मनोवृति /एटीट्यूड

[मनोवृत्ति]

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किसी भी मनोवैज्ञानिक विषय जैसे -व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,विचार ,समूह ,स्थिति आदि के प्रति हमारे मन में जो (सकारात्मक अथवा नकारात्मक) सोच,भाव या दृष्टिकोण रहता है उसे मनोवृति कहते हैं। मनोवृत्ति को रवैया, नजरिया, मानसिकता, अभिवृत्ति आदि के नाम से भी जाना जाता है। 

जैसे:- किसी भिखारी के बारे में कुछ लोगों की सकारात्मक मनोवृत्ति होगी तो उसके मन में ऐसे भाव आएंगे कि  उस बेचारे के पास खाने तक के लिए कुछ नहीं है, हमें उसकी सहायता करनी चाहिए। 

जबकि दूसरी ओर कुछ लोगों की उस भिखारी के प्रति नकारात्मक मनोवृति होगी, तो उसके मन में ऐसे भाव आएंगे कि यह निकम्मा आदमी है कुछ नहीं करता, इसे भी भगवान ने 24 घंटे के लिए है लेकिन वहीं का वहीं पड़ा रहता है भीख मांगकर दूसरों को परेशान और करता है। 

अर्थात व्यक्ति किसी मनोवैज्ञानिक विषय के प्रति जो परिकल्पना करता है उसे उसकी मनोवृति कहते हैं। मनोवृति का प्रभाव उसके व्यवहार में भी दिखता है। जैसे:- भिखारी के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखने वाले व्यक्ति , जब भिखारी को दान करता है तो दिखता है। 

परिभाषा:-

एल. थर्स्टन–  “किसी मनोवैज्ञानिक विषय के पक्ष या विपक्ष में सकारात्मक या नकारात्मक भाव की तीव्रता अभिवृति या मनोवृति कहलाती है।”

“मनोवृति से आदत बनती है आदत से चरित्र बनता है। “

मनोवृति की विशेषताएं:

  • मनोवृति सामान्यतः अर्जित की जाती है न कि जन्मजात होती है। जैसे :-कोई भी बच्चा या सीखता नहीं आता कि अपना धर्म दूसरे धर्म से अच्छा है। हालांकि सीमित रूप में जन्मजात भी हो सकती है। 

  • मनोवृति अमूर्त या परिकल्पना के रूप में होती है लेकिन मनोवृति का प्रभाव मूर्त होता है। जैसे:- किसी व्यक्ति की भिखारी के प्रति सकारात्मक मनोवृति है तो वह देखेगी नहीं, लेकिन सकारात्मक मनोवृति के कारण जब वह उसे दान करेगा, तो वह दिखेगा। 

  • मनोवृति ही व्यक्ति के व्यवहार एवं व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। उदाहरण के लिए जो व्यक्ति गरीबों विकलांगों के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है उसका गरीबों के प्रति व्यवहार उदारतापूर्ण होगा। 

  • मनोवृत्ति सापेक्षिक रूप से स्थाई होती है लेकिन संबंधित मनोवैज्ञानिक विषय के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त होने पर परिवर्तित भी हो सकती है।जैसे :- एक व्यक्ति की, भिखारी के प्रति नकारात्मक मनोवृति है, लेकिन जब उसे पता चलता है कि वह भिखारी अनाथ है तो उसके प्रति उसकी मनोवृति सकारात्मक हो सकती है। 

  • मनोवृति के 3 घटक होते हैं – संज्ञानात्मक घटक, भावनात्मक घटक, व्यवहारात्मक घटक। 

  • एक ही मनोविज्ञान विषय को लेकर विभिन्न व्यक्तियों की मनोवृति भिन्न भिन्न हो सकती है, क्योंकि क्योंकि उन्हें अपने जीवन काल में भिन्न-भिन्न अनुभव प्राप्त होते हैं। 

 

मनोवृति के अध्ययन की आवश्यकता?

  • किसी विषय की पसंदगी या नापसंद की का कारण पता लगाने के लिए

किसी एक मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति, वस्तु ,स्थान)को पसंद या नापसंद किए जाने के कारण का पता लगाने के लिए,

  • सामाजिक बदलाव के लिए

हम लोगों की नकारात्मक मनोवृति जैसे- दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार ,कन्या भ्रूण हत्या आदि को परिवर्तित करके सामाजिक स्तर पर सुधार ला सकते हैं। 

  • व्यक्ति के व्यवहार का पता लगाने में सहायक:-

मनोवृति से ही व्यक्ति की आदत एवं व्यवहार का निर्माण होता है अतः मनोवृति के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार का पता लगाया जा सकता है। 

  • सभी वर्ग के प्रति सहानुभूति रखने के लिए:-

सभी वर्ग के लोगों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए सकारात्मक मनोवृति होना आवश्यक होता है। 

  • शांति सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए:-भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृति जाति धर्म के लोग रहते हैं उनकी मनोवृत्ति भी अलग-अलग होती हैं किंतु शासन व्यवस्था बनाए रखें अतः ऐसी नीतियों के निर्माण के लिए मनोवृत्ति का अध्ययन आवश्यक है जो सभी की मनोवृत्तियों के अनुरूप हो। 

मनोवृति की संरचना के तत्व अथवा घटक:-

मनोवृति की संरचना में अग्रो लिखित तीन घटक शामिल होते हैं:-

  • संज्ञानात्मक घटक

  • भावनात्मक घटक

  • व्यवहारात्मक घटक

जिन्हें संयुक्त रुप से CAB model या हिंदी में ‘संभाव्य’ सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। 

मनोवृति के तीनों घटकों का विवरण निम्नलिखित है:-

संज्ञानात्मक घटक:-

मनोवृति निर्माण का वह घटक इसके अंतर्गत हम किसी भी विषय की जानकारी एवं विश्वास के आधार पर उस विषय के प्रति सकारात्मक अथवा नकारात्मक सोच बनाते है। 

जैसे:- भिखारियों के संबंध में मुझे यह जानकारी है कि जो लोग अपनी संपत्ति को बेचकर नशा करते हैं वह भिखारी बनते हैं। इस कारण से भिखारियों की प्रति मेरा नकारात्मक दृष्टिकोण है। 

भावनात्मक घटक:-

मनोवृति निर्माण का वह घटक जिसके अंतर्गत हम किसी विषय के बारे में देखकर या सुनकर पर उस विषय के प्रति पसंदगी या नापसंदगी की भावना प्रकट करते हैं। 

जैसे:-भिखारी को देख कर घृणा का भाव आना। विदेश में हिंदी भाषी लोग मिलने पर खुशी का भाव उत्पन्न होना। 

