भ्रष्टाचार निवारण हेतु सरकारी प्रयास
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Toggleभ्रष्टाचार भारतीय शासन एवं प्रशासन की सबसे बड़ी समस्या है और इसे रोकने के लिए आजादी के बाद से ही ढांचागत एवं कानूनी प्रयास शुरू किए गए थे जिसका विवरण निम्नलिखित है:-
संस्थागत प्रयास:-
केंद्रीय सतर्कता आयोग का निर्माण।
केंद्रीय सूचना आयोग का निर्माण।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्थापना।
भ्रष्टाचार नियंत्रक कानून:-
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 एवं संशोधित अधिनियम 2018।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
लोक सेवा गारंटी अधिनियम 2010
व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम 2014।
बेनामी संपत्ति व लेनदेन अधिनियम 2016।
सिविल सेवकों के लिए आचार संहिता।
लोकायुक्त अधिनियम 2013।
केंद्रीय सतर्कता आयोग
केंद्रीय सूचना आयोग-
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो
यह केंद्र सरकार की प्रमुख अनुसंधान एजेंसी है जिसकी स्थापना भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए वर्ष 1963 में की गई। पहले यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती थी किंतु अब यह स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करती है।
इसके कार्य:-
भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों ,आर्थिक अपराधों की निष्पक्ष जांच करना।
न्यायालय या राज्य सरकार के द्वारा निर्देश मिलने पर अन्य असंगठित अपराधों की जांच करना।
लोकपाल एवं केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की सहायता करना।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947:-
यह भ्रष्टाचार निवारण हेतु स्वतंत्र भारत में लाया गया पहला अधिनियम था। इस अधिनियम में “पद कर्तव्य के निर्वहन में कदाचार करने”को भ्रष्टाचार के रूप में परिभाषित किया गया था, जिसके लिए 1 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान था।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988:-
1947 के उपरांत, भ्रष्टाचार के निवारण एवं नियंत्रण हेतु 1988 में व्यवस्थित रूप से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम बनाया गया जिसमें 5 अध्याय एवं 31 धाराएं हैं किंतु हाल ही में इस अधिनियम में संशोधन करके भ्रष्टाचार निवारण संशोधित अधिनियम 2018 बनाया गया जिसकी प्रमुख विशेषता निम्नलिखित हैं:-
इस संशोधित अधिनियम में रिश्वत लेने वाले के साथ साथ रिश्वत देने वाले को भी भ्रष्टाचार के दायरे में लाया गया है।
लेकिन रिश्वत देने वाले व्यक्ति से बाध्यतापूर्ण तरीके से रिश्वत ली जाती है तो उसे अपना पक्ष रखने के लिए 7 दिन का समय दिया जाएगा।
इस संशोधित अधिनियम में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाले ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है।
इस अधिनियम के अंतर्गत रिटायर होने के उपरांत भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच का प्रावधान है।
इस अधिनियम के तहत लोक सेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले लोकपाल या लोकायुक्त की अनुमति लेनी होगी।
जांच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
मध्य प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम 2010
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013
सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक ऐसी संस्था की जरूरत थी जो सरकार से स्वतंत्र होकर, संपूर्ण सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार की जांच करके उसके विरूद्ध कार्रवाई कर सके, और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग- 1966 की सिफारिशों के आधार पर निर्दलीय सांसद लक्ष्मीमल सिंघवी ने सर्वप्रथम 1968 में लोकपाल विधेयक पेश किया किंतु संसद भंग होने के कारण यह पारित नहीं हो सका इसके पश्चात 1971 से लेकर 2001 तक अनेकों बार पुनः यह विधायक प्रस्तुत किया गया लेकिन पारित नहीं हो सका अंततः 2011 को लोकसभा से और 2013 को राज्यसभा से पारित हुआ और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद 16 जनवरी 2014 को पूरे देश में लागू हुआ। किंतु इस अधिनियम के लागू होने के पश्चात लगभग 5 वर्षों बाद 2019 को लोकपाल एवं संस्था का गठन हुआ और पहले लोकपाल पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष बने।
