[नीति शास्त्र एवं नैतिकता परिचय]
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Toggleनीति शास्त्र -:
नीति शास्त्र शब्द अंग्रेजी भाषा के “ethics” शब्द का पर्याय है जो ग्रीक भाषा के ethica शब्द से बना है जिसका अर्थ है रीति रिवाज।
नीति शास्त्र वह आदर्श मूलक, मानवीय विज्ञान है, जिसके अंतर्गत समाज स्वीकृत मानकों,नियम-कानूनों तथा मानवीय मूल्यों के आधार पर, मनुष्य के आचरण का अध्ययन एवं मूल्यांकन(उचित या अनुचित) किया जाता है।
आचरण का तात्पर्य-: मनुष्य की ऐच्छिक क्रियाओं या कर्मों से है।
जैसे-: यदि कोई व्यक्ति सामाजिक मान्यताओं के अनुसार आचरण करता है तो वह व्यक्ति संबंधित समाज के संदर्भ में नीतिगत है।
परिभाषा
विलियम लिली के अनुसार -: “नीति शास्त्र उन मानकों की व्याख्या प्रस्तुत करता है जिनसे हम व्यक्ति के कर्मों के उचित अथवा अनुचित होने का निर्णय लेते हैं”
नैतिकता-:
नैतिकता शब्द अंग्रेजी भाषा के morality शब्द का पर्याय है, जो लैटिन भाषा के “moras” शब्द से बना है जिसका अर्थ है-: रीति या प्रचलन।
नैतिकता नीति शास्त्र की वह व्यवहारिक अवधारणा है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने मानवीय मूल्य या व्यक्तिगत अंतर्मन के बोध के अनुसार, उचित आचरण या व्यवहार करता है।
उदाहरण के लिए-: यदि कोई व्यक्ति अपनी अंतरात्मा के बोध से किसी असहाय व्यक्ति की सहायता करता है तो उसका कृत नैतिक कृत कहलाएगा।
आर.एम. मैकाइवर के अनुसार-: “नैतिकता का तात्पर्य नियमों की उस व्यवस्था से है ,जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के अंतर्मन को अच्छे या बुरे का बोध होता है। “
नीतिशास्त्र और नैतिकता में अंतर-:
नीति शास्त्र का तात्पर्य सामाजिक मान्यताओं , नियमों कानूनों तथा मूल्यों के आधार पर व्यक्ति के आचरण का मूल्यांकन करने से है, जबकि नैतिकता का तात्पर्य मनुष्य द्वारा व्यक्तिगत अंतर्मन के बोध के अनुसार आचरण करने से है।
नीति शास्त्र दर्शन शास्त्र से संबंधित एक विषय है जबकि नैतिकता नीतिशास्त्र का एक अंग है।
नीति शास्त्र के मानक वस्तुनिष्ठ होते हैं अर्थात ये मानक सामाज या कानून द्वारा स्वीकृत होते हैं जबकि नैतिकता के मानक व्यक्तिगत होते हैं केवल व्यक्ति की अंतरात्मा द्वारा स्वीकृत होते हैं।
नीति शास्त्र के मानक सिद्धांतिक होते हैं जो उचित एवं अनुचित का मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जबकि नैतिकता के मानक अधिक व्यवहारिक होते हैं जिनके आधार पर व्यक्ति, व्यक्तिगत निर्णय लेता है।
व्यक्ति ,नीति शास्त्र के मानकों का पालन कानून या समाज के कहने पर करता है, जबकि नैतिकता का पालन मानसिक संतुष्टि के लिए अंतरात्मा के कहने पर करता है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-: यदि राशन कार्ड बनाने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिए गए हैं कि वह केवल 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले परिवारों का राशन कार्ड बनाए, किंतु यदि उसके पास कोई ऐसा पीड़ित व्यक्ति आता है जिसके पास 2 हेक्टेयर से अधिक जमीन तो है किंतु वह जमीन असिंचित एवं जंगली जानवरों से असुरक्षित है, जिस कारण से वह कृषि नहीं कर पाता और बेहद गरीब है उसके पास खाने तक के लिए अन्य नहीं है ,और वह उस अधिकारी से हाथ जोड़कर यह निवेदन करता है कि मेरा राशन कार्ड बना दो, और अधिकारी को भी यह पता है कि उस व्यक्ति की स्थिति वास्तव में ऐसी ही है, अतः अधिकारी की अंतरात्मा कहती है कि राशन कार्ड बना देना चाहिए जबकि कानून के अनुसार नहीं बनना चाहिए, यदि अधिकारी राशन कार्ड बना देता है तो वह नैतिक तो है लेकिन नीतिगत नहीं जबकि यदि वह राशन कार्ड नहीं बनाता तो नीतिगत तो है लेकिन नैतिक नहीं होगा।
नीति शास्त्र की शाखाएं(आयाम)-:
मानकीय नीतिशास्त्र-:
मानकीय नीतिशास्त्र ,नीति शास्त्र का वह आयाम है, जिसमें विभिन्न आधारों पर नैतिक कार्य करने के मानक निर्धारित किए जाते हैं, अर्थात इसमें यह बताया जाता है कि व्यक्ति का आचरण कैसा होना चाहिए? क्या करना उचित होगा?