व्यवहारात्मक घटक

मनोवृति का वह घटक जिसके अंतर्गत हम अपने भावों एवं विश्वासों के अनुसार व्यवहार करते हैं। 

जैसे:- जिस स्थान पर भिखारी हो वहां पर ना जाना, भिखारी को देख कर गंदा मुंह बनाना, भिखारी से दूर बैठना, भिखारी से हाथ ना मिला ना उसे गालियां देना। 

मनोवृति के तीनों घटकों का संबंध

सामान्यतः मनोवृति के तीनों घटक सुसंगत अवस्था में रहते हैं अर्थात तीनों घटकों के मध्य सामंजस्य होता है किंतु कभी-कभी तीनों घटकों के मध्य तालमेल टूट भी सकता है

जैसे:-किसी व्यक्ति के बारे में हमें सकारात्मक जानकारी है उसके प्रति हम सकारात्मक भावना भी रखते हैं (तो इस आधार पर हमें उसकी प्रशंसा करनी चाहिए ) लेकिन हम उसकी प्रशंसा नहीं करते। सोनू सूद

मनोवृति के प्रकार

सकारात्मक मनोवृत्ति

जब किसी मनोवैज्ञानिक विषय जैसे-: व्यक्ति वस्तु, स्थान ,स्थिति आदि के प्रति अनुकूल या सकारात्मक दृष्टिकोण होता है तो उसे सकारात्मक मनोवृति कहते हैं। 

जैसे:- यदि किसी व्यक्ति का एमपीपीएससी में चयन को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण है अर्थात उसे विश्वास है, निरंतरता के साथ पढ़ाई करने पर मेरा चयन अवश्य होगा तो उस व्यक्ति की सकारात्मक मनोवृति है। 

सकारात्मक मनोवृति आशावादी होती है जिसका जीवन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। 

नकारात्मक मनोवृति

जब किसी मनोवैज्ञानिक विषय जैसे-: व्यक्ति वस्तु, स्थान ,स्थिति आदि के प्रति नकारात्मक या प्रतिकूल दृष्टिकोण होता है तो उसे नकारात्मक मनोवृति कहते हैं। 

जैसे:- यदि किसी व्यक्ति का एमपीपीएससी में चयन को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण है अर्थात उसे यह लगता है, कि पढ़ाई करने पर भी मेरा चयन नहीं होगा तो उस व्यक्ति की मनोवृति नकारात्मक मनोवृति है। 

नकारात्मक मनोवृत्ति निराशावादी होती है जो विफलता की ओर ले जाती है। 

उभयनिष्ठ मनोवृति

जब किसी मनोवैज्ञानिक विषय जैसे-: व्यक्ति वस्तु, स्थान ,स्थिति आदि के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण होते हैं तो उसे  उभयनिष्ठ मनोवृति कहते हैं।

जैसे:- यदि किसी व्यक्ति का एमपीपीएससी में चयन को लेकर यह दृष्टिकोण है कि पता नहीं निकलेगा या नहीं तो वह उसकी उभयनिष्ठ मनोवृति कहलाएगी। 

मनोवृति के कार्य/ प्रकार्य

हमारे मन में सामान्यत : है यह प्रश्न उठता है कि व्यक्ति किसी विशेष प्रकार की मनोवृत्ति को धारण क्यों करता है? और किसी विशेष प्रकार की मनोवृत्ति धारण करने का प्रभाव क्या होता है?

और इस प्रश्न का उत्तर मनोवैज्ञानिकों ने मनोवृति के कार्य के रूप में दिये हैं जो निम्नलिखित हैं:- 

उपयोगितावादी प्रकार्य

मनोवृति हमें उपयोगी चीजों को प्राप्त करने तथा अनुपयोगी या नापसंद की चीजों से दूर रखने में हमारी मदद करती है,

क्योंकि हम उन्हीं वस्तुओं के बारे में सकारात्मक मनोवृति रखते हैं जो हमारे लिए उपयोगी हैं और उन वस्तुओं के बारे में नकारात्मक मनोवृति रखते हैं जो हमारे लिए उपयोगी नहीं है। 

जैसे:- यदि हमें एमपीपीएससी पास करनी है न्यूज़ पेपर पढ़ने के लिए हमारी मनोवृति सकारात्मक होती है, किंतु बेमतलब की या अश्लील वीडियो देखने के प्रति हमारी मनोवृति नकारात्मक होती है। 

उसी प्रकार एक प्रशासनिक अधिकारी अधिक पुरस्कार पाने के लिए जन कल्याण का कार्य करने के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है और ठंड से बचने के लिए भ्रष्टाचार के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखता है। 

ज्ञान विषयक प्रकार्य:

मनोवृति हमें आवश्यक सार्थक ज्ञान प्राप्त करने तथा अनावश्यक ज्ञान से दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

क्योंकि हमारी मनोवृति उसी ज्ञान के प्रति सकारात्मक होती है जो हमारे लिए आवश्यक होता है और सकारात्मक मनोवृति अनुभव एवं ज्ञान में वृद्धि करती है, तथा हमारी मनोवृति उस ज्ञान के प्रति नकारात्मक होती है जो ज्ञान हमारे लिए अनावश्यक होता है। और नकारात्मक मनोवृति संबंधित विषय के बारे में जिज्ञासा एवं ज्ञान को कम करती है। 

उदाहरण के लिए:- 

डॉक्टर बनने की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति को जीव विज्ञान की प्रति सकारात्मक मनोवृति होगी, जिससे जीव विज्ञान के प्रति उसकी जिज्ञासा बनी थी और वह जीव विज्ञान का अध्ययन करेगा जिससे उसे जीव विज्ञान का अधिक ज्ञान प्राप्त होगा, इसके विपरीत उस व्यक्ति के मन में अनावश्यक किताब को पढ़ने के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति होगी जो उसे अनावश्यक ज्ञान से बचाएगी। 

आत्म रक्षात्मक प्रकार्य :-

हमारी मनोवृति हमें चिंता, दुख ,निराशा ,क्लेश असफलता आदि से निकालकर आत्मसम्मान की रक्षा करने का कार्य भी करती है,

क्योंकि जब व्यक्ति गलत होता है तो ऐसी नई मनोवृति विकसित कर लेता है जिससे गलती का दोष उस पर ना आए। 

जैसे:- एमपीपीएससी की परीक्षा पास ना कर पाने पर यह मनोवृति बनाना कि भगवान ने मेरा साथ नहीं दिया इस वजह से मैं एमपीपीएससी की परीक्षा पास नहीं कर पाया,