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के मुख्य प्रावधान:-
केंद्र में लोकपाल समिति और राज्य में लोकायुक्त समिति की स्थापना होगी।
लोकपाल एवं लोकायुक्त संस्था में अध्यक्ष के अलावा अधिकतम आठ सदस्य होंगे
लोकपाल समिति एवं लोकायुक्त समिति में आधे सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि वाले होंगे तथा शेष आधे सदस्य अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग एवं महिला तथा अल्पसंख्यक वर्ग से होंगे।
लोकपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर होगी जिसमें निम्न पदाधिकारी शामिल होंगे-
प्रधानमंत्री
लोकसभा अध्यक्ष
लोकसभा में विपक्ष का नेता
भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत न्यायाधीश।
राष्ट्रपति द्वारा चयनित प्रतिष्ठित न्यायविद्।
इसी तरह राज्य की लोकायुक्त समिति सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर होगी और चयन समिति में नियमित सदस्य शामिल होंगे-
मुख्यमंत्री
विधानसभा का अध्यक्ष
विधानसभा के विपक्ष का नेता
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
राज्यपाल द्वारा नामित प्रतिष्ठित व्यक्ति।
लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में ए,बी,सी,डी श्रेणी के सभी अफसर, मंत्री सांसद, कुछ संरक्षण के साथ प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री एवं सरकार से वित्तीयन करने वाली सभी संस्थाएं आती हैं।
लोकपाल अधिनियम की कमियां
बेशक यह अधिनियम सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार कुशासन पर लगाम लगाने वाला महत्वपूर्ण अधिनियम है,किंतु इसमें भी कुछ ऐसी कमियां हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता है-
इस अधिनियम में भ्रष्टाचार के विरुद्ध गुप्त शिकायत करने की अनुमति नहीं दी गई है।
इस अधिनियम को राजनीतिक दल जैसी संस्थाओं के दायरे से बाहर रखा गया है। जबकि चुनाव के समय राजनीतिक दल सर्वाधिक भ्रष्टाचार करते हैं।
इस अधिनियम के अनुसार लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति में राजनेताओं (प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता, लोकसभा का अध्यक्ष) का महत्वपूर्ण स्थान रखा गया है अतः यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं है।
वर्ष 2016 में लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में संशोधन करके यह प्रावधान कर दिया गया है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपना पद ग्रहण करने के 30 दिन के भीतर अपनी संपत्ति लेनदारी वह देनदारी का विवरण लोकपाल अथवा लोकायुक्त समिति को देगा।
बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम 2016
सामान्यता यह देखा जाता है कि लोक प्रशासक भ्रष्टाचार करके, अपनी संपत्ति स्वयं के नाम पर नहीं कर पाते बल्कि अपने किसी परिचित के नाम पर करवा देते हैं ताकि वे संपत्ति अधिक संग्रहण के कानून से बच सकें, अतः इसी भ्रष्टाचार के तरीके पर पाबंदी लगाने के लिए वर्ष 1988 में बेनामी लेनदेन प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया, जिसमें बस 2016 को संशोधन किया गया,
इस संशोधित बेनामी संपत्ति लेनदेन प्रतिषेध अधिनियम 2016 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति (प्रशासक) बेनामी संपत्ति खरीदता है तो उसे 7 साल तक की सजा का प्रावधान है तथा बेनामी संपत्ति सरकार बिना मुआवजा के जप्त कर सकती है।
अन्य:-
उपरोक्त भ्रष्टाचार विरोधी आयोग एवं अधिनियम के अलावा, भ्रष्टाचार को कम करने के लिए सरकार द्वारा कुछ अन्य प्रावधान भी किए गए जैसे- सामाजिक लेखापरीक्षण, नागरिक अधिकार पत्र एवं जागरूकता कार्यक्रम।
