नैतिक मार्गदर्शन के रूप में अंतरात्मा
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Toggleनैतिक मार्गदर्शक:-ऐसे सभी मानक स्त्रोत जो किसी व्यक्ति या लोकसेवक को नैतिक दुविधा की स्थिति से निकालकर उचित निर्णय लेने का आधार प्रस्तुत करते हैं उन्हें नैतिक मार्गदर्शक कहते हैं।
नैतिक मार्गदर्शक के प्रकार:-
बहरी नैतिक मार्गदर्शक
नियम, कानून
प्रथाएं, परंपराएं
समाज में प्रचलित नैतिक मूल्य।
आंतरिक नैतिक मार्गदर्शक
अंतरात्मा या सद्बुद्धि।
अंतरात्मा
अंतरात्मा व्यक्ति की वह आंतरिक मानसिक शक्ति होती है, जो व्यक्ति को सही-गलत, उचित-अनुचित आदि का बोध कराती है तथा सदैव उचित कार्य करने का दबाव डालती है।
अरस्तू के अनुसार अंतरआत्मा व्यक्ति के अंदर ,ईश्वर द्वारा डाले गए वे सभी गुण हैं,जिससे माध्यम से वह उचित एवं अनुचित के मध्य अंतर करता है एवं नैतिक निर्णय लेता है।
और नैतिक मार्गदर्शन के रूप में कानून ,नियम, नैतिक मूल्यों के अलावा अंतरात्मा का भी प्रमुख स्थान होता है।
अंतरात्मा की विशेषताएं
अंतरात्मा तार्किक निष्कर्ष का परिणाम नहीं अतः यह तार्किक रूप से सही हो ,यह निश्चित नहीं होता। क्योंकि अंतरात्मा पारिवारिक पृष्ठभूमि ,सामाजिक स्थिति , धर्म एवं संस्कृति से प्रभावित होती है।
जब हम कोई अनैतिक कार्य करते हैं तो अंतरात्मा में दुःख एवं पश्चाताप का भाव उत्पन्न होता है इसके विपरीत जब हम कोई नैतिक मूल्यों पर आधारित कार्य करते हैं तो हमें खुशी का भाव उत्पन्न अर्थात अंतरात्मा मूल्यों को स्वीकारती है।
अंतरात्मा ही व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारित करती हैं।
अंतरात्मा के पक्ष
अंतरात्मा के मुख्यतः दो पक्ष होते हैं
ज्ञानात्मक पक्ष।
अधिकारात्मक पक्ष।
ज्ञानात्मक पक्ष-:
ज्ञानात्मक पक्ष यह बताता है कि-कौन सा कर्म नैतिक है और कौन सा कर्म अनैतिक है।अर्थात।उचित अथवा अनुचित का बोध कराता है। जैसे-:अंतरात्मा का ज्ञानात्मक पक्ष यह बताता है कि किसी को पीड़ा पहुंचाना, किसी को मारनाअनैतिक होता है ?
अधिकारात्मक पक्ष-:
अंतरात्मा का अधिकारात्मक पक्ष व्यक्ति परयह दबाव बनाता है कि वह अंतरात्मा के निर्णय के अनुसार नैतिक कार्य करें, उसके अनुरूप आचरण करें।जैसे-: अंतआत्मा अधिकारात्मक पक्ष रिश्वत न लेने के लिए दबाव बनाता है।
शुरुआत में अनैतिक कार्यों के विरुद्ध अंतरात्मा का दबाव बहुत अधिक होता है।इसलिए अनैतिक कार्य करने पर अपराध का भाव फील होता है,किंतु जब आत्मप्रेत के प्रभाव से बार बार अंतरआत्मा का उल्लंघन किया जाता है,तो अंतरात्मा का दबाव कम या समाप्त हो जाता है।
जैसे-: शुरुआती समय में रिश्वत लेने पर बहुत गिलानी या अपराध का भाव महसूस होता है, लेकिन बार-बार स्वत लेने पर रिश्वत नौकरी का हिस्सा लगने लगता है।
अंतरात्मा के प्रकार:-
सत्य अंतरात्मा
जब अंतरात्मा तथ्य एवं परिस्थिति के अनुसार नैतिक निर्णय करती है तो उसे सत्य अंतरात्मा कहते हैं।
उदाहरण के लिए: – हमें सदैव सत्य बोलना चाहिए किंतु यदि सत्य बोलने से अनेकों लोगों की जान जाती हो तो असर तभी बोलना चाहिए, अर्थात विशेष परिस्थिति असत्य बोलना भी उपयुक्त होगा का निर्णय देना सत्य अंतरात्मा का उदाहरण है।
असत्य अंतरात्मा
