अभियान-: 2001

इस अभियान का उद्देश्य 6 से 18 वर्ष अर्थात पहली से बारहवीं तक ् के सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा देने के लिए उनका नामांकन करवाना है। 

यह अभियान जन आंदोलन का रूप ले लिया है इस अभियान में सामुदायिक भागीदारी है जिसमें जनप्रतिनिधि शिक्षा केंद्र शासकीय एवं अशासकीय संस्थानों के कर्मचारी बच्चों के नामांकन के लिए उनके माता-पिता को प्रेरित करते हैं। 

Note-: यह अभियान भले ही 2001 में शुरू हो गया किंतु यह 2009-10 में लागू किया गया। 

गांव की बेटी योजना-: 2005

इस योजना के तहत गांव की ऐसी बालिकाएं जो 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई है उन्हें  उच्च शिक्षा हेतु प्रतिमाह ₹500 की राशि प्रदान की जाती है। 

प्रतिभा किरण योजना-: 2007

इस योजना के तहत शहर की ऐसी छात्रा जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही हो तथा जिसमें कक्षा 12वीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की हो, उसे गांव की बेटी योजना की भाती परंपरागत उच्च शिक्षा (b.a.) करने पर ₹300 प्रति माह तथा तकनीकी एवं चिकित्सीय उच्च शिक्षा के लिए ₹750 प्रति माह प्रदान किए जाते हैं। 

मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना-: 2017

इस योजना के तहत 12वीं कक्षा में अधिकतम अंक लाने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए 25000 की राशि एवं निशुल्क उच्च शिक्षा प्रदान की जाती। 

हम छू लेंगे आसमान योजना-:2018

इस योजना का उद्देश्य 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को उनके भविष्य के संबंध में विभिन्न ने कैरियर ऑप्शन तथा आगे की पढ़ाई के लिए उपयुक्त अकादमी की सलाह देना है। 

इसके तहत अनेकों काउंसलिंग संस्थान स्थापित किए गए जहां पर 12वीं कक्षा उत्तीर्ण छात्रों को उनके कैरियर से संबंधित मार्गदर्शन दिया जाता है। 

रुक जाना नहीं योजना-: 

इस योजना के तहत मध्यप्रदेश के 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षा में प्रथम बार में असफल होने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा का एक और बार मौका दिया जाता है ताकि वे पढ़ाई ना छोड़े। 

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009-: 

6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से एवं निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए यह अधिनियम अगस्त 2009 को पारित किया गया। किंतु यह 2010 में लागू हुआ। 

इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं

  • 6 से 14 वर्ष तक की प्रत्येक बच्चे को उसके निवास क्षेत्र के 1 किलोमीटर के भीतर प्राथमिक स्कूल तथा 3 किलोमीटर के भीतर माध्यमिक स्कूल उपलब्ध होना चाहिए अन्यथा उस बच्चे को छात्रावास या वाहन की सुविधा दी जाए। 

  • 6 से 14 वर्ष तक की प्रत्येक बच्चे को स्कूल में निशुल्क दाखिला लेने का अधिकार होगा। 

  • 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को स्कूल द्वारा निकाला नहीं जा सकता। 

  • स्कूलों में शिक्षकों एवं कक्षाओं की पर्याप्त संख्या रहेगी अर्थात प्रत्येक 30 बच्चों पर एक शिक्षक होगा। 

  • सरकारी शिक्षक निजी शिक्षण संस्थान नहीं चलाएगा। 

  • किसी भी बच्चे को मानसिक यातना या शारीरिक दंड नहीं दिया जाएगा। 

 इस अधिनियिम को लागू करने के लिए पंचायत स्तर पर ,तहसील स्तर पर तथा जिला स्तर पर शिक्षा अधिकारियों की नियुक्ति की गई। 

उच्च शिक्षा-: 

उच्च शिक्षा का तात्पर्य माध्यमिक शिक्षा के बाद अर्थात 12वीं के बाद की शिक्षा से है। जैसे-: स्नातक की शिक्षा परास्नातक की शिक्षा व्यवसायिक शिक्षा प्रशिक्षण आदि। 

उच्च शिक्षा अनुसंधान एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा है। 

उच्च शिक्षा का देश के विकास में अहम रोल होता है क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी एक सफल संचालक उद्योगपति या कर्मचारी बनता है, किंतु एक रिपोर्ट के अनुसार देश में उच्च शिक्षा के शोध पर 0.8% हिस्सा ही खर्च होता है जबकि कम से कम 2% खर्च होना चाहिए। 

हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में उच्च शिक्षण संस्थान तो बहुत है किंतु गुणवत्तापूर्ण नहीं है इस संदर्भ में शशि थरूर ने कहा है कि”भारत में उच्च शिक्षित लोग संख्या में तो अधिक है लेकिन गुणवत्ता में नहीं”

भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति-: 

वर्ष 2018-19 के अनुसार भारत में कुल विश्वविद्यालय की संख्या 993 है। जिसमें से 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

भारत में उच्च शिक्षा से संबंधित प्रमुख समस्याएं

  • गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षण संस्थाओं की कमी-कुछ गिने-चुने नामी कॉलेज में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है बाकी केवल नाम मात्र के हैं। 

  • विश्वविद्यालयों में शोध के लिए पर्याप्त अधोसंरचना की कमी जैसे प्रयोगशाला की कमी ,कंप्यूटर व्यवस्था की कमी,  शोध के लिए परिवहन व्यवस्था की कमी ,लाइब्रेरी की कमी। 

  • शिक्षित एवं योग्य शिक्षकों की कमी। 

  • सिखाने की बजाय केबल डिग्री देने वाले विद्यालयों की अधिकता। 

  •  मातृभाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा का अभाव। 

  • उच्च शिक्षण संस्थानों की फीस अधिक होने से अनेकों गरीब विद्यार्थी पढ़ने में असमर्थ होते हैं। 

समाधान-: 

  • ऐसे उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों की मान्यता समाप्त कर दी जाए जो केवल डिग्री प्रदान करते हैं सिखाते नहीं। 

  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाए तथा उनमें पर्याप्त आधोसंरचना जैसे प्रयोगशाला कंप्यूटर व्यवस्था शोध के लिए परिवहन व्यवस्था लाइब्रेरी की व्यवस्था हो। 

  • योगी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय शैक्षिक सेवा की शुरुआत की। 

  • क्षेत्रीय मातृभाषा में भी उच्च स्तरीय शिक्षक की पुस्तकें उपलब्ध करवाई जाए ताकि क्षेत्रीय विद्यार्थियों को कांसेप्ट को समझने में कठिनाई ना हो। 

  • विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बहाल रखी जाए।

उच्च शिक्षा के विस्तार हेतु भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास-: 2013

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान-: 

इस अभियान की शुरुआत वर्ष 2013 में केंद्र सरकार ने की थी। 

इस अभियान का उद्देश्य

  •  उच्च शिक्षण संस्थानों का विकास व विस्तार करना 

  • वहां पर कौशल विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना 

  • तथा sc-st के लोगों, महिलाओं एवं निशक्त जनों को उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाना है। 

इस अभियान के तहत राज्य के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को विकास व विस्तार हेतु केंद्र सरकार और राज्य सरकार(65:35 )द्वारा आवश्यक वित्त प्रदान किया जाता है। 

ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क (ज्ञान)2015

ज्ञान कार्यक्रम का शुभारंभ वर्ष 2015 को केंद्र सरकार द्वारा किया गया। 

इस कार्यक्रम का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। 

इसके अंतर्गत देश एवं विदेश के श्रेष्ठ शिक्षाविदों का समूह बनाकर उच्च शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए नवीन पाठ्यक्रम तैयार करके उसे विश्वविद्यालयों में लागू किया जाता है। 

एनुअल रिफ्रेशर प्रोग्राम इन टीचिंग-:(arpit)

अर्पित प्रोग्राम के माध्यम से उच्च शिक्षा के शिक्षकों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है। ताकि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। 

इंपैक्टफुल पॉलिसी रिसर्च इन सोशल साइंस (impress)योजना -:2018

इस योजना का उद्देश्य सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रभावी शोध को बढ़ावा देना है।

भारत में पढ़ो कार्यक्रम-: 2018

इस कार्यक्रम का उद्देश्य विदेशी छात्रों को भारतीय संस्थानों में पढ़ने के लिए प्रेरित करना है। 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (ugc)-: 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना 1956 में, तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की पहल से की गई थी। 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है किंतु इसके अन्य क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं जैसे एक क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल में भी स्थित है

इसके कार्य-: 

  • संपूर्ण देश के विश्वविद्यालयों के मध्य समन्वय बैठाना। 

  • विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना तथा निरीक्षण संबंधी कार्य करना। 