सामाजिक लेखापरीक्षण:-
सामाजिक लेखा परीक्षण प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत किसी सरकारी योजना या कार्यक्रम से संबंधित कार्यों की उपलब्धि, गुणवत्ता एवं प्रभाव आदि की जांच एवं मूल्यांकन उस योजना के लाभार्थियों (जनसाधारण) द्वारा किया जाता है। अर्थात यह निचले स्तर (आम लोग) द्वारा उच्च स्तर की जांच की प्रक्रिया है।
इसके लाभ-
प्रशासनिक भ्रष्टाचार में कमी आएगी।
योजनाओं का समुचित लाभ लाभार्थियों को प्राप्त हो पाएगा।
प्रशासन के प्रति जनता की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
प्रशासन में जन सहभागिता में बढ़ोतरी होगी।
सरकारी संसाधनों की बर्बादी में कमी आएगी।
भ्रष्टाचार निवारण में अन्य की भूमिका
लोकपाल
लोकपाल शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- लोक + पाल। यहां पर लोग का अर्थ है लोग और पाल का अर्थ है रक्षक अर्थात वर्तमान संदर्भ में हम यह कह सकते हैं कि लोकपाल लोगों की भ्रष्टाचार रूपी दानव से रक्षा करने वाला रक्षक है।
लोकपाल केंद्रीय स्तर (भारत सरकार के स्तर) पर सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच एवं कार्रवाई करने वाली एक संस्था है जिसका प्रावधान लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में उल्लेखित है, और इसका विवरण अधोलिखित है
लोकपाल का गठन, संरचना एवं कार्यकाल:-
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अनुसार केंद्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार निवारण के लिए लोकपाल नामक संस्था होगी।
लोकपाल संस्था में एक लोकपाल एवं अधिकतम आठ सदस्य होते हैं,जिसमें से आधे सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से होते हैं तथा आधे सदस्य अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से होते हैं।
तथा लोकपाल सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश होता
है
जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर होती है,
लोकपाल की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में निम्न पदाधिकारी शामिल होते हैं-
प्रधानमंत्री
लोकसभा अध्यक्ष
लोकसभा में विपक्ष का नेता
भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत न्यायाधीश।
राष्ट्रपति द्वारा चयनित प्रतिष्ठित न्यायविद्।
लोकपाल संस्था के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या अधिकतम 70 वर्ष की आयु तक होता है।
लोकपाल को सस्पेंड नहीं किया जा सकता केवल जटिल महाभियोग द्वारा ही समय से पूर्व हटाया जा सकता है।
कार्य एवं शक्तियां-:
लोकपाल संस्था केंद्रीय स्तर के A,B,C,D समूह के सभी अधिकारी-कर्मचारी सांसद मंत्री यहां तक कि प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री तक के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच एवं कार्यवाही कर सकती है।
लोकपाल सरकार से वित्तीयन करने वाली संस्था(NGO) के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच एवं कार्रवाई का अधिकार है।
लोकपाल को जांच के दौरान सिविल न्यायालय के बराबर शक्तियां प्राप्त होती हैं।
इसे पर विशेष परिस्थितियों में भ्रष्टाचार की संपत्ति को जप्त करने का अधिकार भी है।
इसके पास सीबीआई को इसी मामले की जांच करने का निर्देश देने का अधिकार है।
आलोचना:-
यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं है।
यह संस्था संसद के प्रति उत्तरदाई नहीं है अतः यह लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रतिकूल है।
एक 9 सदस्यीय लोकपाल संस्था इतने विशाल भारत के सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार की सफाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है यह भ्रष्टाचार की शिकायतों से दबा रहता है।
लोकपाल संस्था के दायरे से न्यायपालिका एवं राजनीतिक दलों को बाहर रखा गया जबकि न्यायपालिका एवं राजनीति दलों में भी भ्रष्टाचार हो सकता है।