नशा करने वाले व्यक्ति यह मनोवृति बना लेते हैं कि नशा करने से चिंताए होती हैं, मन स्वतंत्र हो जाता इसलिए मैं नशा करता हूं। 

मूल्य अभिव्यक्ति प्रकार्य

मनोवृति हमारे मूल्यों को अभिव्यक्त करने का भी कार्य करती है। 

क्योंकि व्यक्ति उन मूल्यों के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है जिन मूल्यों का वह स्वयं पालन करता है, तथा उन मूल्यों के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखता है जिन मूल्यों का वह पालन नहीं करता। 

उदाहरण के लिए:- यदि कोई व्यक्ति इमानदारी मूल्य का पालन करता है, दो वह सदैव बेईमानी की आलोचना करेगा, और ईमानदारी की प्रशंसा करेगा,

इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अहिंसा पर विश्वास रखता है तो वह हिंसा पर नकारात्मक मनोवृति रखते हुए, किसी भी जीव को पीड़ा देने की आलोचना करेगा। 

सामाजिक पहचान प्रकार्य

मनोवृति सामाजिक पहचान दिलाने कभी कार्य करती है,

क्योंकि जब कोई व्यक्ति समाज हित के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखते हुए समाज हित में कोई कार्य करता है तो समाज उसकी प्रशंसा करता है, और यदि कोई व्यक्ति समाज हित के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखते हुए समाज के विरुद्ध कार्य करता है तो समाज उसकी आलोचना करता है। 

उदाहरण के लिए:- यदि कोई व्यक्ति समाज में प्रचलित बड़ों के छूने की प्रथा के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखते हुए बड़ों के पैर छूता है तो समाज उसकी प्रशंसा करता है। 

 

मनोवृति का निर्माण:-

व्यक्ति के अंदर मनोवृत्ति जन्मजात नहीं होती, बल्कि व्यक्ति जन्म लेने के उपरांत विभिन्न अनुभवों द्वारा अर्जित करता है। 

जन्म के समय बालक का मस्तिक कोरी स्लेट के समान होता है उसकी अपनी कोई मानसिकता या मनोवृति नहीं होती उसी ना तो सदाचार का पता होता है ना ही दुराचार का। 

हालांकि व्यक्ति की मनोवृति में अनुवांशिक तत्वों की भी भूमिका होती है परंतु अनुवांशिकता का महत्व कच्ची धातु के समान है जिसे वातावरण रूपी कारखाना द्वारा परिशोधित कर दिया जाता है। 

व्यक्ति की मनोवृति के विकास या निर्माण निम्न घटकों द्वारा होता है:-

  • घर एवं परिवार द्वारा

  • समाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश द्वारा

  • विद्यालयी शिक्षा द्वारा 

  • पुरस्कार एवं दंड द्वारा

  • सूचना एवं संचार द्वारा

  • दूसरों का अनुकरण द्वारा

  • तत्कालीन व्यक्तिगत अनुभव द्वारा

घर एवं परिवार :- 

बालक के अंदर मनोवृति निर्माण की प्रक्रिया घर एवं परिवार से शुरू होती है, क्योंकि बालक के अंदर अनुकरण करने की प्रक्रिया बहुत तीव्र होती है वह अपने घर-परिवार के सदस्यों (माता पिता, भाई बहन) की मनोवृतियों को ज्यों का त्यों ग्रहण कर लेता है। 

उदाहरण:- परिवार के सदस्य जिस धर्म को मानते हैं, उसी धर्म के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखना। 

यदि परिवार के सदस्य शाकाहारी तो मांसाहार के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखना। 

सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण :-

घर एवं परिवार के बाद व्यक्ति के अंदर मनोवृति के निर्माण में आसपास के वातावरण के सामाज एवं सांस्कृति का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 

अर्थात व्यक्ति आसपास के समाज एवं संस्कृति के अनुसार मनोवृति रखने लगता है

जैसे:- ग्रामीण संस्कृति के अधिकांश लोग पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखते हैं, जबकि शहरी संस्कृति के अधिकांश लोग इन प्रथाओं के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति रखते हैं। 

 

यदि कोई व्यक्ति अपना गांव छोड़कर किसी ऐसे क्षेत्र में रहता है, जिस क्षेत्र के समाज में प्रेम विवाह अच्छा माना जाता है, तो प्रेम विवाह के प्रति उस व्यक्ति की मनोवृति सकारात्मक हो जाती है। 

इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे क्षेत्र में रहता है जहां पर धोती कुर्ता पहनने का चलन है तो उस व्यक्ति की धोती कुर्ता की प्रति मनोवृति सकारात्मक हो जाती है। 

शिक्षा:-

शिक्षा भी व्यक्ति की मनोवृत्ति का निर्माण करती है अर्थात व्यक्ति जैसी शिक्षा प्राप्त करता है उसकी मनोवृति वैसी ही हो जाती है

उदाहरण के लिए:- 

यदि व्यक्ति नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्राप्त करता है तो नैतिक मूल्यों के प्रति उसकी मनोवृति सकारात्मक होती है। 

यदि व्यक्ति किसी एक धर्म विशेष की शिक्षा प्राप्त करता है, तो उस धर्म के प्रति उसकी  मनोवृति सकारात्मक हो जाती है।

कार्ल मार्क्स की पुस्तक “दास कैपिटल” पढ़ने पर अनेक लोगों की मनोवृति मार्क्सवादी हो जाते‌ हैं। 

पुरस्कार एवं दण्ड:-

पुरस्कार एवं दंड की नीति भी व्यक्ति की मनोवृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

क्योंकि जब किसी कार्य के लिए पुरस्कार दिया जाता है तो उस कार्य के प्रति सकारात्मक मनोवृति बनती है और जिस कार्य के लिए दंड दिया जाता है उस कार्य के प्रति नकारात्मक मनोवृति बनती है। 

उदाहरण:-

जब हम किसी परीक्षा में अच्छे अंक लाते हैं, तो हमें पुरस्कार मिलता है और जब हम कम अंक लाते हैं तो हमें अपमान के रूप में दंड मिलता है। इसलिए अच्छे अंक लाने के प्रति हमारी मनोवृत्ति सकारात्मक होती है और कम अंक लाने के प्रति हमारी मनोवृति नकारात्मक होती है। 

जब हम नशा करते हैं तो हमें माता पिता दंड देते हैं एवं समाज में हमारा अपमान होता है इसलिए नशा के प्रति हमारी मनोवृत्ति नकारात्मक होती है। 