  • विश्वविद्यालय को आवश्यक आर्थिक अनुदान प्रदान करना। 

  • विश्वविद्यालयों से संबंधित उपयुक्त नियम बनाना।

  • विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम परीक्षा प्रणाली अनुसंधान संबंधी कार्यों पर उपयुक्त सलाह देना तथा इनसे संबंधित अवैज्ञानिक पद्धतियों पर रोक लगाना। 

मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा की स्थिति-: 

मध्य प्रदेश प्राचीन समय से ही उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है , क्योंकि मध्यप्रदेश में उज्जैन के संदीपनी आश्रम धार की भोजशाला जैसे शिक्षण संस्थान रहे हैं जहां पर दूर-दूर से शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। 

वर्तमान समय में मध्यप्रदेश में

2 केंद्रीय विद्यालय,-: डॉ हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी सागर, इंदिरा गांधी नेशनल ट्राईबल यूनिवर्सिटी अनूपपुर

24 राज्य विश्वविद्यालय, 30 निजी विश्वविद्यालय,

500 शासकीय विश्वविद्यालय, 

तथा 483 अशासकीय महाविद्यालय हैं। 

इसके अलावा वर्ष 2008 में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 3 आदर्श शासकीय महाविद्यालय में किए गए। 

मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा के विकास के लिए मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग कार्यरत है।

चिकित्सा शिक्षा

चिकित्सा शिक्षा का तात्पर्य उच्च शिक्षा से है जो चिकित्सीय कार्य करने अर्थात लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ करने के लिए दी जाती है। उसे चिकित्सा शिक्षा कहते हैं। 

चिकित्सा शिक्षा स्वास्थ्य व्यवस्था की इमारत का पत्थर होता है। 

भारत में चिकित्सा शिक्षा की समस्याएं-: 

  • भारत में चिकित्सा शिक्षा देने वाले मेडिकल कॉलेज मुख्यत: शहरी क्षेत्रों में ही है ग्रामीण क्षेत्र में नहीं है जिस कारण से ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़े शहरों या विदेशों में जाना पड़ता है जिससे उनका अधिक व्यय होता है और गरीब विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता। 

  • चिकित्सा शिक्षा देने वाले शिक्षक डिग्री के आधार पर चयनित होते हैं ना कि नैदानिक एक अनुभव के आधार पर, अतः इसलिए केवल कागजी रूप से गुणवान होते हैं ना कि व्यवहारिक रुप से परिणाम स्वरूप मेडिकल कॉलेजों में कुशल शिक्षकों का अभाव रहता है। 

  • वर्तमान आवश्यकता के अनुसार सिलेबस अपडेट ना होना विद्यार्थियों को पर्याप्त व्यावहारिक प्रशिक्षण ना दिया जाना।

  • गुणवत्तापूर्ण मेडिकल कॉलेजों की संख्या कम है जबकि व्यवसाय पर आधारित निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्या अधिक है जो सिखाते नहीं है केवल भारी रकम लेकर डिग्रियां देते हैं। जिससे अकुशल एवं भ्रष्ट डॉक्टर निकल कर आते हैं। 

  • चिकित्सा शिक्षा में सामाजिक जवाबदेहिता का अभाव।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग-: 

चिकित्सा शिक्षा का बेहतर विनियमन करने के लिए तथा सबके लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं पहुंचाने के उद्देश्य केन्द्रसरकार ने 63 वर्ष पुराने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के स्थान पर 2019 को नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन किया। 

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के कार्य

  • देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के मध्य सामंजस्य बैठाना। 

  • सभी मेडिकल कॉलेजों की शिक्षा से संबंधित उपयुक्त नियम बनाना उनका मूल्यांकन करना,

  • मेडिकल कॉलेजों को मान्यता प्रदान करने तथा उनका निरीक्षण करना।

मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा-: 

मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की शुरुआत 1878 ईस्वी में हुई, क्योंकि इसी वर्ष मध्यप्रदेश के इंदौर में KEH मेडिकल स्कूल की स्थापना की गई। 

तथा मध्य प्रदेश के गठन के उपरांत 1956 में मध्यप्रदेश में चार स्थानों पर चिकित्सा महाविद्यालय खोले भोपाल, जबलपुर, रीवा ,ग्वालियर। इसके बाद समस्या में पानी को मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की गई,

इस प्रकार वर्तमान में मध्य प्रदेश में 7 शासकीय मेडिकल कॉलेज, 3 शासकीय वेटनरी कॉलेज, एक शासकीय होम्योपैथिक कॉलेज तथा 7 शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय संचालित हैं। 

