[खनिज एवं अयस्क +जीवश्म ]

खनिज

निश्चित भौतिक एवं रासायनिक संरचना वाले ऐसे प्राकृतिक तत्व या पदार्थ जिन्हें भू-गर्भ से खोदकर निकाला जाता है उन्हें खनिज कहते हैं। 

खनिज की विशेषताएं-: 

  • समानता खनिज दो या दो से अधिक तत्वों से मिलकर बने होते हैं किंतु कुछ एक तत्व वाले भी होते हैं जैसे-: सल्फर ,तांबा, चांदी ग्रेफाइट। 

  • खनिज प्राकृतिक पदार्थ होते हैं अर्थात इन्हें कृत्रिम तरीके से नहीं बनाया जाता। 

  • प्रत्येक खनिज का एक निश्चित रासायनिक संघटन होता है। 

खनिजों के गुण-:

खनिजों के भौतिक गुण-: 

रंग-: खनिज विभिन्न तत्वों एवं अशुद्धियों से मिलकर बना होता है, अतः एक ही खनिज की विभिन्न रंग का हो सकता है।

स्ट्रीक-: जब खनिजों को किसी सतह पर रगड़ा जाता है तो रंगीन रेखा बनती है जिसे स्ट्रीक कहते हैं। 

चमक-: अधिकांश खनिज चमकदार होते हैं जैसे कि हीरा, सोना ,चांदी किंतु कुछ खनिज कम चमकदार होते हैं जैसे कोयला, ग्रेनाइट। 

पारदर्शिता-: अधिकांश खनिज अपारदर्शी होते हैं किंतु कुछ खनिज पारदर्शी भी होते हैं जैसे क्रिस्टलीय क्वार्ट्ज। 

संरचना-: खनिजों का एक निश्चित स्वरूप एवं संरचना होती है। जैसे-: चूना पत्थर की संरचना परतदार होती है, हीरा की संरचना क्रिस्टलीय होती है। 

कठोरता-: विभिन्न खनिजों की कठोरता भिन्न-भिन्न स्तर की होती है। खनिजों की कठोरता को मापने के लिए 10 खनिजों का एक मापक बनाया गया है ,जिससे मोज का कठोरता मापक कहते हैं। इस मापक में सबसे कठोर खनिज हीरा है तथा सबसे कम कठोर खनिज टाल्क के एवं जिप्सम है। 

अपेक्षित गुरुत्व-: प्रत्येक खनिज का अपना एक निश्चित गुरुत्व होता है जिस खनिज का घनत्व अधिक होता है उसका गुरुत्व भी अधिक होता है इसके विपरीत जिस खनिज का घनत्व कम होता है उसका गुरूत्व भी कम होता है। 

चालकता-: समानता धात्विक खनिज सुचालक होते हैं और अधात्विक खनिज कुचालक होते हैं जैसे -:तांबा, चांदी ,ग्रेफाइट, लोहा ,सुचालक खनिज है। 

और फेल्डस्पर ,जिप्सम कुचालक खनिज हैं। 

अयस्क-: 

ऐसे खनिज जिनमें धातु की मात्रा अधिक होने के कारण, उनसे धातु प्राप्त करना कम खर्चीला एवं लाभदायक होता है उन्हें अयस्क कहते हैं। 

जैसे -:मैग्नेटाइट, बॉक्साइट अयस्क।

अयस्क एक निश्चित रसायनिक योगिक होता है।  

जैसे -: मैग्नेटाइट ,  लोहा और ऑक्सीजन से मिलकर बना  fe3O4 का योगिक है,

खनिजों के प्रकार-:

गुणों के आधार पर खनिज मुख्यतः निम्न 3 प्रकार के होते हैं,

  • धात्विक खनिज

  • अधात्विक खनिज

  • ईंधन खनिज। 

धात्विक खनिज-

ऐसी खनिज जिनमें धातुओं के अंश मौजूद होते हैं उन्हें धात्विक खनिज कहते हैं। 

जैसे -: लोहा , तांबा, सोना, मैग्नीज। 

धात्विक खनिज दो प्रकार के होते हैं

लौह धात्विक खनिज-: ऐसे धात्विक खनिज जिनमें लौह तत्व मौजूद होते हैं। 

जैसे -: लौह अयस्क, मैग्नीज, कोबाल्ट, क्रोमियम, टंगस्टन। 

अलौह धात्विक खनिज-: ऐसे धात्विक खनिज जिनमें लोह तत्व विद्यमान नहीं होते उन्हें अलौह धातु खनिज कहते हैं। 