जब अंतरात्मा सिर्फ नैतिक पहलुओं पर विचार करें किन्तु तथ्य एवं परिस्थिति के अनुसार निर्णय नैतिक ना करें, तो उस अंतरात्मा को असत्य या त्रुटिपूर्ण अंतरात्मा कहते हैं।
उदाहरण के लिए:- यदि कोई व्यक्ति अचेतन अवस्था में है और उसका इलाज संभव नहीं हो, तो ऐसी परिस्थिति में भी दर्द से तड़प रहे व्यक्ति को मृत्यु ना देने का निर्णय लेना ,असत्य अंतरात्मा के अनुसार लिया गया निर्णय कहलाएगा। क्योंकि अंतरात्मा के अनुसार अहिंसा पाप होता है।
नित्य अंतरात्मा:-
जब अंतरात्मा का निर्णय बिल्कुल सुनिश्चित एवं स्पष्ट होता है और किसी भी परिस्थिति में अंतरात्मा उसी निर्णय को मानने की सलाह देती है तो इसे नित्य या सुनिश्चित अंतरात्मा कहते हैं। जैसे:-रिश्वत नहीं लेना तो नहीं लेना, भले कैसा भी प्रस्ताव क्यों ना आए।
संदेहास्पद अंतरात्मा
जब अंतरात्मा द्वारा लिए गए निर्णय संदेश से युक्त हो तो उसे संदेहास्पद अंतरात्मा कहते हैं।
जैसे:- अचानक से आकर घर में छिपे व्यक्ति के बारे में सत्य या असत्य बोलने का निर्णय लेना संदेश युक्त होता है।
पराजेय अज्ञान:- जब विशेष तथ्य व जानकारी के माध्यम से अपनी अंतरात्मा के संशय को दूर किया जा सकता है उसे पराजेय अज्ञान कहते हैं जैसे-: घर में आकर छिपे व्यक्ति के बारे में अपराध की जानकारी प्राप्त करके, उसे पुलिस के हवाले कर देने का निर्णय।
अजेय अज्ञान:-ऐसा संशय जिसे किसी तथ्य जानकारी के माध्यम से दूर नहीं किया जा सकता है उसे अजेय अज्ञान कहते हैं। जैसे:-ईश्वर के अस्तित्व का प्रश्न।
प्रबुद्ध अंतरात्मा:-
जब कोई व्यक्ति किसी व्यवस्था में लंबे समय से कार्य कर रहा होता है तो, समय के साथ अनुभव द्वारा व्यक्ति में उच्च निर्णयन क्षमता आ जाती है अगर उसे कोई नियम पता भी ना हो तो वह अनुमान लगा लेता है और कुछ अपवाद को छोड़कर लगभग सभी अनुमान सही होते हैं। तो उस व्यक्ति की अंतरात्मा को प्रबुद्ध अंतरात्मा कहते हैं।
नैतिक मार्गदर्शन के रूप में अंतरात्मा का महत्व
अंतरात्मा व्यक्ति को नैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित करती है तथा अनैतिक कार्य न करने का दबाव बनाती है, अतः अंतरात्मा लोक प्रशासन के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है।
अंतरात्मा, नैतिक दुविधा के समय अंतिम स्त्रोत के रूप में उचित निर्णय लेने का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
अंतरात्मा ,प्रशासन को संवेदनशील बनाती है।
अंतरात्मा का दबाव लोक सेवक को उत्तरदायित्व, कर्तव्य परायण बनाता है।
अंतरात्मा लोक सेवक को निष्पक्ष एवं अराजनैतिक बनाती है
अंतरात्मा के आधार पर लिए गए निर्णयों से सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
अंतरात्मा समाज में शांति ,सौहार्द , जन सहभागिता और समानता स्थापित करने में सहायक हैं।
वास्तव में अंतरात्मा निर्णयन मार्गदर्शन का अंतिम स्त्रोत होता है क्योंकि जब व्यक्ति अपनी बौद्धिकता के बावजूद निर्णय करने में असमर्थ होते हैं तब अंतरात्मा उसका मार्ग प्रशस्त करती है, अंतरात्मा व्यक्ति पर नैतिक निर्णय करने का दबाव डालती है, अंतरात्मा के अनुसार निर्णय लेने पर अपराध भाव का भूत होता है।
अंतरात्मा के प्रयोग संबंधी नियम
एक लोक सेवक को अंतरात्मा का प्रयोग निम्न परिस्थितियों में करना चाहिए:-