सूचना एवं संचार :-

विभिन्न संचार के साधनों(रेडियो, टीवी, पत्र पत्रिका) के माध्यम से हमें अनेकों सूचनाएं प्राप्त होती हैं और इन सूचनाओं के आधार पर हमारी मनोवृति का निर्माण होता है। 

जैसे:- 

जब संचार के साधनों के माध्यम से यह सूचना मिली कि रमेश नामक अधिकारी ने 50 लाख का भ्रष्टाचार किया है तो रमेश नामक अधिकारी के प्रति नकारात्मक मनोवृति का निर्माण होगा। 

जब हमें यह सूचना मिलती है कि एक्टर सोनू सूद लोगों की सहायता करता है तो उसके प्रति हमारे मन में सकारात्मक मनोवृति बनती है। 

दूसरों का अनुकरण:-

दूसरों को देखकर या अपने आदर्श व्यक्ति का अनुकरण करने पर भी मनोवृति का विकास होता है। 

जैसे:- 

विश्वसनीय दोस्तों को चिकन खाता देखकर, चिकन की प्रति सकारात्मक मनोवृति बनती है।

 

दूसरे व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोप के कारण जेल जाते हुए देखकर ‌, हमारे मन में भ्रष्टाचार के प्रति नकारात्मक मनोवृति बनती है। 

एमपीपीएससी का विद्यार्थी एमपीपीएससी के टॉपर की दिनचर्या के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है। 

तत्कालीन व्यक्तिगत अनुभव:-

किसी विशेष घटना या तत्कालीन अनुभव के प्रभाव से भी व्यक्ति की मनोवृति का निर्माण होता है,

जैसे:-

यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति रमेश नाम के व्यक्ति कि विपत्ति में सहायता करता है तो रमेश की मुस्लिमों के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति होगी।

 

यदि कोई पुलिस वाला बेवजह किसी व्यक्ति को मानता है तो उस घटना के सभी दर्शक पुलिस वालों के प्रति नकारात्मक रखने लगते हैं। 

 

यदि कोई व्यक्ति जुआ में जीत जाता है तो जुआ के प्रति उसकी मनोवृति सकारात्मक हो जाती है।  

मनोवृति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक

  • अनुवांशिक कारक

  • व्यक्तिगत अनुभव

  • शारीरिक एवं बौद्धिक विकास

  • आवश्यकता पूर्ति

  • हमारे आदर्श की जीवन शैली

अनुवांशिक कारक:-

कुछ मनोविज्ञान को का मानना है कि मनोवृति के निर्माण में सीमित मात्रा में अनुवांशिक कारक भी उत्तरदाई होते हैं, अर्थात व्यक्ति के अंदर सीमित मात्रा में माता-पिता की मनोवृति का समावेशन रहता है। 

उदाहरण के लिए:- यदि माता-पिता मांस ना खाने की मनोवृति रखते हैं तो हो सकता है कि बच्चे भी मांस ना खाने की मनोवृत्ति रखें। 

व्यक्तिगत अनुभव:-

व्यक्तिगत अनुभव भी मनोवृति को प्रभावित करते हैं,

जैसे:- यदि रमेश नाम के व्यक्ति के दोस्त उसे धोखा देता है, तो दोस्त बनाने के प्रति उसकी मनोवृत्ति नकारात्मक होगी, और दोस्त सदैव सहायता करते हैं तो दोस्तों के प्रति उसकी मनोवृति सकारात्मक होगी। 

शारीरिक एवं बौद्धिक विकास:-

शारीरिक एवं बौद्धिक विकास की मनोवृत्ति को प्रभावित करता है,

उदाहरण के लिए :-जिस व्यक्ति के अंदर अधिक बौद्धिक क्षमता है अर्थात वह शीघ्र ही उपयुक्त तरीके से सोच समझ और याद रख लेता है तो उसके अंदर पढ़ाई के प्रति सकारात्मक मनोवृति होगी इसके विपरीत कम बौद्धिक क्षमता वाले व्यक्ति के अंदर पढ़ाई के प्रति नकारात्मक होगी। 

उसी प्रकार विकलांग व्यक्ति की शारीरिक शक्ति द्वारा खेले जाने वाले खेल के प्रति नकारात्मक मनोवृति होगी। 

आवश्यकता पूर्ति:-

जिस व्यक्ति, वस्तु, स्थान या कार्य से हमारी आवश्यकता की पूर्ति होती है उसके प्रति हमारी सकारात्मक मनोवृति होगी, इसके विपरीत जिस वस्तु व्यक्ति स्थान एवं कार्य से हमें कोई आवश्यकता नहीं होती उसके प्रति हमारी मनोवृति या तो नकारात्मक या तो तटस्थ रहती है। 

जैसे:-

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए न्यूज़ पेपर पढ़ने के प्रति सकारात्मक मनोवृति होती है,

हमारे आदर्श की जीवन शैली :-

हमारे आदर्श व्यक्ति की जीवन शैली हमारी मनोवृत्ति को प्रभावित करती है,

उदाहरण के लिए:-यदि हमारे आदर्श गांधीजी हैं तो गांधी जी की साधारण जीवन शैली के प्रति हमारी मनोवृति सकारात्मक होगी। 

जबकि दूसरी ओर यदि हमारे आदर्श मुकेश अंबानी है तो लग्जरी लाइफ़स्टाइल के प्रति हमारी मेरे प्रति सकारात्मक होगी। 

मनोवृति परिवर्तन

व्यक्ति के अंदर मनोवृति जन्मजात नहीं होती, बल्कि व्यक्ति विभिन्न अनुभवों तथा वातावरण द्वारा अर्जित करता है, अतः व्यक्ति के अंदर की मनोवृत्ति परिवर्तित भी हो सकती है। किंतु मनोवृति में परिवर्तन करना काफी मुश्किल होता है विशेषकर संतुष्टि दायक मनोवृति को परिवर्तित करना। 

मनोवृति परिवर्तन के प्रकार

मनोवृति परिवर्तन के मुख्यतः दो प्रकार का होता है:-

संगत परिवर्तन:-

जब मनोवृति का परिवर्तन,वर्तमान मनोवृति की दिशा में ही होता है, तो उसे संगत मनोवृति परिवर्तन कहते हैं। अर्थात यदि किसी विषय के प्रति सकारात्मक मनोवृति है तो और अधिक सकारात्मक हो जाना, यदि नकारात्मक है तो और अधिक नकारात्मक हो जाना। 