जैसे-: एलुमिनियम, प्लेटिनम, तांबा, टिन, सोना। 

अधात्विक खनिज-: 

ऐसे खनिज जिनमें किसी भी धातु के अंश मौजूद नहीं होते अर्थात जिन से धातु प्राप्त नहीं कर सकती उसे अधात्विक खनिज कहते हैं। 

जैसे-: चूना पत्थर, संगमरमर, हीरा, अभ्रक, जिप्सम। 

ईंधन खनिज-: 

ऐसी खनिज जिनके दहन से उष्मा/ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ईंधन खनिज कहते हैं। 

जैसे-: कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम आदि। 

खनिजों का महत्व-: 

हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु चाहे वह छोटी सी सुई हो या विशाल भवन, सभी खनिजों से मिलकर बने हैं। अतः खनिजों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है। 

जिससे निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है,

  1. खनिज ऊर्जा प्राप्ति के स्त्रोत होते हैं-: जैसे कोयला पेट्रोलियम तेल प्राकृतिक गैस यूरेनियम थोरियम आदि खनिज ऊर्जा प्राप्ति के मुख्य स्त्रोत है। 

  2. खनिज निर्माण कार्य के लिए कच्चा माल होते हैं-: खनिजों द्वारा ही सड़क ,इमारत आदि का निर्माण किया जाता है। 

  3. खनिज परिवहन एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण का आधार है-: क्योंकि परिवहन एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण के लिए कच्चा माल खनिजों से ही प्राप्त होता है। 

  4. खनिज औद्योगिक विकास में सहायक होते हैं-: क्योंकि उद्योगों में उत्पादित अनेकों वस्तुओं खनिजों द्वारा ही बनाई जाती है। जैसे चूना पत्थर द्वारा सीमेंट का निर्माण, नमक का निर्माण, जिप्सम द्वारा उर्वरक का निर्माण। 

  5. शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक-: शरीर को स्वस्थ रखने में कनिष्ठ सहायक होते है इनकी कमी से हमें विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। जैसे -:शरीर में लौह तत्व की कमी से एनीमिया की समस्या। कैल्शियम की कमी से हड्डियों का कमजोर होना।

खनिज के दोहन से उत्पन्न समस्याएं-:

  • खनिज पदार्थों की उपलब्धता एवं पूर्ति में कमी आई है। 

  • खनिज पदार्थों के अत्यधिक दोहन से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई। 

  • खनिज पदार्थ के खनन से भूस्खलन की समस्या उत्पन्न हुई। 

उपाय-: 

  • दुर्लभ या कम मात्रा में बचे खनिजों के स्थान पर उनके प्रतिस्थापन का उपयोग किया जाए, जैसे ,कोयला से विद्युत निर्माण के स्थान पर सौर विकिरण से विद्युत निर्माण किया जाए। 

  • खनिज संसाधनों का दोहन कुशलतम तकनीक द्वारा किया जाए। 

  • खनिज संसाधनों का पुनर्चक्रण किया जाए । 

प्रमुख खनिज एवं अयस्क-: 

लौह अयस्क-: 

लोहा अयस्क एक धात्विक खनिज है, जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की शैलों में पाया जाता है। 

लौह अयस्क के प्रकार-: 

मैग्नेटाइट (fe3O4)-:

  • यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क है इसमें 72% तक लौह धातु का अंश पाया जाता है। 

  • इसका रंग काला होता है अतः इसे काला लौह अयस्क भी कहते हैं। 

.मैग्नेटाइट (fe3O4)-:

 

हेमेटाइट (fe2O3)-:

  • यह मैग्नेटाइट के बाद दूसरा सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क है इसमें लोहे का अंश 60 से 70% तक पाया जाता है। 

  • इसका रंग लाल-गेरुआ होता है। 

.हेमेटाइट (fe2O3)-:

लिमोनाइट (feO.H2O)-:

  • यह निम्न कोटि का लौह अयस्क है इसमें लौह धातु के अंश की मात्रा 40 से 60% तक होती है। 

  • इसका रंग पीला होता है। 

.लिमोनाइट (feO.H2O)-:

सिडेराइट(feCO3)-:

  • यह सबसे निम्न किस्म का लौह अयस्क है इसमें न्यू धातु के अंश की मात्रा मात्र 30 से 45% तक होती है। 