लोकपाल के पास गहन जांच पड़ताल करने का कोई अलग से संगठन नहीं है। वह किसी भी मामले की जांच सीबीआई से करवाता है और सीबीआई राजनीतिक हस्तक्षेप से बंधा होता है।
लोकपाल की आवश्यकता एवं महत्व-:
लोकपाल संस्था सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार से लड़ने का आम जनता का मजबूत हथियार है।
लोकपाल भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली एक स्वतंत्र संस्था है हालांकि भ्रष्टाचार विरोधी अनेकों संस्था है जैसे – सीबीआई किंतु राजनीतिक वह हस्तक्षेप से स्वतंत्र नहीं है। उसी प्रकार सतर्कता आयोग एक ऐसी संस्था है जो केवल परामर्श दे सकती है जांच नहीं कर सकती।
यह प्रशासनिक अधिकारियों एवं राजनेताओं के गठजोड़ को समाप्त करने में सहायक है क्योंकि इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त एवं निष्पक्ष रखा गया है।
यह प्रशासनिक अधिकारियों में दबाव पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा बढ़ाने में सहायक है।
लोकपाल संस्था सरकारी घपला एवं सरकारी संसाधनों के अनुचित व्यय को रोकने में सहायक है।
लोकपाल संस्था प्रशासन की कार्यकुशलता बढ़ाने भाई भतीजावाद रोकने में सहायक है।
लोकायुक्त
लोकायुक्त लोकपाल संस्था का प्रादेशिक संस्करण जो प्रदेश स्तर पर सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जांच एवं कार्यवाही करती है। मध्य प्रदेश में लोकायुक्त संस्था का गठन, मध्य प्रदेश लोकायुक्त और उप लोकायुक्त अधिनियम-1981 के तहत, 1982 में किया गया।
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम- 2013 के अनुसार लोकायुक्त के कानूनी प्रावधान-:
लोकायुक्त का गठन संरचना एवं कार्यकाल
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अनुसार प्रादेशिक स्तर पर भ्रष्टाचार निवारण के लिए लोकायुक्त नामक संस्था होगी।
लोकपाल संस्था में एक लोकायुक्त एवं अधिकतम आठ सदस्य होते हैं,जिसमें से आधे सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से होते हैं तथा आधे सदस्य अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक या महिला वर्ग से होते हैं।
तथा लोकायुक्त उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश होता है
जिनकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर होती है,
लोकायुक्त की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में निम्न पदाधिकारी शामिल होते हैं-
संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री
विधानसभा का अध्यक्ष
विधानसभा के विपक्ष का नेता
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
राज्यपाल द्वारा नामित प्रतिष्ठित व्यक्ति।
लोकायुक्त संस्था के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक होता है।
लोकायुक्त को सस्पेंड नहीं किया जा सकता केवल जटिल महाभियोग द्वारा ही समय से पूर्व हटाया जा सकता है।
कार्य एवं शक्तियां-:
लोकायुक्त को राज्य स्तर के सभी अधिकारी कर्मचारी एवं सभी मंत्रियों- विधायकों कि वृद्ध भ्रष्टाचार की जांच एवं कार्रवाई करने का अधिकार है।
लोकायुक्त राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी कंपनी ,सोसाइटी, ट्रस्ट ,अथॉरिटी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकता है।
लोकायुक्त को जांच के दौरान दीवानी न्यायालय के बराबर शक्तियां प्राप्त होती है।
लोकायुक्त को भ्रष्टाचार की संपत्ति को जब्त करने का अधिकार भी है।
लोकायुक्त राज्य की अन्वेषण एजेंसी जैसे सीआईडी के लिए किसी मामले की जांच का आदेश दे सकता है।
आलोचना:-
यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं है।
यह संस्था संसद के प्रति उत्तरदाई नहीं है अतः यह लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रतिकूल है।
एक 9 सदस्यीय लोकपाल संस्था इतने विशाल प्रदेश के सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार की सफाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है यह भ्रष्टाचार की शिकायतों से दबा रहता है।
लोकपाल संस्था के दायरे से न्यायपालिका को बाहर रखा गया जबकि न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार हो सकता है।