उदाहरण-: इसमें इस प्रकार का अध्ययन किया जाता है कि “क्या किसी की हत्या करना गलत है?”
मानकीय नीतिशास्त्र की 3 शाखाएं हैं
नियम वादी
प्रयोजनवाद
सद्गुण वादी,
नियमवादी नीति शास्त्र-:
नीति शास्त्र की इस शाखा के अनुसार किसी कार्य के नैतिक अथवा अनैतिक होने का निर्णय नैतिक नियमों के आधार पर लिया जाता है अर्थात कोई भी कार्य नैतिक तभी माना जाता है जब वह नैतिक नियमों के आधार पर किया गया हो, जैसे -:”भाई-बहन का विवाह ना किया जाना एक नैतिक नियम है,” पर यदि कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करके भाई या बहन से शादी करता है तो वह अनैतिक सिद्ध होगा। उसी प्रकार किसी कारण बस भी हिंसा करना अनैतिक होगा।
प्रयोजनवाद नीति शास्त्र-:
नीति शास्त्र की इस शाखा के अनुसार किसी भी कार्य के नैतिक अथवा अनैतिक होने का निर्णय उस कार्य के परिणामों से तय होता है। अर्थात यदि परिणाम सकारात्मक है तो कार्य को नैतिक माना जाएगा। उदाहरण के लिए-: यदि कोई व्यक्ति किसी लड़की को बलात्कार से बचाने के लिए उस लड़की को छोड़ने वाले लड़कों की हत्या कर देता है तो वह नैतिक कहलाएगा।
सद्गुण नीतिशास्त्र-:
नीति शास्त्र की इस शाखा के अनुसार किसी कार्य के नैतिक अथवा अनैतिक होने का निर्णय सद्गुण युक्त व्यक्ति के द्वारा लिया गया निर्णय के आधार पर किया जाता है।
उदाहरण के लिए-: वर्तमान में न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर ही किसी भी कार्य को उचित अथवा अनुचित माना जाता है।
अधि नीतिशास्त्र-:
अधि नीति शास्त्र, नीति शास्त्र का वह आयाम है, जिसमें नीति शास्त्र से जुड़े शब्दों एवं मान्यताओं के अभिप्राय का विश्लेषण किया जाता है। अर्थात इसमें यह नहीं बताया जाता कि व्यक्ति को कैसा नैतिक आचरण करना चाहिए बल्कि यह बताया जाता है कि नैतिकता क्या है,
उदाहरण के लिए-: इसमें इस प्रकार का अध्ययन किया जाता है कि “उचित एवं अनुचित क्या है?”
व्यावहारिक नीतिशास्त्र-:
व्यावहारिक नीतिशास्त्र, नीतिशास्त्र का वह आयाम है, जिसमें विभिन्न व्यावहारिक (सर्वजनिक) क्षेत्रों जैसे-: चिकित्सा , पर्यावरण ,व्यापार, पत्रकारिता आदि के संदर्भ में नैतिकता का मूल्यांकन किया जाता है। अर्थात इसमें यह बताया जाता है कि विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को विभिन्न व्यवहारिक मुद्दों पर क्या निर्णय लेना चाहिए?
उदाहरण के लिए-: इसमें इस प्रकार का अध्ययन किया जाता है कि”क्या डॉक्टर को यूथिनिसिया दे देनी चाहिए?”
व्यावहारिक नीति शास्त्र को कई शाखा में विभाजित किया गया है जैसे-:
चिकित्सा नीति शास्त्र
पत्रकारिता नीति शास्त्र
प्रशासनिक नीति शास्त्र
व्यवसायिक एक नीति शास्त्र
पर्यावरण नीति शास्त्र
राजनीतिक नीति शास्त्र।
प्रशासनिक नीतिशास्त्र-:
नीति शास्त्र की इस शाखा के अंतर्गत प्रशासनिक अधिकारियों अर्थात लोक सेवकों के लिए नैतिक मापदंडों का विनियमन एवं मूल्यांकन किया जाता है। अर्थात इसमें यह तय किया जाता है, प्रशासनिक अधिकारियों को किस आधार पर प्रशासनिक निर्णय लेने चाहिए?