  • इस अयस्क कारण भूरा-राख की तरह होता है। 

.सिडेराइट(feCO3)-:

लौह अयस्क के गुण-: 

  • इसमें तीव्र चुंबकीय गुण पाया जाता है। 

  • यह काफी कठोर एवं आघातवर्ध्य होता है। 

  • सुचालकता का गुण पाया जाता है

  •  इसे किसी भी आकार में मोड़ा जा सकता है। 

उपयोग-: 

  • चुंबक निर्माण में लोहे का उपयोग किया जाता है। 

  • इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की मिश्र धातुओं के निर्माण में किया जाता है।   जैसे -:स्टील निर्माण में। 

  • बर्तन एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में। 

  • भवन एवं सड़क निर्माण में। 

  • परिवहन के साधनों के निर्माण में। 

लौह अयस्क का वितरण-: 

विश्व में सर्वाधिक लौह अयस्क ऑस्ट्रेलिया, रूस, ब्राजील, चीन ,भारत जैसे देश में पाया जाता है। 

अर्थात लोहा भंडारण की दृष्टि से शीर्ष देश निम्नलिखित हैं-: 

  • ऑस्ट्रेलिया

  • रूस

  • ब्राजील

  • चीन

  • भारत। 

जबकि लोहा उत्पादन की दृष्टि से शीर्ष देश निम्नलिखित हैं-:

  • ऑस्ट्रेलिया

  • ब्राजील

  • चीन

  • भारत

  • रूस। 

भारत में लोह अयस्क की स्थिति-:

भारतीय भूगर्भिक विभाग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोह अयस्क का अनुमानित भंडार लगभग 3200 करोड़ टन है, जिसमें से 50% लौह अयस्क हेमेटाइट लौह अयस्क है।  

भारत के सर्वाधिक लोहा उत्पादित राज्य-: 

  1. उड़ीसा-: उड़ीसा में देश का लगभग 55% लोहे का उत्पादन होता है।

उड़ीसा की प्रमुख लौह अयस्क खदाने

  • मयूरभंज

  • क्योंझर

  • सुंदरगढ़।

  1. छत्तीसगढ़-: छत्तीसगढ़ में देश का लगभग 17% लोहे का उत्पादन होता है

छत्तीसगढ़ की प्रमुख खदाने निम्नलिखित हैं

  • बैलाडीला (दंतेवाड़ा),

  • डल्ली राजहरा (दुर्ग)

  • बेलारी क्षेत्र। 

  1. कर्नाटक-: कर्नाटक में देश का लगभग 14% लोहे का उत्पादन होता है। 

कर्नाटक की प्रमुख लोह खदान निम्नलिखित हैं

  • बाबाबुदान खदान

  • कुद्रेमुख खदान

  • शिमोगा खदान।

  1. झारखंड-: झारखंड में मुख्यता सिंहभूमि क्षेत्र में लोहे का उत्पादन होता है। 

 तांबा-:

तांबा भी एक धात्विक (अलौह) खनिज है, जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है। 

तांबा के प्रमुख अयस्क-:

  • सल्फाइड के रूप में -: चेल्कोपाइराइट, चेल्कोसाइट। 

  • ऑक्साइड के रूप में-: क्यूप्राइट। 

  • कार्बोनेट के रूप में-: एजुराइट। 

.तांबा के प्रमुख अयस्क-:

तांबा के गुण-: 

  • यह जंग विरोधी है।

  • इसमें आघातवर्धता एवं तन्यता का गुण पाया जाता है

  • यह विद्युत का अच्छा सुचालक होता है। 

  • यह भी लचीला होता है इसे किसी भी आकार में डाला जा सकता है। 

उपयोग-: 

  • इसका उपयोग व्यापक मात्रा में मिश्र धातु बनाने में किया जाता है, जैसे-: तांबा के साथ टिन को मिलाने से कांसा बनता है। तांबा के साथ जस्ता मिलाने से पीतल बनता है। 

  • बिजली के तार तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। 

  • बर्तन निर्माण में भी तांबा का उपयोग किया जाता है। 

तांबा का वितरण-:

विश्व में तांबे का सर्वाधिक उत्पादन-: चिल्ली, चीन,ऑस्ट्रेलिया, पेरू जैसे देशों में होता है। 

