मैदान/maidan()

मैदान-: 

धरातल के निम्न एवं समतल भू-भाग को मैदान कहते हैं,

मैदानों की विशेषताएं-: 

  • मैदान द्वितीय श्रेणी के उच्चतर होते हैं। किंतु जब उनका निर्माण अपरदन या निक्षेपण की क्रिया से होता है तो उस प्रकार के मैदान को तृतीय श्रेणी के उच्चावच में रखा जाता है। 

  • मैदान की मुख्य विशेषता यह है कि मैदान समतल या सपाट होते हैं। 

  • संपूर्ण भूपटल के लगभग 41% भाग पर मैदानों का विस्तार है। अर्थात पर्वत पठानों की तुलना में मैदानों में ही सर्वाधिक जनसंख्या निवासरत है क्योंकि मैदानों में परिवहन का विकास करना कृषि करना आसान होता है। 

  • सामान्यतः मैदानों की ऊंचाई सागर तल से 150 मीटर तक होती है। किंतु कुछ मैदान समुद्र तल से नीचे भी हो सकते हैं जैसे जॉर्डन घाटी नीदरलैंड का तटीय मैदान। जबकि कुछ मैदान पठार से भी ऊंचे हो सकते हैं जैसे -:उत्तरी अमेरिका का मिसीसिपी का मैदान अप्लेशियन पठार से भी ऊंचा है।

मैदानों का वर्गीकरण-: 

मैदान के प्रकार

पटल विरूपनी मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों द्वारा भूपटल के उत्थान या अवतलन से हुआ है उन्हें पटल विरूपनी मैदान कहते हैं। उन्हें संरचनात्मक मैदान भी कहते हैं

जैसे-: 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्रेट प्लेन मैदान का निर्माण अधिसागरीय भाग के उत्थान से हुआ है। 

  • भारत के कोरोमंडल मैदान का निर्माण अवतलन के कारण हुआ है। 

संरचनात्मक मैदान मुक्ता महाद्वीपों के तटों पर पाए जाते हैं। 

अपरदनात्मक मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण अपरदन की क्रिया द्वारा हुआ है उन्हें अपरदनात्मक मैदान कहते हैं। 

अपरदनात्मक मैदान निम्न प्रकार के हो सकते हैं-: 

समप्राय मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण नदियों की अपरदन क्रिया द्वारा हुआ है उन्हें समप्राय मैदान कहा जाता है। 

जैसे-: अमेरिका में मिसीसिपी बेसन के ऊपरी भाग के मैदान , भारत में छोटा नागपुर के क्षेत्र का मैदान। 

हिमानी निर्मित मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण हिमानी के अपरदन द्वारा हुआ है उन्हें हिमानी निर्मित मैदान कहते हैं, 

अर्थात जब किसी उच्चावच वाले भाग से लगातार हिम नदी बहती है तो हिम नदी के अपरदन से उच्चावच वाला भाग समतल मैदान में परिवर्तित हो जाता है इस प्रकार के मैदान को हिमानी निर्मित मैदान कहते हैं। 

जैसे-: उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में निर्मित मैदान भारत में लद्दाख क्षेत्र का मैदान। 

पेरीप्लेन-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण भाइयों की अपरदन क्रिया द्वारा होता है उन्हें मरुस्थलीय मैदान या पेरीप्लेन मैदान कहते हैं। 

जैसे-: सहारा रेगिस्तान का मैदान। 

कार्स्ट मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण चूना पत्थर की चट्टानों के जल में घुलने से होता है उन्हें कार्स्ट मैदान कहते हैं।

जैसे -:चित्रकूट एवं अल्मोड़ा के मैदान। 

युगोस्लाविया(यूरोप) के कार्स्ट प्रदेश का मैदान। 

निक्षेपात्मक मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण निक्षेपण की क्रिया द्वारा हुआ है उन्हें निक्षेपात्मक मैदान कहते हैं। 

निक्षेपात्मक मैदान निम्न प्रकार के हो सकते हैं-: 

जलोढ़ मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण पर्वती नदियों द्वारा वहां का लाए गए जलोढ़ के निक्षेपन से हुआ है, उन्हें जलोढ़ मैदान कहते हैं। 

जैसे-: गंगा ब्रह्मापुत्र का मैदान। 

मिसिसिपी का मैदान। 

जलोढ़ मैदान काफी ज्यादा विस्तृत उपजाऊ होते हैं अतः यहां पर सघन जनसंख्या घनत्व होता है। 

अपोढ़ मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण पर्वतीय हिमानीयों द्वारा बहा कर लाए गए अवसादों के जमाव से होता है। 

जैसे-: कनाडा के मध्यवर्ती भाग के मैदान। 

उत्तर पश्चिम यूरोप के अधिकांश मैदान। 

सरोवरीय मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण झीलों में नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के जमाव से होता है। क्योंकि जब किसी झील में नदियों का लगातार अवसाद जमा होता जाता है तो कालांतर में वह झील अवसादों से भर जाती है और वहां पर मैदान का निर्माण हो जाता है। 

जैसे-: नीदरलैंड का मैदान। 

लोयस मैदान-: 

ऐसे मैदान जिनका निर्माण पवन के द्वारा उड़ा कर लायी ग‌ई रेत के जमाव से होता है। 

जैसे -:चीन का शेन्सी प्रांत का लोयस मैदान। 

इंफाल बेसिन का मैदान,भारत। 

मैदानों से संबंधित शब्दावली

भाबर-: 

पर्वतीय प्रदेशों में पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़ों के ढेर से निर्मित ऐसा क्षेत्र जहां पर नदियां विलुप्त हो जाती है उसे भाबर कहते हैं।

 तराई-:

भाबर का वह छोर जहां से नदियां पुनः प्रकट हो जाती है उसे तराई कहते हैं। 

बांगर-

बाढ़ का वह उच्च क्षेत्र जहां नदियों का जल एवं उसके अवसाद नहीं पहुंच पाते उसे बांगर कहते हैं। 

खादर-:

बाढ़ का वह क्षेत्र जहां पर प्रतिवर्ष नदियों का जल एवं अवसाद निक्षेपित होता हैं। यह काफी उपजाऊ क्षेत्र होता है। 

डेल्टा-: 

कोई भी नदी सागर या झील में मिलने से पहले बहुत सी छोटी-छोटी जलधाराओं में विभक्त हो जाती है इन जलधारा के बीच की त्रिभुजाकार स्थिति को डेल्टा कहा जाता है। डेल्टा में जलोढ़कों के निक्षेपण से उपजाऊ भूमि रहती है। 

 
नदी का डेल्टा

चार -: डेल्टा के ऊंचे भाग को चार कहते हैं। 

बील-: डेल्टा के निचले भाग को जहां पर हमेशा पानी भरा रहता है उसे बील कहते हैं।

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