जैसे:- रमेश नाम के व्यक्ति की विश्वविद्यालय के हिंदी के शिक्षक के प्रति पहले से ही सकारात्मक मनोवृति थी लेकिन शिक्षक ने विपत्ति के समय रमेश की आर्थिक सहायता भी कर दी इसलिए रमेश की उस शिक्षक के प्रति और अधिक सकारात्मक मनोवृति हो गई। 

एक्टर सोनू सूद के प्रति पहले से ही सकारात्मक मनोवृति थी और जब यह पता चला कि वह लोगों की सेवा भी करता है तो उसके प्रति और अधिक सकारात्मक मनोवृति हो गई। 

रमेश की भिखारी के प्रति सदैव नकारात्मक मनोवृति रहती थी किंतु जब यह पता चला कि अधिकारी ठीक से मांगे हुए पैसे द्वारा नशा करता है तो रमेश की उस भीखारी के प्रति और अधिक नकारात्मक मनोवृति हो गई। 

 

मेरी मांसाहार के प्रति पहले से ही नकारात्मक मनोवृत्ति थी, और जब गुरु जी ने मांसाहार के विरुद्ध व्याख्यान दिया तो मेरी मांसाहार के प्रति और अधिक नकारात्मक मनोवृति हो गई। 

असंगत परिवर्तन

जब मनोवृति का परिवर्तन वर्तमान मनोवृति की दिशा से विपरीत दिशा में होता है तो ऐसे असंगत मनोवृति परिवर्तन कहते हैं, अर्थात यदि किसी विषय के प्रति सकारात्मक मनोवृति है तो नकारात्मक मनोवृति को जाना, हो यदि नकारात्मक मनोवृति है तो सकारात्मक मनोवृति हो जाना। 

उदाहरण के लिए:-मेरे मन में भिखारी के प्रति नकारात्मक मनोवृति थी क्योंकि वह कुछ काम ना करके भीख मांगता है, किंतु जब मुझे यह पता चला कि वह अनाथ है तो उस भिखारी के प्रति मेरी मनोवृति सकारात्मक हो गई। 

 

रमेश नाम के अधिकारी के प्रति सकारात्मक मनोवृति थी, लेकिन जब मुझे इस अधिकारी के भ्रष्टाचार का पता चला तो इसके प्रति मेरी मनोवृति नकारात्मक हो गई। 

इंग्लैंड का वह व्यक्ति मांसाहार के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता था लेकिन भारत में रहने के बाद मांसाहार के प्रति उसकी मनोवृति नकारात्मक हो गई। 

मनोवृति परिवर्तन के कारक

  • संदर्भ समूह में परिवर्तन द्वारा

  • सांस्कृतिक प्रभाव द्वारा

  • बाध्यकारी संपर्क द्वारा

  • अपेक्षित भूमिका निर्वाह द्वारा

  • सूचना एवं संचार माध्यम द्वारा

संदर्भ समूह में परिवर्तन द्वारा

जब व्यक्ति किसी नए संदर्भ समूह से जुड़ता है, तो उसके अंदर उस न‌ए समूह के अनुरूप मनोवृति विकसित होने लगती है। 

उदाहरण के लिए:-

जब कोई गांव का विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश लेता है तो उच्च शिक्षा समाप्त होने तक,उसकी मनोवृति पहले की तुलना में बदल जाती है। 

उसी प्रकार एमपीपीएससी में चयनित छात्र की मनोवृति प्रशिक्षण लेने के उपरांत पहले की तुलना में काफी बदल जाती है। 

किसी एक राजनीतिक पार्टी या दल से जुड़ने पर हमारी मनोवृति उसी दल की विचारधारा के अनुरूप परिवर्तित हो जाती है। 

सांस्कृतिक प्रभाव

व्यक्ति जिस प्रकार की संस्कृति से जुड़ा होता है उसके अंदर उसी संस्कृति के अनुरूप मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। 

उदाहरण के लिए:-

आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति में सती प्रथा का प्रचलन था,तो भारतीय समाज के अधिकांश लोग सती प्रथा के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखते थे किंतु अब भारतीय संस्कृति सती प्रथा की समाप्ति होने पर लगभग सभी लोग सती प्रथा के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखते हैं। 

उसी प्रकार यदि कोई उत्तर भारत का व्यक्ति दक्षिण भारत की संस्कृति के संपर्क में रहता है तो उसके अंदर दक्षिण भारत की संस्कृति के अनुरूप मनोवृति विकसित हो जाती है जैसे शर्ट धोती पहनने, मछली भात खाने के प्रति सकारात्मक मनोवृति। 

बाध्यकारी संपर्क

यदि किसी व्यक्ति को किसी ऐसे व्यक्ति या समूह के साथ रहने के लिए बाध्य किया जाए, जिसके प्रति वह नकारात्मक मनोवृति रखता है तो उसके साथ रहने पर उसकी मनोवृति नकारात्मक से सकारात्मक हो जाती है। 

उदाहरण के लिए:-

हिंदू मुस्लिम छात्र को एक साथ रखा जाए, तो वे एक दूसरे को समझेंगे और उनके अंदर एक दूसरे के प्रति मैत्री भाव बढ़ेगा, एक दूसरे के पूर्वाग्रह खत्म हो जाएंगे तथा उनकी एक दूसरे के प्रति जो नकारात्मक मनोवृति थी वह सकारात्मक मनोवृति में परिवर्तित हो जाएगी। 

बचपन में बालक की मन में स्कूल के प्रति नकारात्मक मनोवृति होती है किंतु जब बाध्यकारी तरीके से उसे स्कूल भेजा जाता है तो इस स्कूल के प्रति उसके मन में नकारात्मक मनोवृति सकारात्मक मनोवृति में परिवर्तित हो जाती है। 

अपेक्षित भूमिका निर्वाह

व्यक्ति जिस कार्य या भूमिका के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखता है, यदि उसे वही कार्य या भूमिका का निर्वहन करना पड़े तो उस कार्य (भूमिका)के प्रति उसकी मनोवृति परिवर्तित (सकारात्मक)हो जाती है। 

जैसे:- 

पुरुषों में यह सामान्य धारणा है कि औरतें कम काम करती हैं, किंतु जब पुरुषों को महिलाओं की भूमिका निभाना पड़े अर्थात घरेलू कार्य करना पड़ता है तो उनकी मनोवृति महिलाओं के कार्य के प्रति सकारात्मक हो जाती है। 

इसी प्रकार निचले स्तर में कार्य करने वाले कर्मचारियों की उनके मैनेजर के प्रति नकारात्मक वृ