भारत में-: तांबे का सर्वाधिक उत्पादन

  • मध्यप्रदेश के मलाजखंड में,

  • राजस्थान के खेतरी क्षेत्र में,

  • झारखंड की सिंहभूमि एवं हजारीबाग क्षेत्र में होता है। 

बॉक्साइट अयस्क-:

बॉक्साइट एलुमिनियम का अयस्क है जो आग्नेय ,अवसादी एवं कायांतरित सभी प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है। 

.बॉक्साइट अयस्क-:

एलुमिनियम के गुण

  • यह बहुत हल्की धातु होती है अर्थात उसका भार कम होता है। 

  • यह भी जंग विरोधी होती है। 

  • यह विद्युत एवं ऊष्मा के सुचालक होती है

  • एलुमिनियम के शोधन में कम खर्च आता है।  

एलुमिनियम का उपयोग

  • यह कठोर धातु के साथ मिलकर लचीली धातु का निर्माण करती है। 

  • इसका उपयोग विद्युत उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। 

  • एलुमिनियम का उपयोग बर्तन निर्माण में भी किया जाता है। 

  • यातायात के साधनों यहां तक कि अंतरिक्ष यान वायुयान में भी इसका उपयोग होता है।  

बॉक्साइट का वितरण-: 

विश्व में -: बॉक्साइट का सर्वाधिक उत्पादन ऑस्ट्रेलिया ,चीन ,ब्राजील ,भारत में होता है। 

भारत में-: बॉक्साइट का सर्वाधिक उत्पादन

  • उड़ीसा के -कालाहांडी , केरापुट ,संबलपुर क्षेत्र में होता है। 

  • गुजरात के- भावनगर ,जामनगर क्षेत्र में होता है। 

  • महाराष्ट्र के- कोल्हापुर, रत्नागिरी क्षेत्र में होता है। 

मैग्नीज

मैग्नीज लो धात्विक खनिज है जो मुख्यतः लोहे के साथ ही मिलता है, मैग्नीज मुख्यतः कायंतरित क्रम की चट्टानों में पाया जाता है। 

.मैग्नीज

मैग्नीज के प्रमुख अयस्क-: 

  • साइलोमेलीन

  • ब्रोनाइट

मैग्नीज के गुण-: 

  • मैग्नीज एक क्रियाशील धातु है जो जल और वायु के आयनो के साथ  क्रियाशील हो जाती है

  • मैग्नीज बहुत ही कठोर लेकिन शीघ्र नष्ट होने वाली धातु है। 

मैग्नीज के उपयोग-: 

  • मैग्नीज का उपयोग रसायनिक उद्योगों में ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएं ,शुष्क बैटरी आदि के निर्माण में किया जाता है। 

  • मैगनीज का उपयोग इस्पात बनाने के लिए मिश्र धातु के रूप में किया जाता है,

  • स्वास्थ्य संबंधी दबाव बनाने के लिए किसका उपयोग किया जाता है। 

मैग्नीज का वितरण-: 

विश्व में-: मैग्नीज का सर्वाधिक उत्पादन दक्षिण अफ्रीका ,चीन ,ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में होता है। 

भारत में-: मैग्नीज का सर्वाधिक उत्पादन

  • मध्य प्रदेश-: की भरवेली खदान (बालाघाट) में

  • महाराष्ट्र-: के भंडारा एवं रत्नागिरी क्षेत्र में ।

  • उड़ीसा-: के क्योंझर ,कालाहांडी ,कोरापुट क्षेत्र में। 

सोना-; 

सोना भी एक धात्विक खनिज है जो मुख्यतः आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है। 

.सोना-; 

सोना के गुण-: 

  • सोना चमकदार एवं मुलायम होता है। 

  • सोना में तन्यता एवं आघातवर्धयता का गुण पाया जाता है। 

  • सोना में जंग नहीं लगता, क्योंकि यह जंग विरोधी धातु है। 

सोना का उपयोग-: 

  • सुंदर एवं चमकदार आभूषण निर्माण में। 

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा निर्माण में। 

  • अत्यंत बारीक तारों(बायर) के निर्माण में,

  • औषधी निर्माण में। 

सोने का वितरण-: 

विश्व में-: सोना का सर्वाधिक उत्पादन चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं रूस देशों में होता हैं। 

भारत में-: सोना का सर्वाधिक उत्पादन

  • कर्नाटक के कोलार क्षेत्र में

  • झारखंड के सिंह भूमि क्षेत्र में

  • आंध्र प्रदेश के रामागिरी खान क्षेत्र में। 

चांदी-: 