जहां व्यक्ति के पास स्पष्ट रूप से विवेकाधीन शक्ति हो, अर्थात केवल अपने अधिकार क्षेत्र में इसका उपयोग करना चाहिए। जैसे:-न्यायाधीशों के पास अधिकांश मामलों में न्यूनतम और अधिकतम सर्जक की रेंज का प्रावधान होता है उन्हें अपनी अंतरात्मा से अर्चना होता है कि किस स्थिति के अपराधी को किस रेंज की सजा दी जाए।
जहां पर कोई नियम ,विनियम की स्पष्ट तरीके से व्याख्या ना करता हो, अर्थात नियम की एक से अधिक व्याख्या हों, तो उस समय अपनी अंतरात्मा से नियम की किसी एक व्याख्या को चुनना चाहिए।
जिस समस्या का कोई पूर्व उदाहरण ना हो ना ही कोई निश्चित विधि ,नियम उस समस्या का समाधान करती हो।
जब एक ही समस्या के संबंध में समाधान देने वाले अनेकों विधि एवं नियम हों, किंतु तत्काल निर्णय लेना हो तो अंतरात्मा द्वारा किसी एक नियम के अनुसार निर्णय लिया जा सकता है। जैसे क्षेत्र में अचानक से संप्रदायिक दंगा होने लगता है तब इस स्थिति में एक लोक सेवक को सांप्रदायिक दंगों से संबंधित कानून पड़ने की बजाय अंतरात्मा से निर्णय लेना होगा।
जब समस्या आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो और संबंधित व्यक्ति मौजूद ना हो किंतु त्वरित निर्णय लेना आवश्यक तो, अंतरात्मा के अनुसार निर्णय लिया जा सकता है।
अंतरात्मा के प्रयोग में सावधानियां
अंतरात्मा से निर्णय लेने की पूर्व संबंधित मामले की स्पष्ट जानकारी सभी सबूत प्राप्त करना चाहिए।
अधिकारी को यह प्रयास करना चाहिए कि उसकी अंतरात्मा का निर्णय विवेक एवं तार्किकता पर आधारित हो।
यदि किसी परिस्थिति के समाधान के लिए दो बराबरी के विकल्प मौजूद हैं तो पुनः विचार करके एवं वरिष्ठ मित्र की सलाह लेकर अंतरात्मा का प्रयोग करना चाहिए।
अंतरात्मा से निर्णय लेते समय अति आत्मविश्वास की अवस्था से बचना चाहिए।
अंतरात्मा और इच्छाशक्ति
अंतरात्मा का तात्पर्य व्यक्ति की उस मानसिक शक्ति से है जो उचित एवं अनुचित का बोध कराती है, जबकि इच्छाशक्ति का तात्पर्य मनुष्य की उस मानसिक शक्ति से है जो अंतरात्मा के निर्णयों को पूरी दृढ़ता के साथ लागू करवाने का प्रयास करती है।
अंतरात्मा और कानून
कानून विधायिका द्वारा बनाये गये नियम होते हैं जिनका पालन सभी व्यक्ति को करना होता जो व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है उन्हें दंडित भी किया जा सकता है। जबकि अंतरात्मा व्यक्ति के अंतर्मन की आवाज होती है जो नैतिक कार्य करने के लिए दबाव डालती है और यदि हम अंतरात्मा के निर्णय को स्वीकार नहीं करते तो हमें अपराधभाव का बोध होता है।
किंतु एक लोक सेवक को कानून और अंतरात्मा में से सर्वप्रथम कानून को चुनना चाहिए, जब किसी समस्या का समाधान कानून से ना मिले तब अंतरात्मा का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि कानून सर्वप्रिय होता है और अंतरात्मा व्यक्तिगत होती है।
नैतिक तर्क
नैतिक मूल्यों पर आधारित (व्यक्ति के)वे तर्क ,जो नैतिक दुविधा से बाहर निकालने के लिए उचित और अनुचित का बोध कराकर ,सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चुनाव में सहायक होते हैं उन्हें नैतिक तर्क कहते हैं।
नैतिक तर्क नैतिक मूल्यों जैसे सत्य निष्ठा, पारदर्शिता, जवाबदेहिता,कर्तव्यनिष्ठा पर आधारित होते हैं।
जैसे:-