एवं 1995 में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को विभाजित करके अलग से चिकित्सा शिक्षा विभाग का गठन किया गया जो मध्यप्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की सर्वोच्च संस्था है।

तकनीकी शिक्षा-: 

तकनीकी शिक्षा का तात्पर्य उस शिक्षा से है जो गणित एवं विज्ञान के सिद्धांत पर आधारित, तकनीकी ज्ञान से संबंधित होती है। जैसे-: इंजीनियरिंग की शिक्षा, प्रौघोगिकी की शिक्षा ,वस्तुकला की शिक्षा। 

तकनीकी शिक्षा कौशल विकास करके ,औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में सहायक है ।

भारत में तकनीकी शिक्षा-: 

वर्तमान में भारत में तकनीकी शिक्षा के नियोजन की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (aicte)है। 

और वर्तमान में भारत में तकनीकी शिक्षा के लिए 23 आईआईटी, 30 एनआईटी, तथा अनेकों आईआईआईटी संचालित है। 

उपरोक्त तथ्य से स्पष्ट है कि भारत में तकनीकी शिक्षा के लिए व्यवस्थित ढांचा मौजूद है किंतु यह ढांचा अभी भी गुणवत्तापूर्ण नहीं है। यही कहा है कि विश्व के 100 टॉप विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का एक भी संस्थान नहीं है। 

तकनीकी शिक्षा से संबंधित समस्याएं या चुनौती-: 

  • गुणवत्तापूर्ण पर्याप्त तकनीकी शिक्षण संस्थानों की कमी।  

  • तकनीकी संस्थाओं में बुनियादी आधारभूत संरचना एवं सुविधाओं जैसे लैब, तकनीकी सिखाने वाले यंत्र आदि की कमी है। 

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता रखने वाली शिक्षकों की कमी। 

  • मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा की असुविधा। 

  •  आईआईटी करने के बाद ज्यादातर विद्यार्थी विदेशों में नौकरी करते हैं ना कि देश में जिससे देशी प्रतिभा एवं ज्ञान का पलायन होता है। 

  • भारत में शैक्षिक संस्थानों का उद्योग के साथ उपयुक्त एवं सहयोगात्मक संबंध नहीं है जैसा कि अमेरिका जैसे अन्य विदेशों में है।  जिसके परिणाम स्वरूप इंजीनियरिंग इन आईआईटी करने वाली बंदे भी बेरोजगार रह जाते हैं।

मध्यप्रदेश में तकनीकी शिक्षा

तकनीकी शिक्षा मानव संसाधन को कुशल  मानव संसाधन बनाकर ओधोगिक विकास में सहायक होती है अतः मध्यप्रदेश में भी तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है वर्तमान में मध्यप्रदेश में 8 शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय संचालित है। तथा मध्य प्रदेश के इंदौर में आईआईटी तथा आई आई एम संचालित है। 

इलेक्ट्रॉनिक शिक्षा

ई शिक्षा का तात्पर्य उस शिक्षा से है जिसके अंतर्गत विद्यार्थी अपने निवास स्थान पर ही बैठ कर इंटरनेट एवं अन्य संचार उपकरणों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करता है। 

और वर्तमान में ई-शिक्षा का विस्तार हो रहा है। 

ई शिक्षा के लाभ

  • विद्यार्थी कहीं भी किसी भी समय में शिक्षा प्राप्त कर सकता है। 

  • ई शिक्षा अपेक्षाकृत कम खर्चीली है क्योंकि इसमें स्कूल तक जाने का खर्चा , पुस्तकों का खर्चा, ड्रेस का खर्चा बच जाता है। 

  • ई शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी अनिश्चित काल तक वेब आधारित स्टडी मैटेरियल प्राप्त कर सकता है। अर्थात स्टडी मैटेरियल इंटरनेट में स्टोरेज रहता है। 

ई शिक्षा की चुनौतियां

  • ई शिक्षा के लिए मोबाइल लैपटॉप एवं इंटरनेट कनेक्शन की जरूरत होती है इसके अभाव में ही शिक्षा संभव नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क कनेक्शन की प्रॉब्लम से ग्रामीण क्षेत्र की बच्चे इसका उपयोग नहीं कर पाते

  • ई-शिक्षा में विद्यार्थी का शिक्षक के साथ सीधा संपर्क नहीं होता जिससे विद्यार्थी शिक्षक से उतना ज्यादा प्रभावित नहीं हो पाता।  

  • ई-शिक्षा में प्रयोगशाला से संबंधित कार्य करना मुश्किल होता है। 

  •  ई शिक्षा में विद्यार्थी के अनुशासन की देखरेख नहीं हो पाती जैसे कि  वह विद्यार्थी नाखून काटा है ?क्या वह मादक पदार्थ तो नहीं खाया? 