चांदी भी एक धात्विक खनिज है, जो जस्ता, तांबा और सीसा के अयस्कों के साथ मिश्रित रूप से पाई जाती है। 

चांदी का मुख्य अयस्क “अर्जेटाइट” है। 

.चांदी

चांदी के गुण-: 

  • चमकदार होती है,

  • ऊष्मा के सुचालक होती है

  • बहुमूल्य खनिज है। 

उपयोग-: 

  • सुंदर एवं चमकदार आभूषण निर्माण में। 

  • मुद्रा निर्माण में

  • औषधि निर्माण में,

  • रसायनिक उद्योगों में। 

चांदी का वितरण-: 

विश्व में-: चांदी का सर्वाधिक उत्पादन मैक्सिको, पेरू और चीन में होता है। 

भारत में-: चांदी का सर्वाधिक उत्पादन

  • राजस्थान के जावर क्षेत्र में

  • कर्नाटक की कोलार क्षेत्र में होता है

हीरा-: 

यह अधात्विक खनिज है जो कार्बन से मिलकर बना होता है। यह मुख्यतः कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है। 

.हीरा-: 

हीरा के अयस्क-: 

  • किंबर लाइट हेराजन

  • किंबर लाइट ब्रेसिया। 

हीरा के गुण-: 

  • यह सर्वाधिक चमकदार होता है क्योंकि इसमें प्रकाश का अपवर्तन होता है। 

  • यह क्रिस्टलीय संरचना में पाया जाता है। 

  • यह सबसे कठोर खनिज है। 

  • यह ऊष्मा एवं विद्युत का कुचालक होता है। 

  • यह आंशिक रूप से पारदर्शी होता है। 

हीरा का उपयोग-: 

  • बहुमूल्य आभूषणों के निर्माण में

  • कांच को तथा अन्य हीरे को काटने में, चट्टानों में छेद करने में। 

  • सजावटी पॉलिश करने में। 

हीरा का वितरण-:

विश्व में-: हीरा का सर्वाधिक उत्पादन रूस ,ऑस्ट्रेलिया, कांगो गणराज्य में होता है। 

भारत में-: हीरे का सर्वाधिक उत्पादन

  • मध्यप्रदेश के पन्ना छतरपुर सतना क्षेत्र में। 

  • आंध्र प्रदेश की कोलुर खान में। 

यूरेनियम-: 

यूरेनियम एक ईंधन खनिज है, जो मुख्यतः आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है।  

.यूरेनियम

यूरेनियम के प्रमुख अयस्क

  • यूरेनाइट

  • मोनोजाइट 

यूरेनियम के गुण एवं उपयोग-: 

  • यूरेनियम एक रेडियो सक्रिय पदार्थ है। 

  • यूरेनियम का उपयोग परमाणु हथियार तथा रियेक्टरों में विद्युत ऊर्जा बनाने के लिए किया जाता है। 

  • यूरेनियम का उपयोग रेडियोमेट्रिक डेटिंग में भी किया जाता है। 

  • यूरेनियम का उपयोग इलाज में भी किया जाता है। 

यूरेनियम का विश्व वितरण-: 

विश्व में-: यूरेनियम का सर्वाधिक उत्पादन एवं भंडारण कनाडा ,अमेरिका ,और कांगो जैसे देशों में है। 

भारत में-: यूरेनियम का सर्वाधिक उत्पादन

  • झारखंड की जादू खेड़ा खान में

  • आंध्र प्रदेश की तुम्मालापल्ले खान में। 

Paleontology -: 

जीवाश्म विज्ञान या पैलियोनटोलॉजी भूगर्भ शास्त्र की वह शाखा है जिसके अंतर्गत आदिकाल के जीव-जंतुओं के अवशेषों का तथा उन अवशेषों के आधार पर आदिकालीन जीव जंतुओं का अध्ययन किया जाता है। 

जीवाश्म-: जीवाश्म शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जीव+ अष्म। 

अर्थात जीवो के अवशेष। 

इस प्रकार जीवाष्म में का तात्पर्य -:अतीत के उन जैविक अवशेषों से है जो भूपर्पटी की अवसादी शैलों में पाए जाते हैं। 

जीवाश्म का निर्माण-: 