उदाहरण के लिए”प्रशासनिक अधिकारियों सर्वोपरि कार्य नियम आधारित लोकहित होना चाहिए”
नीति शास्त्र का महत्व-:
नीति शास्त्र जितना सैद्धांतिक विषय है उससे ज्यादा व्यावहारिक विषय है यह हमें उचित एवं अनुचित का बोध कराकर उचित आचरण करने तथा विभिन्न पहलुओं का ध्यान रखते हुए किसी भी समस्या का उपयुक्त निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने में सहायक है इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में भी नीतिशास्त्र का अपना अलग महत्व है-:
सामाजिक क्षेत्र में-:
नीतिशास्त्र हमें उचित और अनुचित के मध्य भेद स्पष्ट करती है जिससे हम सामाजिक क्षेत्र की विभिन्न अच्छाइयों और बुराइयों को समझ पाते हैं और विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे-: लिंग असमानता, अस्पृश्यता, यौन उत्पीड़न, बाल विवाह ,दहेज प्रथा को समाप्त करने का प्रयास करते हैं जिससे सामाजिक सद्भाव में बढ़ोतरी होती।
आर्थिक क्षेत्र में-:
नीति शास्त्र हमें यह सिखाती है कि हमें धोखा, बेईमानी, चलाकी करके धन नहीं कमाना चाहिए अतः इसकी सीख से भय मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
प्रशासनिक क्षेत्र में-:
नीति शास्त्र प्रशासन में जवाबदेही , पारदर्शिता, सत्य निष्ठा, निष्पक्षता, जन सहभागिता, संवेदनशीलता बढ़ाने तथा भ्रष्टाचार ,लालफीताशाही ,नौकरशाही, दायित्व के पलायन को समाप्त करने या कम करने में सहायक है।
क्योंकि प्रशासनिक नीति शास्त्र में प्रशासनिक अधिकारियों की एक अलग आचार संहिता निर्धारित की जाती है, जिसमें नैतिक मानकों का समावेशन होता इसके अनुसार ही प्रशासनिक अधिकारियों को कार्य करना होता है।
आचरण
आचरण का तात्पर्य-: मनुष्य की ऐच्छिक क्रियाओं या कर्मों से है।
उदाहरण के लिए-: यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से सदैव माता-पिता के रोजाना चरण छूता है तो यह उसका आचरण है।
चरित्र-:
व्यक्ति के आचरणों(स्वभाव) की अभिव्यक्ति चरित्र कहलाता है,
उदाहरण के लिए-: यदि कोई व्यक्ति नैतिक कर्मों जैसे- इमानदारी ,बड़ों का आदर करने का आचरण रखता है तो उसे चरित्रवान कहा जाता है।
नैतिक कर्म-:
ऐसे कर्म में जो समाज, कानून के अनुसार उचित एवं प्रशंसनीय हों, उन्हें नैतिक कर्म कहते हैं जैसे-: अतिथि का आदर करना, परोपकार करना, पीड़ित की सहायता करना।
अनैतिक कर्म-:
ऐसे कर्म जो समाज या कानून के अनुसार अनुचित एवं अप्रशंसनीय हों, उन्हें अनैतिक कर्म कहते हैं जैसे-: भ्रष्टाचार, बलात्कार, बेवजह मारना पीटना।
नीति शून्य कर्म-:
ऐसे करने जिन्हें ना तो उचित और ना ही अनुचित कहा जा सकता है उन्हें नीतिशून्य कर्म कहते हैं,
जैसे-: छोटे बच्चों की हरकतें।
विवेक-:
उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ की पहचान करने की क्षमता विवेक कहलाती है।
जैसे-: यदि कोई हंसते हुए व्यक्ति के मन की आंतरिक उदासी को पहचान लेता है तो वह विवेकशील है।
सदाचार-:
सदाचार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सत्+आचार यहां पर सत् का अर्थ है -:उत्तम और आचार का अर्थ-: आचरण।
अर्थात अच्छा या उत्तम आचरण रखना समाचार कहलाता है।
नैतिकता की मूलभूत विशेषताएं-:
नैतिकता अंतरात्मा की आवाज होती है।
नैतिकता समाज द्वारा सामान्य रूप से स्वीकृत होती है।
नैतिकता तर्क एवं विवेक पर आधारित होती है।
नैतिकता समय एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित हो सकती है।
नैतिकता का संबंध मानव(बच्चों को छोड़कर) से होता है।