लोकायुक्त के पास गहन जांच पड़ताल करने का कोई अलग से संगठन नहीं है। वह किसी भी मामले की जांच सीआईडी से करवाता है और सीबीआई राजनीतिक हस्तक्षेप से बंधा होता है।
लोकपाल की आवश्यकता एवं महत्व-:
लोकायुक्त संस्था सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार से लड़ने का आम जनता का मजबूत हथियार है।
लोकायुक्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली एक स्वतंत्र संस्था है हालांकि भ्रष्टाचार विरोधी आने को संस्था है जैसे – सीबीआई किंतु राजनीतिक वह हस्तक्षेप से स्वतंत्र नहीं है। उसी प्रकार सतर्कता आयोग एक ऐसी संस्था है जो केवल परामर्श दे सकती है जांच नहीं कर सकती।
यह प्रशासनिक अधिकारियों एवं राजनेताओं के गठजोड़ को समाप्त करने में सहायक है क्योंकि इसे राजनीतिक जेब से मुक्त एवं निष्पक्ष रखा गया है।
यह प्रशासनिक अधिकारियों में दबाव पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा बढ़ाने में सहायक है।
लोकायुक्त संस्था सरकारी घपला एवं सरकारी संसाधनों के अनुचित व्यय को रोकने में सहायक है।
लोकायुक्त संस्था प्रशासन की कार्यकुशलता बढ़ाने भाई भतीजावाद रोकने में सहायक है।
लोकपाल एवं लोकायुक्त को प्रभावी बनाने के सुझाव:-
लोकायुक्त(या लोकपाल) के पास अलग से स्वयं की जांच पड़ताल करने वाली संस्था होने चाहिए।
लोकायुक्त की सिफारिशों को सरकार के लिए बाध्यकारी बनाया जाए ना कि केवल सलाहकारी।
लोकपाल के दायरे में भूतपूर्व लोक सेवकों एवं राजनैतिक दलो को भी रखा जाए।
जनसाधारण को लोकायुक्त संस्था के प्रति जागरूक किया जाए। ताकि लोग (व्हिसलब्लोअर)भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए इस संस्था का सहारा ले सके।
लोकायुक्त की सहयोगी संस्थाएं-:
विशेष पुलिस
जिला सतर्कता समितियां
विधिक विभाग
प्रशासनिक जांच विभाग
तकनीकी विभाग।
भ्रष्टाचार निवारण में समाज, परिवार, सूचना तंत्र एवं व्हिसलब्लोअर की भूमिका
भ्रष्टाचार को समाप्त करने में जितना महत्व निगरानी संस्था एवं कानूनों का है उससे भी ज्यादा महत्व समाज, परिवार ,सूचना तंत्र एवं व्हिसलब्लोअर का है क्योंकि जब तक लोग जागरूक होकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएंगे तब तक कानून नियम एवं निगरानी संस्थाएं मृत प्राय साबित होंगे।
अतः इन सभी की समृद्ध भूमिका से ही भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया जा सकता है उनकी भूमिका को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं-:
भ्रष्टाचार निवारण में समाज की भूमिका:-
समाज व्यक्तियों का समूह होता है जहां पर सभी व्यक्ति एक दूसरे को प्रभावित करते तथा एक दूसरे से प्रभावित भी होते हैं और चूंकि प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारी समाज का भी अभिन्न अंग होते हैं अतः उन पर समाज का कभी ज्यादा प्रभाव पड़ता है और समाज के प्रभाव से भ्रष्टाचार का उन्मूलन किया जा सकता है इस संदर्भ में समाज की भूमिका निम्नलिखित है
वर्तमान में भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त हो गई है, यह माना जाता है कि भ्रष्टाचार तो होता ही है और यह ज्यादा बड़ा गुनाह नहीं है किंतु यदि समाज भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा अपराध स्वीकार करके भ्रष्टाचारी को अपराधी जैसा समझने लगे तो भ्रष्टाचार कम होगा क्योंकि भ्रष्टाचारी सामाजिक अपमान के डर से भ्रष्टाचार नहीं करेगा।
यदि समाज भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को बहिष्कृत करने लगे तो भी भ्रष्टाचार नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि भ्रष्टाचारी बहिष्कार के डर से भ्रष्टाचार नहीं करेगा।
समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन चलाकर, अर्थात समाज को भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागृत करके भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है। क्योंकि समाज भ्रष्टाचार के विरुद्ध संगठित होकर आवाज उठाएगा जिससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।