पृथ्वी में जीवाश्म बनने की प्रक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है, क्योंकि जब कोई जीव (पेड़ पौधे या जीव जंतु) मर जाता है तो उसके कोमल भाग जैसे -: जीवो की त्वचा तो शीघ्र ही सड़-गल कर नष्ट हो जाती है किंतु उसके कठोर अवशिष्ट जैसे हड्डियां, दांत, कठोर लकड़ी आदि तुरंत नष्ट नहीं होते और उनमें अवसाद के लगातार निक्षेपण होने से जमीन की गहराई में चले जाते हैं जिससे उनका बाद में भी अपघटकों द्वारा विघटन नहीं हो पाता है, जिससे वे जीवाश्म बन जाते हैं। 

जीवाश्म निर्माण हेतु आवश्यक शर्तें-: 

  • जीवो के शरीर में कड़े अंश उपस्थित होना चाहिए,

  • मरणोपरांत जीवो का शरीर तलछट से अवसादों से ढक जाना चाहिए,

  • अवसादों से ढके जैविक अवशेष में जीवाणु ,कवक, दीमक का संपर्क नहीं होना चाहिए। इसके लिए अत्यधिक ठंड वाले प्रदेश तथा समुद्र की तलछट उपयुक्त स्थान है। 

जीवाश्म का काल निर्धारण-: 

पुरानी सभ्यताओं की समयबद्ध जानकारी की प्राप्ति के लिए, जीवाश्म का काल निर्धारण आवश्यक है,

निम्न विधियों को अपनाकर जीवाश्म की आयु का अनुमान लगाया जाता है-: 

कार्बन 14 विधि-:  सभी जीवो में कार्बन की मात्रा मौजूद होती है किंतु मरने के उपरांत कार्बन 12 की मात्रा तो स्थिर रहती है किंतु कार्बन 14 की मात्रा लगातार घटती जाती है अतः जीवाश्म में कार्बन 14 की मात्रा में आई कमी के आधार पर उनकी आयु का निर्धारण किया जाता है, कार्बन 14 की अर्धआयु 5730 वर्ष होती है, अर्थात यदि किसी जीवाश्म में कार्बन 14 की मात्रा ,कार्बन 12 की तुलना में आधी बची है तो इसका अर्थ है उसकी आयु 5730 वर्ष है,

यूरेनियम लेट डेटिंग-: जिन चट्टानों में जीवाश्म प्राप्त होते हैं उन चट्टानों की आयु यूरेनियम डेटिंग के माध्यम से ज्ञात करके उन जीवाश्म की आयु का पता लगाया जाता है। 

इसके अंतर्गत संबंधित चट्टान की आयु ज्ञात करने के लिए यह देखा जाता है कि उस चट्टान में मौजूद यूरेनियम 238 ,अनुपातिक रूप से कितना भाग शीशा में परिवर्तित हुआ है। और इस आधार पर उसकी आयु की गणना की जाती है। यूरेनियम238 की अर्ध आयु 71.3 करोड़ वर्ष है।

अवसादन विधि-: सामान्यतः जिन जीवो के अवशेष सबसे निचली परत में पाए जाते हैं वे सबसे पुरानी आयु के जीव होते हैं, और जो अपेक्षाकृत ऊपरी परत पर पाए जाते हैं वे तुलनात्मक रूप से कम पुराने जीव होते हैं इस प्रकार विभिन्न परतों के जीवाश्म की तुलना के आधार पर जीवाश्म की आयु की गणना की जाती है। 

जीवाश्म का महत्व-: 

  • जीवाश्म के अध्ययन से जीवन के उद्भव से लेकर वर्तमान समय तक जीवो में हुए परिवर्तनों के तर्कसंगत साक्ष्य प्राप्त होते हैं। जिससे जैव विकास की जानकारी प्राप्त होती है। 

  • जीवाश्म के अध्ययन से प्राचीन काल की जैव विविधता की जानकारी प्राप्त होती है। जैसे कि पहले डायनासोर मौजूद थे अब नहीं है। 

  • जीवाश्म की सहायता से उनसे संलग्न चट्टानों का काल निर्धारण किया जा सकता है।

  • जीवाश्म के अध्ययन से हमें यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि अतीत काल में मौजूद जीवो की जातियों का पतन किन कारणों से हुआ होगा। और उन कारणों से बचकर हम अपनी सभ्यता को बचा सकते हैं। 

[जीवाश्म ईंधन]

जैविक अवशेष के सढ़ने गलने से बना ईधन जीवाश्म ईंधन कहलाता है, जीवाश्म ईंधन मुख्यतः समुद्र की तलहटी एवं अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। 