मनोवृत्ति होती है कि वह हमें छुट्टी क्यों नहीं देते? किंतु जब निचले स्तर के कर्मचारियों को मैनेजर का कार्य दिया जाए तो मैनेजर के कार्य के प्रति उनकी मनोवृत्ति सकारात्मक हो सकती है। 

सूचना एवं संचार:-

व्यक्ति को किसी विषय के संदर्भ में जैसी सूचनाएं प्राप्त होती हैं व्यक्ति उस विषय के प्रति वैसी ही मनोवृति बना लेता है। 

उदाहरण के लिए;-

रमेश नाम के अधिकारी के प्रति सकारात्मक मनोवृति थी, लेकिन जब मुझे इस अधिकारी के भ्रष्टाचार का पता चला तो इसके प्रति मेरी मनोवृति नकारात्मक हो गई।

मेरे मन में भिखारी के प्रति नकारात्मक मनोवृति थी क्योंकि वह कुछ काम ना करके भीख मांगता है, किंतु जब मुझे यह पता चला कि वह अनाथ है तो उस अधिकारी के प्रति मेरी मनोवृति सकारात्मक हो गई।

विश्वासपात्र या आदर्श व्यक्ति की सलाह

हमारे लिए विश्वसनीय या आदर्श व्यक्ति द्वारा दी गई सलाह से भी हमारी मनोवृति परिवर्तित हो जाती है। 

जैसे:-

हम अंडा खाने के प्रति नकारात्मक मनोवृति रखते हैं किंतु हमारे आदर्श एवं विश्वासनीय अमिताभ बच्चन अंडे खाने की सलाह देते हैं तो अंडा खाने के प्रति हमारी मनोवृति सकारात्मक हो जाती है। 

जो महिलाएं खूबसूरती के लिए दीपिका पादुकोण को अपना आदर्श मानती हैं,वे दीपिका पादुकोण यह कहते देखकर मैं लक्स साबुन से नहाते हैं लक्स साबुन के प्रति सकारात्मक बना लेती हैं। 

प्रबोधक संप्रेषण

जब किसी विचार का प्रचार बार-बार किया जाए, तो उस विचार की प्रति हमारी मनोवृत्ति मैं परिवर्तन आ जाता है। 

जैसे:- कथावाचक महाराज द्वारा बार-बार शाकाहारी रहने के बारे में बताए जाने पर हमारे अंदर शाकाहार के प्रति सकारात्मक मनोवृति हो जाती है। 

मनोवृति परिवर्तन में असफलता के कारण

वैज्ञानिकों ने मनोवृत्ति परिवर्तन में असफलता के निम्नलिखित कारण बताएं हैं:-

मनोवृति का टीका:-

जब लक्षित व्यक्ति को, ऐसे विचार एवं रणनीतियों पहले ही अवगत करा दिया जाता है जो उसकी मनोवृत्ति को परिवर्तित कर सकते हैं तो ऐसे विचारों को मनोवृत्ति का टीका कहा जाता है, क्योंकि ऐसे विचार जिससे वह अवगत हो चुका है उन्हीं विचारों के प्रभाव से उस व्यक्ति की मनोवृति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 

जैसे:-

सैनिकों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण में, दुश्मन की ऐसी सभी रणनीतियों से अवगत करा दिया जाता है जो उनकी मनोवृत्ति है परिवर्तन ला सकते हैं। ताकि उनकी मनोवृत्ति परिवर्तित ना हो जाए। 

उदाहरण के लिए:- रमेश को बाजार से सिलेंडर लाना है, उसके लिए 2 लोगों की आवश्यकता है अतः वह सचिन से कहता है कि :-बाजार चलो आज मैं तुम्हें चाय पिलाता हूं, यहां पर रमेश ने सचिन बाजार जाने के प्रति मनोवृति बनाने के लिए सचिन के स्वार्थ की बात कही और अपना काम करवा लिया। किंतु यदि सचिन को पहले से ही पता होता कि इसे सिलेंडर लेने जाना है तो वह उसके साथ नहीं जाता। 

पूर्व चेतावनी 

जब व्यक्ति को स्वयं यह आभास हो जाता है कि सामने वाला व्यक्ति उसकी मनोवृत्ति को परिवर्तित करने का प्रयास कर रहा है तो वह सावधान हो जाता है, तो वह अपने विवेक से ऐसे तर्क सृजित कर लेता है जो प्रबोधक संप्रेषक की बात को गलत साबित कर सकें, ऐसी स्थिति में उसकी मनोवृति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। 

जैसे:-

किसी कंपनी की मार्केटिंग करने वाला व्यक्ति गांव के किसी व्यक्ति की मनोवृति को परिवर्तित करने प्रयास करता है किंतु गांव का व्यक्ति को पहले ही यह आभास हो जाता है कि वह मेरी मनोवृति चेंज करने का प्रयास कर रहा है, तो वह सावधान हो जाता है उससे बात भी नहीं करता ऐसी स्थिति में उसकी मनोवृति में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। 

 

सिगरेट के पैकेट में सिगरेट की प्रति नकारात्मक मनोवृति विकसित करने के लिए, कैंसर का चित्र बना होता है, इसके बावजूद व्यक्ति इसके विरुद्ध तर्क देते हुए सिगरेट का सेवन करता है। 

प्रतिक्रिया या प्रतिघात

जब व्यक्ति पर मनोवृति परिवर्तन के लिए अत्यधिक दबाव डाला जाता है तो उस व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता खतरे में लगती है इसलिए वह मनोवृति परिवर्तन विरोधी प्रतिक्रिया देता है। अर्थात दबाव डालकर व्यक्ति की मनोवृत्ति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। 

जैसे:- 

यदि कोई दुकानदार किसी ग्राहक पर किसी विशेष वस्तु को खरीदने के लिए अत्यधिक दबाव डालता है तो वह ग्राहक उस वस्तु को निश्चित ही नहीं खरीदता।  

मां बच्चे को जिस चीज को खाने के लिए कहती है वह उस चीज को निश्चित ही नहीं खाता। 

चयनात्मक उपेक्षा

जब व्यक्ति को अपनी किसी मनोवृत्ति पर पूर्ण विश्वास होता है तो वह प्रबोधक संप्रेषक के मनोवृति परिवर्तन संबंधी ऐसे तर्कों की उपेक्षा करता है जो उसे प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की मनोवृति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। 

जैसे:-

आस्तिक व्यक्ति ऐसी तर्कों को नहीं सुनते जो तर्क ईश्वर की आस्तिकता पर प्रश्न खड़ा करें। ऐसी दशा में आस्तिक व्यक्ति को कभी नास्तिक नहीं बना सकता। 