विभिन्न सामाजिक कुरीतियां भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है इन सामाजिक कुरीतियों का समापन करके भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है जैसे- दहेज प्रथा के कारण सरकारी कर्मचारी अपनी बेटी की शादी में अधिक दहेज देने के लिए पैसा जुटाने के चक्कर में भ्रष्टाचार करते हैं यदि दहेज प्रथा समाप्त कर दी जाए तो भ्रष्टाचार कम हो जाएगा।
भ्रष्टाचार को रोकने में परिवार की भूमिका:-
भारत जैसे देशों का प्रत्येक व्यक्ति परिवार से बंधा होता है, परिवार के लिए ही समर्पित होता है अर्थात उसके ऊपर परिवार काफी ज्यादा प्रभाव एवं नियंत्रण रहता है।
अतः परिवार भ्रष्टाचार को कम करने में निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है-
परिवार अपने बच्चों में नैतिक मूल्यों जैसे- सदाचार, ईमानदारी,सत्यनिष्ठा आदि मूल्य भरकर बच्चे को भविष्य में भ्रष्टाचारी बनने से रोक सकता है।
अधिकांश सरकारी कर्मचारी परिवार को विलासतापूर्वक जीवन प्रदान करने के लिए भ्रष्टाचार करते हैं किंतु यदि परिवार विलासिता पूर्ण जीवन अस्वीकार करके, सीमित आय से अपना खर्च चलाए तो भ्रष्टाचार पर रोक लग सकती है।
भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति पर परिवार के अन्य सदस्यों जैसे- पत्नी बच्चों द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी दबाव बनाकर भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। जैसे यदि पत्नी कहे कि यदि आप भ्रष्टाचार से कमाया हुए ध्यान लाएंगे तो मैं आपको छोड़कर चली जाऊंगी। बच्चे कहां कि हमें भ्रष्टाचार के पैसों से मेंहगे स्कूलों में नहीं पढना।
इसके अलावा परिवार की जिम्मेदारी भ्रष्टाचार को हतोत्साहित करती है , क्योंकि भ्रष्टाचारी को इस बात की चिंता रहती है कि यदि वह भ्रष्टाचार के मामले में जेल चला गया तो उसके परिवार का क्या होगा? इसलिए वह भ्रष्टाचार ना करने के लिए प्रेरित होता है।
भ्रष्टाचार निवारण में सूचना तंत्र अर्थात मीडिया की भूमिका:-
जनसंचार का सबसे सशक्त माध्यम सूचना तंत्र अर्थात मीडिया मीडिया के अंतर्गत प्रिंट मीडिया जैसे- अखबार पत्र , मैगजीन। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे-: टीवी ,रेडियो। सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, यूट्यूब। आदि शामिल है और यह सूचना तंत्र नियमित तरीके से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लगाने में सहायक है:-
भ्रष्टाचार विरोधी जागरूकता फैलाकर-
मीडिया सामान्य जन के बीच भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरूकता जागरूकता फैलाती है जैसे-भ्रष्टाचार को अपराध के रूप में दर्शाकर इसके विरुद्ध लोगों के मन में उत्तेजना जागृत कराती है और भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के बारे में लोगों को अवगत कराती है इससे लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने में सक्षम बनते हैं जो भ्रष्टाचार उन्मूलन का सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
भ्रष्टाचारी की निंदा करके-
मीडिया एक सार्वजनिक मंच होता है जहां पर भ्रष्टाचारी की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती है अतः इस सर्वजनिक अपमान के डर से भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार ना करने के लिए प्रेरित होता है।
नैतिक मूल्यों का प्रचार प्रसार करके-
मीडिया में सत्य निष्ठा ईमानदारी सदाचार जैसे मूल्यों की प्रशंसा की जाती है इससे सामान्य लोग नैतिक मूल्यों की ओर अग्रसर होते हैं और भ्रष्टाचार जैसे मूल्यों को अपराध की दृष्टि से देखते हैं। इससे भी भ्रष्टाचार कम होता है,क्योंकि आने वाली पीढ़ी भ्रष्टाचारी नहीं बनती।
निरीक्षण करके-
मीडिया विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों का अचौक निरीक्षण करके भ्रष्टाचारियों को सीधे तौर पर भी सूचना व संचार के माध्यम से सार्वजनिक मंच पर ले आती है। अर्थात यह भ्रष्टाचार के नियंत्रण में सहायक है
आंकड़ों का खुलासा करके-