जीवाश्म ईंधन मुख्यतः निम्न तीन रूपों में प्राप्त होता है-: 

  • कोयला,

  • पेट्रोलियम,

  • प्राकृतिक गैस। 

कोयला-: 

कोयला काले या भूरे रंग का ज्वलनशील एवं कार्बनिक पदार्थ होता है जो मुख्यतः गोंडवाना क्रम(कार्बोनिफरस कल्प) की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। 

कोयला के प्रकार-:

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला को चार भागों में बांटा जा सकता है-: 

एंथ्रेसाइट कोयला-: 

  • उत्तम किस्म का कोयला है जिसमें कार्बन की मात्रा 80 से 90% तक होती है

  • यह सबसे ज्यादा गहराई में पाया जाता है, अर्थात इसकी रचना सबसे पहले हुई। 

  • यह बहुत कठोर होता है। 

  • यह काले रंग का होता है। 

  • इसमें चलते समय धुंआ भी कम निकलता है एवं जल जाने के बाद राख भी कम मात्रा में ही निकलती है। 

 

.एंथ्रेसाइट कोयला-: 

बिटुमिनस कोयला-: 

  • यह एंथ्रेसाइट के बाद, दूसरा सर्वोत्तम किस्म का कोयला होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 70% से 80% तक पाई जाती है। 

  • यह चमकीले काले रंग का होता है,

  • यह कोयला एंथ्रेसाइट कोयले की तुलना में राख एवं धुंआ अधिक देता है। 

  • भारत में यही कोयला सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। 

.बिटुमिनस कोयला-: 

 

लिग्नाइट कोयला-: 

  • यह निम्न कोटि का कोयला होता है जिसमें कार्बन की मात्रा 40 से 60% तक होती है। 

  • यह एंथ्रेसाइट, बिटुमिनस कोयला की अपेक्षाकृत कम गहराई पर पाया जाता है। 

  • यह भूरे रंग का होता है,

.लिग्नाइट कोयला-: 

पीट-: 

  • यह सबसे निम्न कोटि का कोयला होता है इस में कार्बन की मात्रा 40% से भी कम पाई जाती है। 

  • यह कोयला सबसे ऊपर अर्थात कम गहराई पर प्राप्त होता है

  • यह कोयला जलने पर सर्वाधिक धुंआ छोड़ता है एवं जलने के बाद भी सर्वाधिक राख छोड़ता है। 

  •  
  • यह हल्के भूरे रंग का होता है। 

.पीट

कोयला निर्माण की प्रक्रिया-: 

कोयला एक जीवाश्म ईंधन है अतः कोयले का निर्माण जीवो( विशेषकर पेड़ पौधों) के अवशेष से होता है, दरअसल में जब पेड़ पौधे समाप्त होकर जमीन पर गिर जाते हैं तो उन पेड़ पौधों के अवशेषों के ऊपर मिट्टी धूल कंकड़ के अवसाद जमा होते रहते हैं जिससे पेड़ पौधों के अवशेष गहराई पर चले जाते हैं, और गहराई पर अत्यधिक दाब एवं ताप होने के कारण लाखों करोड़ों वर्षों में वे संपीड़ित होकर कोयला में परिवर्तित हो जाते हैं। 

वर्तमान में प्राप्त होने वाला कोयला कार्बोनिफरस(लगभग 30 करोड वर्ष पूर्व) युग में बना था। 

कोयला के गुण एवं उपयोग

  • हाइड्रोकार्बन से निर्मित शैल है, जिस के दहन से ऊष्मा तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। 

  • कोयले का व्यापक मात्रा में उपयोग ताप विद्युत ग्रहों में विद्युत बनाने के लिए किया जाता है।

  • कोयला का उपयोग ईटों के भक्तों में ईंटों को पटाने के लिए भी किया जाता है, पहले इसका उपयोग रेल इंजन को चलाने में किया जाता था।  

कोयले का वितरण एवं उत्पादन-: 

विश्व में-: 

कोयले का सर्वाधिक उत्पादन चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया,रूस, भारत आदि देशों में होता है। 

भारत में-: 

 भारत कोयले का कुल भंडारण लगभग 319 billion (अरब) टन है। 

भारत में कोयला मुख्यत: नदी घाटियों के किनारे पाया जाता है। 

जैसे-: दामोदर नदी घाटी

सोन नदी घाटी

महानदी नदी घाटी में। 

भारत की प्रमुख कोयला खदान-: 