  • मोबाइल रेडिएसन की  समस्या 

ई शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयास-: 

  • ई पाठशाला-: 

यह एनसीईआरटी की पहल है जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मोबाइल में बुक उपलब्ध करवाई जाती है। 

  • SWAYAM-: Study Webs of Active–Learning for Young Aspiring Minds, इस कार्यक्रम के अंतर्गत माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा के लिए ऑनलाइन course प्रदान किया जाता है। 

  • स्वयंप्रभा-: इसकी माध्यम से डीटीएच (डायरेक्ट टू होम) पर 24 * 7 समय गुणवत्तापूर्ण वीडियो लेक्चर उपलब्ध करवाय जाते हैं। 

  • वर्चुअल लैब-: 

ई शिक्षा के अंतर्गत विद्यार्थियों को ऑनलाइन प्रयोगशाला की सुविधा देने के लिए वर्चुअल लैब की व्यवस्था की गई है वर्तमान में 1800 से अधिक प्रयोगों के साथ लगभग 225 वर्चुअल प्रयोगशाला संचालित है। 

व्यवसायिक शिक्षा

व्यवसायिक शिक्षा का तात्पर्य विद्यार्थी को प्रदान की जाने वाली ऐसी शिक्षा एवं प्रशिक्षण से है जो विद्यार्थी को रोजगार प्रदान करके ,आजीविका चलाने के लिए कुशल बनाती हैं। 

जैसे वेब डिजाइनिंग की शिक्षा, हस्तकला की शिक्षा ,। 

व्यवसायिक शिक्षा के उद्देश्य

  • शिक्षित बेरोजगारी की दर को कम करना। 

  • देश में व्यापक मात्रा में उपलब्ध मानव संसाधन को कुशल मानव संसाधन में बदलकर (जनांकिकी लाभांश की स्थिति के द्वारा) तीव्र आर्थिक विकास करना। 

  • शिक्षा को व्यवसाय से जोड़कर शिक्षा से प्राप्त ज्ञान उपयोग व्यवसाय में करना। 

  • स्वरोजगार को बढ़ावा देकर , लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाना। 

  • उद्यमिता को बढ़ावा देना।

व्यवसायिक शिक्षा की चुनौतियां या समस्याएं

  • पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण व्यवसायिक शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों की कमी। जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ही दुर्लभ मात्रा में आईटीआई देखने को मिलते हैं। 

  • शिक्षण संस्थानों में व्यवसायिक शिक्षा देने के लिए पर्याप्त आधारभूत संरचना जैसी कंप्यूटर प्रयोगशाला आदि की कमी। 

  • बदलते वक्त के अनुसार व्यावहारिक व्यवसायिक शिक्षा देने वाले गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी। 

  • व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी के पास पूंजी की कमी होने से वह स्वरोजगार स्थापित नहीं कर पाता जिसके कारण व्यवसायिक शिक्षा व्यर्थ पूर्ण हो जाती है।

व्यवसायिक शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सरकारी प्रयास-: 

सरकार व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयासरत है व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने निम्न कदम उठाए-: 

  • देशभर में अनेकों आईटीआई स्थापित किए गए जहां पर इलेक्ट्रीशियन फिटर आदि की शिक्षा दी जाती है। 

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना प्रथम मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना संचालित है जहां पर कौशल प्रशिक्षण केंद्र के माध्यम से विभिन्न विषयों से संबंधित कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है।   

  • हाल ही में नई शिक्षा नीति बनाई गई जिसने यह प्रावधान है कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को वोकेशनल ट्रेनिंग अर्थात व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। 

राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद-: 

व्यवसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए 2018 में राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद की स्थापना की गई। 

इस परिषद के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-: 

  • व्यवसायिक प्रशिक्षण देने वाली शिक्षण संस्थानों  को मान्यता प्रदान करना तथा उनका अवलोकन करना। 

  • कौशल विकास की संस्थाओं का नियमन करना। 

  • प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं को उपयुक्त सलाह एवं सिफारिशें देना।

 

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