मनोवृति ध्रुवीकरण/पक्षपात पूर्ण सूचना ग्रहण करना:-

जब व्यक्ति किसी सूचना की व्याख्या ,इस प्रकार से पक्षपात पूर्ण करता है जो उसकी मनोवृत्ति के समर्थन में हो, तो ऐसी स्थिति में कोई भी सूचना देकर उस व्यक्ति की मनोवृत्ति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। 

जैसे:-

कारगिल के युद्ध की व्याख्या पाकिस्तान ने इस प्रकार से की जिसमें पाकिस्तान को जीता हुआ बताया गया जबकि वास्तविकता में पाकिस्तान नहीं जीता था, ऐसी स्थिति में पाकिस्तानियों की मनोवृत्ति परिवर्तित नहीं की जा सकती। 

भारतीय पुरातत्व की अयोध्या खुदाई रिपोर्ट की व्याख्या हिंदुओं ने अपने पक्ष में बताते हुए की, और मुस्लिमों ने अपने पक्ष में बताते हुए की। 

नैतिक मनोवृत्ति

किसी व्यक्ति ,वस्तु ,विचार, विषय ,स्थिति के उचित या अनुचित होने के बारे में नैतिक निर्णय व्यक्त करना नैतिक मनोवृत्ति कहलाती है। नैतिक मनोवृति(नैतिक निर्णय) नैतिक मूल्यों (जैसे:-सत्य निष्ठा, दयालुता, सम्मान)पर आधारित होती है। 

जैसे:- मोहल्ले को स्वच्छ रखने की मनोवृत्ति, रिश्वत लेने के प्रति नकारात्मक मनोवृति। 

राजनैतिक मनोवृत्ति

किसी राजनीतिक मुद्दे के प्रति जो मनोवृति होती है उसे राजनीतिक मनोवृति कहते हैं राजनीतिक मनोवृति का संबंध सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों से होता है। 

जैसे:-क्या भारत को विदेशियों को शरण देना चाहिए या नहीं इसके प्रति मनोवृति। 

आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं इसकी प्रति सकारात्मक या नकारात्मक मनोवृति। 

 

मनोवृति एवं मत

मनोवृति एवं मत एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं, दोनों ही अमूर्त मानसिक विवेकाधीन शक्ति है जो ज्ञान एवं अनुभव द्वारा अर्जित किए जाते हैं,

किंतु इन दोनों में कुछ अंतर भी है, जिसका विवरण निम्नलिखित है:-

  • मनोवृति का तात्पर्य किसी मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,विचार ,स्थिति) के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव से है। जबकि मत का तात्पर्य किसी विषय के प्रति विचार,विश्वास या आस्था से है।

जैसे:- किसी समूह के प्रति सकारात्मक भाव होना मनोवृति है जबकि उस समूह के प्रति विश्वास या आस्था होना मत है। 

  • मनोवृति में संज्ञानात्मक पक्ष के साथ साथ भावनात्मक एवं व्यवहारात्मक पक्ष भी पाया जाता है, जबकि मत में केवल संज्ञानात्मक पक्ष ही पाया जाता है। 

  • मनोवृति अपेक्षाकृत अधिक स्थाई होती है, जबकि मत तुलनात्मक रूप से कम स्थाई होता है। 

मनोवृति एवं मूल्य

मनोवृति एवं मूल्य एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं, दोनों ही अमूर्त होते है जो ज्ञान एवं अनुभव द्वारा अर्जित किए जाते हैं, दोनों की अभिव्यक्ति व्यवहार में होती है। 

अंतर

  • मनोवृति का तात्पर्य किसी मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,विचार ,स्थिति) के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव से है। जबकि मूल्य का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वीकार किए गए सामाजिक आदर्शों से है। 

जैसे:- महात्मा गांधी के प्रति सकारात्मक सोच रखना मनोवृत्ति है, जबकि अहिंसा एवं सत्य का पालन करना मूल्य है। 

  • मनोवृत्ति संज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं व्यवहारात्मक पक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, जबकि मूल्य में मुख्यत: भावनात्मक पक्ष अधिक प्रभावशाली होता है। 

  • मनोवृति अपेक्षाकृत कम स्थाई होती है जबकि मूल्य अपेक्षाकृत अधिक स्थाई होते हैं। 

  • मूल्यों ही मनोवृति निर्माण का आधार होते हैं, जैसे:- बड़ों का आदर करना मूल्य है और इस मूल्य का पालन करने वाला व्यक्ति बड़ों के प्रति सदैव सकारात्मक मनोवृति रखेगा।

मनोवृति एवं रूचि

मनोवृति एवं रूचि एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं, दोनों ही अमूर्त होती है ,जो ज्ञान एवं अनुभव द्वारा अर्जित की जाती हैं,

किंतु मनोवृति एवं रुचि में अंतर होता है

  • मनोवृति का तात्पर्य किसी मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,विचार ,स्थिति) के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव से है। जबकि रूचि का तात्पर्य किसी चुनिंदा विषय के प्रति विशेष लगाव या पसंदगी होने से है तथा रुचि पूर्ण कार्य को करने से हमें संतुष्टि मिलती है। जैसे:- गाना गाने के प्रति पसंदगी होना। 

  • किसी भी विषय के प्रति मनोवृति सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है, जबकि संबंधित विषय के प्रति रुचि सदैव सकारात्मक की होती है। 

  • मनोवृति का क्षेत्र रुचि की अपेक्षा अधिक व्यापक होता है क्योंकि व्यक्ति की अनेकों विषयों के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक मनोवृति हो सकती है, जबकि व्यक्ति की रूचि किन्हीं सीमित विषयों की प्रति ही हो सकती है सभी विषयों के प्रति नहीं। 

  • मनोवृति दिन प्रतिदिन की व्यवहार में अभिव्यक्त होती है जबकि रुचि शैक्षणिक एवं व्यवसायिक क्षेत्र में अभिव्यक्त होती है। 

मनोवृत्ति एवं विश्वास

मनोवृति का तात्पर्य किसी मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान ,विचार ,स्थिति) के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव से है। जबकि किसी भी विषय या स्थिति के प्रति हमारे मन में जो दृढ़ता एवं निश्चितता होती है, उसे विश्वास या भरोसा कहते हैं। 

जैसे:- ईश्वर के प्रति सकारात्मक भाव होना सकारात्मक मनोवृति कहलाएगी, ईश्वर की प्रति श्रद्धा,दृढ़ता एवं निश्चितता होना विश्वास कहलाता है। 

मनोवृति एवं विश्वास दो अलग-अलग संप्रत्यय होते हुए भी परस्पर संबंधित है, किंतु फिर भी इस में कुछ अंतर है