मीडिया स्टिंग्स ऑपरेशन ओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार के घोटालों एवं भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करके, भ्रष्टाचारियों को सामने लाती है।
इन सभी के अलावा वर्तमान में लगभग प्रत्येक के परिवार के पास स्मार्टफोन जैसे उपयोगी उपकरण उपलब्ध हो गए हैं जिनके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति पत्रकार बन चुका है और किसी भी संस्थानों की आसानी से फोटो खींचकर आवाज रिकॉर्ड करके या कॉल रिकॉर्डिंग करके वीडियो बनाकर भ्रष्टाचारियों के कारतूस सार्वजनिक मंच पर ले आता है जिससे भी व्यापक मात्रा में भ्रष्टाचार पर रोक लगती है।
भ्रष्टाचार निवारण में व्हिसलब्लोअर की भूमिका-:
व्हिसलब्लोअर वह व्यक्ति होता है जो भ्रष्टाचार का खुलासा करके भ्रष्टाचार की सूचना संबंधित भ्रष्टाचार निवारण संस्था को देता है या भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत करता है, अतः भ्रष्टाचार के मामले को सामने लाने और भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में व्हिसलब्लोअर की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसे निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
विसलब्लोअर आरटीआई के माध्यम से भ्रष्टाचार का खुलासा करते हैं।
विसलब्लोअर संगठन में रहते हुए भी भ्रष्टाचार के खुलासे करते हैं इसलिए संगठन के अन्य व्यक्तियों को व्हिसलब्लोअर का सदैव दबाव एवं भय बना रहता है इसलिए वह भ्रष्टाचार नहीं कर पाते हैं
विसलब्लोअर अनेकों मामलों में सीधे तौर पर भी भ्रष्टाचार का खुलासा करते हैं जैसे- व्यापम घोटाला का खुलासा।
चूंकि व्हिसलब्लोअर वह व्यक्ति होता है जो स्वयं को संकट में डाल कर पूरे सरकारी तंत्र के विरुद्ध भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है अतः सरकार की यह जिम्मेदारी है कि व्हिसलब्लोअर को पर्याप्त संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करे, इसी उद्देश्य के तहत सरकार द्वारा वर्ष 2014 को व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम 2014 पारित किया गया जिसमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध सही जानकारी देने वाले व्हिसलब्लोअर को सुरक्षा एवं संरक्षण देने तथा उसकी पहचान गुप्त रखने का प्रावधान है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल-:
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल या अंतरराष्ट्रीय पारदर्शिता एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी गैर लाभकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1993 को जर्मनी में हुई थी इसका मुख्यालय जर्मनी की राजधानी बर्लिन में स्थित है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना तथा सभी संस्थाओं एवं संगठनों में पारदर्शिता, जवाबदेहिता और अखंडता को बढ़ावा देना है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के कार्य-:
भ्रष्टाचार निवारण के उपाय एवं संसाधनों का विकास करके इनके प्रयोग को बढ़ावा देती है।
यह संस्था विसलब्लोअर को सुरक्षा एवं सहायता प्रदान करती है ताकि भ्रष्टाचार उजागर हो और भ्रष्टाचार पर रोक लगे।
वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार से संबंधित विभिन्न सूचकांक एवं रिपोर्ट का प्रकाशन करती है जैसे-
भ्रष्टाचार बोध सूचकांक
वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर
रिश्वत दाता सूचकांक
राजस्व पारदर्शिता संवर्धन
आलोचना:-
यह संस्था भ्रष्टाचार के विरुद्ध जांच एवं कार्रवाई नहीं करती है जो भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए आवश्यक है।
इस संस्था द्वारा प्रकाशित भ्रष्टाचार के सूचकांकों में पूर्ण शुद्धता नहीं रहती।
इस संस्था में विकसित और विकासशील देशों के मध्य भेदभाव का आरोप लगा है
यह संस्था ऐसी कंपनियों से भी अनुदान ग्रहण करती है जो पूर्व में भ्रष्टाचार की गतिविधियों में संलिप्त रह चुकी है। इससे इसकी संत्यनिष्ठा पर संदिग्ध रहता है।
भ्रष्टाचार का मापन-:
चूंकि भ्रष्टाचार का संबंध व्यक्ति के कार्य एवं व्यवहार के गलत आचरण से होता है अतः इस को मापना काफी कठिन प्रक्रिया है और इसकी निरपेक्ष माप संभव नहीं है पता है इसके सापेक्ष माप ही संभव है और सापेक्ष माप के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों के मध्य रैंकिंग देकर भ्रष्टाचार का मापन किया जाता है,
वर्तमान में भ्रष्टाचार के अनेकों सूचकांक एवं रिपोर्ट प्रकाशित होती है जिनका विवरण निम्नलिखित है-:
भ्रष्टाचार बोध सूचकांक(CPI)-:
यह सूचकांक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा वर्ष 1995 से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है, वर्तमान में इस सूचकांक 180 देशों के भ्रष्टाचार संबंधी आंकड़े शामिल होते हैं इस सूचकांक में प्रत्येक देश को 0 से 100 तक के स्कोर दिए जाते हैं कम स्कोर वाले देश को अधिक भ्रष्टाचारी एवं अधिक स्कोर वाले देश को कम भ्रष्टाचारी माना जाता है।
हाल ही में प्रकाशित भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 में भारत 40 स्कोर के साथ भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों में 86 वें स्थान पर है।
वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर(GTB):-
इसका प्रकाशन भी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है इस सूचकांक को मुख्य रूप से लोगों की भ्रष्टाचार संबंधी राय पर तैयार किया जाता है अर्थात उनसे यह पूछा जाता है कि शासकीय कार्य कराने में उन्होंने रिश्वत दी है अथवा नहीं।
जिसकी 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 39% लोगों को सरकारी काम करवाने के लिए रिश्वत देना पड़ता है।
वैश्विक रिश्वत जोखिम सूचकांक
वैश्विक रिश्वत जोखिम सूचकांक रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत 45 अंक के साथ विश्व के 194 देशों में से 77 वे स्थान पर है।
वैश्विक सत्य निष्ठा रिपोर्ट-
भ्रष्टाचार पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा-:
भ्रष्टाचार की फिल्म भारत देश की समस्या नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक प्रमुख समस्या है अतः पूरे विश्व से भ्रष्टाचार को कम करने के लिए वर्ष 2003 को तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध में एक बैठक आयोजित की जिसमें भ्रष्टाचार के निवारण की एक घोषणा हुई जिसे भ्रष्टाचार पर संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रसंविदा के नाम से जाना जाता है
संयुक्त राष्ट्र संघ की इस प्रसंविदा में कुल 8 अध्याय एवं 71 अनुच्छेद हैं।
इस घोषणा में वर्तमान में लगभग 187 देश शामिल हैं अर्थात उन्होंने अपनी सहमति व्यक्त की है।
प्रमुख प्रावधान-:
इस प्रसंविदा में अनेकों प्रावधान है, जिनको मुक्ता 5 भागों में बांटा जा सकता है।
निवारक प्रावधान
इस घोषणापत्र में भ्रष्टाचार को रोकने वाले निरोधक प्रावधान है जैसे- भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाओं की स्थापना, राजनीतिक दलों में मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाए जाने का प्रावधान।
अपराधिक प्रवर्तन
संयुक्त राष्ट्र संघ के इस घोषणापत्र में भ्रष्टाचार को अपराध के रूप में परिभाषित करने का प्रावधान है। ताकि भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता समाप्त हो और भ्रष्टाचार पर लगाम लगे।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
इस घोषणापत्र में भ्रष्टाचार के अपराधियों को सजा दिलाने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रावधान है अर्थात एक राष्ट्र का भ्रष्टाचारी दूसरे राष्ट्र में भागकर भी भ्रष्टाचारी घोषित हो सकता है।
संपत्ति की वसूली
संयुक्त राष्ट्र की इस घोषणा पत्र में यह भी प्रावधान है कि भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वसूल की जा सकेगी।
तकनीकी सहायता
इस घोषणा पत्र में यह भी प्रावधान है कि एक देश दूसरे देश के भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए भ्रष्टाचार निरोधक तकनीकी का आदान-प्रदान करेंगे।