  • छत्तीसगढ़-: कोरबा, तातापानी, रामकोला कोयला क्षेत्र। 

  • झारखंड-: झरिया (धनबाद), बोकारो। 

  • ओड़िशा-: तलचर, संबलपुर क्षेत्र

खनिज तेल-: 

खनिज तेल या पेट्रोलियम ज्वलनशील हाइड्रोकार्बन पदार्थ होता है जो मुख्यतः टर्सरी युग की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है,

पेट्रोलियम के उत्पाद-: 

  • डामर

  • मोम

  • स्नेहक

  • डीजल

  • केरोसिन

  • पेट्रोल

  • प्राकृतिक गैस-: एलपीजी, सीएनजी, मेथेन, एथेन ,प्रोपेन.

पेट्रोलियम का उपयोग-: 

  • परिवहन के साधनों में ईंधन के रूप में ‌

  • औद्योगिक गतिविधि एवं कृषि कार्यों के लिए। 

  • मशीनों में स्नेहक के रूप में। 

  • घरेलू ईंधन जैसे एलपीजी सीएनजी बनाने के लिए। ‌

  • अन्य उपयोग जैसे-: सड़क निर्माण ,कोलतार निर्माण, पॉलिश निर्माण। 

पेट्रोलियम का निर्माण-: 

पेट्रोलियम का निर्माण सूक्ष्म जीव जंतुओं के अवशेषों में अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण होता है।  

पेट्रोलियम का उत्पादन एवं वितरण

पेट्रोलियम मुख्यतः अवसादी क्रम की चट्टानों में पाया जाता है किंतु निश्चित नहीं होता कि प्रत्येक अवसादी चट्टान में पाया ही जाए , अर्थात पेट्रोलियम का वितरण असमान है। 

विश्व में-: 

पेट्रोलियम का सर्वाधिक उत्पादन सऊदी अरब ,अमेरिका ,रूस ,चीन, इराक, ईरान जैसे देशों में होता है। 

भारत में-: 

भारत में पेट्रोलियम या खनिज तेल का कुल भंडारण लगभग 450 करोड़ बैरल है। 

भारत के प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र-: 

  • असम मेघालय क्षेत्र-: माकूम, डिगबोई। 

  • गुजरात का तटीय क्षेत्र-: 

खम्भात, अंकलेश्वर,कल्लोर में

  • मुंबई हाई तेल क्षेत्र-: मुंबई का टटीय क्षेत्र, बेसीन क्षेत्र। 

  • पूर्वी अपतटीय क्षेत्र-: राव्वा अपतटीय क्षेत्र। 

प्राकृतिक गैस-: ‌

प्राकृतिक गैस विभिन्न कार्बन युक्त गैसों का सम्मिश्रण होती है, जिसमें लगभग 80% मीथेन होती है। प्राकृतिक गैस मुख्यता पेट्रोलियम भंडार के क्षेत्र में पेट्रोलियम के ऊपर तैरती हुई अवस्था में पाई जाती है। हालांकि अनेकों स्थानों में यह स्वतंत्र अवस्था में भी मिलती है। 

प्राकृतिक गैस के रूप-: 

  • लिक्विड पेट्रोलियम गैस(LPG)-: इसके मुख्य घटक ब्यूटेन एवं प्रोपेन है। 

  • संपीड़ित प्राकृतिक गैस(CNG)-: इसके मुख्य घटक मीथेन ईथेन एवं प्रोपेन होते हैं

  • पाइप्ड नेचुरल गैस-: (PNG)-: 

तरल प्राकृतिक गैस और संपीडित प्राकृतिक गैस में अंतर

.तरल प्राकृतिक गैस और संपीडित प्राकृतिक गैस में अंतर

प्राकृतिक गैस का उपयोग-: 

  • सी एन जी के रूप में वाहनों के ईंधन में ।

  • एलपीजी के रूप में घरेलू ईंधन में। 

  • विद्युत निर्माण में ।

  • उर्वरक एवं खाद निर्माण में। 

प्राकृतिक गैस का उत्पादन एवं वितरण-: 

विश्व में-: 

प्राकृतिक गैस के सर्वाधिक उत्पादक देश

  • अमेरिका

  • कनाडा

  • रूस। 

भारत में-: 

जिन क्षेत्रों में पेट्रोलियम प्राप्त होता है। जैसे -: मुंबई हाई तेल क्षेत्र। 

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