  • मनोवृति जानकारी एवं अनुभव पर आधारित होती है, जबकि विश्वास कल्पना एवं अंधविश्वासों पर आधारित होता है। 

  • किसी विषय के प्रति सकारात्मक मनोवृति तभी होती है जब उस विषय के प्रति विश्वास हो अर्थात सकारात्मक मनोवृति के लिए विश्वास होना आवश्यक है किंतु विश्वास के लिए सकारात्मक मनोवृत्ति होना आवश्यक नहीं है। 

  • मनोवृत्ति विश्वास की तुलना में अधिक परिवर्तनशील होती है।

मनोवृति एवं अभिक्षमता

मनोवृति का तात्पर्य किसी विषय के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक सोच या मानसिकता से है, जबकि अभिक्षमता का तात्पर्य व्यक्ति की विशेष योग्यताओं से है। और जब व्यक्ति की अभिक्षमता एवं मनोवृति दोनों कीमत जो संगति होती है तो व्यक्ति की सफलता की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है। इसके विपरीत इन दोनों के मध्य सुसंगति ना होने पर, सफलता की संभावना न्यून हो जाती है। 

जैसे यदि कोई व्यक्ति समाज सेवा के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है, और उसके अंदर नेतृत्व क्षमता भी है तो उसकी राजनीति में सफलता की अधिक संभावना है। 

मनोवृति एवं अभिक्षमता में अंतर

  • मनोवृति का संबंध व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व से होता है, अर्थात व्यक्ति की मनोवृत्ति जैसी है उसका व्यक्तित्व भी वैसा ही होगा। जबकि अभिक्षमता का संबंध व्यक्ति की विशेष योग्यता से है। 

  • मनोवृति व्यक्ति की किसी विषय के प्रति सोच को दर्शाती है, जबकि अभिक्षमता व्यक्ति की किसी विशेष कार्य के प्रति कुशलता को दर्शाती है। 

  • सामान्यतः मनोवृत्ति विभिन्न अनुभव एवं जानकारी के माध्यम से अर्जित की जाती है। जबकि अभिक्षमता सामान्यतः जन्मजात होती है। 

मनोवृति एवं व्यवहार

सामान्यता: व्यक्ति अपनी मनोवृति के अनुसार ही व्यवहार करता है, अर्थात व्यक्ति के व्यवहारिक लक्षण उसकी मनोवृति से परिलक्षित होते हैं। जैसे:- यदि हमारी किसी शिक्षक के प्रति सकारात्मक मनोवृति है, तो हम उस शिक्षक के सामने जाते हैं उसे प्रणाम करते हैं, यदि हमारी अहिंसा के प्रति सकारात्मक मनोवृति है, तो हम हिंसा होते देखकर उसकी आलोचना करने लगते हैं। 

यदि हमारी मनोवृति दूसरों की सहायता करने के प्रति सकारात्मक है तो हम दूसरों को असहाय देख कर उसकी सदैव सहायता करते हैं। 

किंतु कभी-कभी कुछ परिस्थितियों के कारण हम अपनी मनोवृति के अनुसार नहीं करते हैं, या मनोवृति के विपरीत व्यवहार करते हैं। जिन्हें

मनोवृति और व्यवहार के बीच की बाधाएं कहा जाता है। 

सामाजिक दबाव की बाधा :-

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसे सामाजिक नियमों, परंपरा, मानकों के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है, अनेकों बार उसकी व्यक्तिगत मनोवृति और सामाजिक परंपराओं, मानकों के मध्य असंगति पाई जाती है ऐसी स्थिति में वह अपनी मनोवृति के अनुसार व्यवहार नहीं कर पाता। 

जैसे:- रमेश नाम का व्यक्ति अंतरजातीय विवाह के प्रति सकारात्मक मनोवृति रखता है लेकिन सामाजिक दबाव के कारण उसे, अपनी ही जाति में विवाह करना पड़ता है। उसी प्रकार यदि एक महिला आईएएस बनना चाहती है लेकिन सामाजिक दबाव के कारण उसे 20 वर्ष में ही शादी करके बहू की जिम्मेदारी उठाना पड़ता है,और अपने आईएस के सपने का त्याग करना पड़ता है। 

पद से संबंधित आचार संहिता की बाधा

जब कोई व्यक्ति किसी पद को ग्रहण करता है तो उसे बाध्यतापूर्वक उस पद से जुड़ी आचार संहिता का पालन करना पड़ता है, भले ही उसकी मनोवृत्ति आचार संहिता के नियमों की विपरीत हो। 

जैसे:- प्रशासनिक अधिकारी की किसी राजनीतिक पार्टी के प्रति सकारात्मक मनोवृति है लेकिन उस पद पर रहते हुए किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यों की प्रशंसा नहीं कर सकता। 

एक सैनिक जिसकी मनोवृति हिंसा के प्रति नकारात्मक है उसे व्यवहारिक तौर पर हिंसा करनी पड़ती है। 

महत्वाकांक्षा

व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अपनी मनोवृति के अनुसार व्यवहार नहीं कर पाता। 

उदाहरण:- एक प्रशासनिक अधिकारी अच्छी जगह में ट्रांसफर पाने के लिए राजनीतिक दबाव में ऐसे कार्य करने पड़ते हैं जो उनकी मनोवृत्ति के विपरीत हों,जैसे- ना चाहते हुए भी अपराधी को रिहा करवा देना। 

नियम कानून की बाध्यता

नियम कानूनों की बाध्यता के कारण भी व्यक्ति अपनी मनोवृति के अनुसार व्यवहारहार नहीं कर पाते हैं 

जैसे:- 

किसी व्यक्ति की मनोवृति रास्ते में ना रुकने की है लेकिन ट्रैफिक नियम की वजह से ट्रैफिक में रुकना पड़ता है। 

एक्सीडेंट के कारण गिरे व्यक्ति के प्रति सहायता की मनोवृत्ति है लेकिन पुलिस थाने की पेशी के झंझट से बचने के लिए उसकी सहायता ना करना। 

मूल्यांकन का समय

जब किसी व्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है तो वह व्यक्ति अपने मनोवृति के विपरीत मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति के अनुरूप व्यवहार करता है। 

जैसे:-

साक्षात्कार के समय, किसी एक राजनीतिक पार्टी की दिलचस्पी होने पर भी राजनीतिक रूप से अपने आप को तटस्थ बताना। 

चुनाव प्रचार के समय राजनेता अपनी मनोवृति के विपरीत जनता की इच्छा के अनुरूप भाषण देता है। 

 

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