यदि किसी रमेश नाम के अधिकारी के सामने उसका अधीनस्थ गरीब अधिकारी रिश्वत लेता है और रमेश नाम के अधिकारी को यह पता है कि उसके घर की स्थिति दयनीय है उसके बीवी बच्चों का पेट इसी के द्वारा पल रहा है, ऐसी स्थिति में यदि रमेश के सामने यह नैतिक दुविधा है कि उसे नौकरी से निकाले या नहीं यदि निकालता है तो की बीवी बच्चे अनाथ हो जाएंगे अन्यथा नहीं निकलता तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
ऐसी स्थिति में रमेश नाम का अधिकारी यह तर्क देते हुए कि -: हमारे देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सख्त कानून है अतः इनके तहत इसको निकालना आवश्यक है अन्यथा भ्रष्टाचार बढ़ेगा, निकाल देता है। तो यह नैतिक तर्क कहलाएगा।
नैतिक तर्क की प्रक्रिया:-्
नैतिक तर्क के बनाने की प्रक्रिया में निम्न चरणों को ध्यान में रखा जाता है:-
प्रथम चरण में सामाजिक मूल्यों व आदर्शों के आधार पर उचित अथवा अनुचित का निर्णय लिया जाता है।
द्वितीय चरण में विभिन्न में नैतिक मूल्यों जैसे – ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, जवाबदेहिता, निष्पक्षता के आधार पर सही अथवा गलत का निर्णय लिया जाता है।
तृतीय चरण में संविधान कानून नियम आदि के आधार पर किसी भी विकल्प की सही अथवा गलत होने का निर्णय लिया जाता है।
अंततः स्वीकार किए गए तर्कों के आधार पर किसी एक विकल्प का चयन कर लिया जाता है यहां पर नैतिक तर्क की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
नैतिक तर्क की भूमिका, उपयोगिता या महत्त्व
नैतिक तर्क, नैतिक दुविधा के समय उचित निर्णय लेने का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
नैतिक तर्क से प्रशासन में निष्पक्षता, अराजनीतिकता, जन सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
नैतिक तर्क के आधार पर लिए गए निर्णयों से सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
नैतिक तर्क समाज में शांति ,सौहार्द और समानता स्थापित करने में सहायक हैं।
नैतिक तर्क रूढ़िवादिता को समाप्त करने में सहायक होते हैं।
नैतिक तर्क और कानून
नैतिक तर्क और कानून दोनों ही नैतिक दुविधा से बाहर निकालने के आधार स्तोत्र हैं किन्तु यदि दोनों में से किसी एक के चुनाव की बात हो तो नैतिक तर्क की तुलना में कानून का पालन करना ज्यादा सर्वोपरि माने जाता है , क्योंकि:-
नैतिक तर्क व्यक्तिगत सोच पर आधारित होते हैं। जबकि कानून सामूहिक सोच पर आधारित होते हैं एवं जनप्रिय होते हैं।
नैतिक तर्क स्थिति स्थान काल के अनुसार परिवर्तित होते हैं जबकि कानून सार्वभौमिक एवं अधिक स्थाई होते हैं।
एक लोक सेवक को कानून का पालन करना अनिवार्य होता है ,नैतिक तर्क का पालन करना अनिवार्य नहीं होता।
उदाहरण:- यदि किसी लड़की के साथ कोई लड़का बदतमीजी करता है जिस कारण से वह लड़की उस लड़की को मार देती है ऐसी स्थिति में लड़की रोती हुई रिपोर्ट लिखवाने थाने आती है और यह सब बताती है तो थाना प्रभारी को कानून के अनुसार लड़की के विरुद्ध कार्रवाई करनी होगी ना कि अपने सहानुभूति पूर्ण नैतिक तर्क के आधार पर निर्णय लेना होगा।
नैतिक तर्क और व्यक्तिगत अधिकार:-
नैतिक तर्क और व्यक्तिगत अधिकार में से हमें नैतिक तर्क का अनुपालन करना चाहिए क्योंकि नैतिक तर्क समाज की भलाई के लिए कार्य करता है जबकि व्यक्तिगत अधिकार स्वयं की संतुष्टि यशवंत की भलाई के लिए होते हैं।