लोकसेवा हेतु आवश्यक योग्यताएं
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सहानुभूति/समानुभूति:-
सहानुभूति व्यक्ति की वह मानसिक योग्यता है जिसमें वह दूसरों के दुख दर्द से दुखी होकर उसके प्रति दया एवं करुणा का भाव रखता है।
जैसे-:
किसी दरिद्र व्यक्ति को देखकर हमारे अंदर उसके प्रति दया एवं करुणा का भाव उत्पन्न होता है इसे सहानुभूति कहा जा सकता है।
किसी दर्द से पीड़ित व्यक्ति के दुख को देखकर हम स्वयं दुखी हो जाते हैं एवं हमारे अंदर करुणा एवं दया का भाव आना सहानुभूति है
दोस्त की मां की मृत्यु हो जाने पर दोस्त को दुखी देखकर हमारे मन में दोस्त के प्रति दुख का भाव आता है,यह सहानुभूति है।
सहानुभूति के प्रकार:-
सक्रिय सहानुभूति
निष्क्रिय सहानुभूति
सक्रिय सहानुभूति:-
जब हम किसी व्यक्ति को दुख या दर्द में देखकर, उसकी सहायता करते हैं तो इसे सक्रिय सहानुभूति कहते हैं।
जैसे:- किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति के कष्टों को देख कर उसे अस्पताल ले जाना।
किसी भिखारी की दयनीय स्थिति को देखकर, उसको आर्थिक सहायता देना।
तार्किक मदद – तर्को के आधार पर दूसरों को समझाना।
निष्क्रिय सहानुभूति:-
जब हम किसी व्यक्ति के दुख या दर्द को देखकर उसके प्रति दया एवं करुणा का भाव तो रखते हैं किंतु कुछ करते नहीं है, तो इसे निष्क्रिय सहानुभूति कहते हैं।
जैसे:- किसी दुर्घटना में घायल व्यक्ति के कष्टों को देख कर दया का भाव रखना किंतु उसे अस्पताल ना ले जाना।
समानुभूति:-
समानुभूति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है सामान+ अनुभूति।
अर्थात् स्वयं को, दूसरों के समान ही अनुभूति होना।
समानुभूति व्यक्ति की वह मानसिक योग्यता है जिसमें वह स्वयं को, दूसरों की स्थिति में रखकर, उसकी वास्तविक मन:स्थिति को समान गहनता के साथ समझते हुए,महसूस भी करता है।
जब हम किसी व्यक्ति को ऐसी स्थिति में देखते हैं जिस स्थिति तो हमने स्वयं झेला(सहा) है, तो हमारे अंदर उस व्यक्ति के प्रति समानुभूति का भाव प्रकट होता है।
जैसे:-
एक व्यक्ति जिसने अत्यंत गरीबी में अपना जीवन व्यतीत किया है वह दूसरे उसी स्तर के गरीब व्यक्ति को देखकर उसकी स्थिति को अच्छी तरह से समझ कर उसे महसूस भी कर सकता है। अर्थात वह उस गरीब के प्रति सहानुभूति का भाव रख सकता है।
समानुभूति की विशेषताएं:-
समानुभूति किसी व्यक्ति की मन:स्थिति को समझने की अनुभवजन्य संवेदना है।
सहानुभूति सहानुभूति से आगे की आंतरिक चेतना है।
समानुभूति युक्त व्यक्ति दूसरे के दुख एवं सुख को अपना दुख एवं सुख समझकर प्रतिक्रिया देता है।
समानुभूति के घटक
समानुभूति के मुक्ता 3 घटक है:-
संज्ञानात्मक
भावनात्मक
करुणात्मक
संज्ञानात्मक समानुभूति:-
स्वयं को दूसरों की स्थिति में रखकर, दूसरों की वास्तविक मन: स्थिति को समझने की योग्यता संज्ञानात्मक समानुभूति है।
भावनात्मक समानुभूति:-
दूसरों की मन:स्थिति को महसूस करने की योग्यता भावनात्मक समानुभूति है।
करुणात्मक सहानुभूति:-
दूसरों की मन:स्थिति को समझ कर, उसकी सहायता करने का भाव करुणात्मक सहानुभूति है।
जैसे:-
यदि हमने स्वयं गरीबी झैली है, तो गरीब व्यक्ति को देखकर हम उस व्यक्ति की गरीबी कुछ समझ पाते हैं तो यह संज्ञानात्मक समानुभूति होगी, और जब हम उसकी गरीबी को अपनी गरीबी से जोड़कर महसूस करते हैं तो यह भावनात्मक समानुभूति होगी, और जब हम कुछ व्यक्ति की गरीबी को समझकर उस व्यक्ति की सहायता करने का भाव रखते हैं तो यह हमारी करुणात्मक समानुभूति होगी।
लोक प्रशासन में समानुभूति
एक अच्छे प्रशासनिक अधिकारी के अंदर जनता के प्रति समानुभूति का भाव होना आवश्यक है, ताकि वह जनता की समस्याओं को उपयुक्त तरीके से समझ कर एवं महसूस करके उनके समाधान के लिए तीव्रता से कार्य कर सके।
उदाहरण के लिए:- यदि कोई सिविल सेवक किसी गरीब व्यक्ति की मन:स्थिति को समझ एवं महसूस कर पाता है, तो उसके अंदर उस गरीब की समस्याओं के समाधान करने की तीव्रता अधिक होगी जिससे वह अपनी औपचारिक समय प्रतिबद्धता के बाहर भी उसका काम करेगा परिणाम स्वरूप उस गरीब की समस्या का शीघ्रता से समाधान हो पाएगा।
और यदि वह उस गरीब व्यक्ति की मन:स्थिति को समझ एवं महसूस नहीं कर पाता, तो उसके अंदर उसकी सहायता का कोई भाव नहीं होगा और वह उससे रिश्वत लेगा या उसका कार्य तीव्रता से नहीं करेगा।
लोक प्रशासन में सहानुभूति का महत्व:-
प्रशासन के प्रति जनता का सहयोग प्राप्ति में सहायक है, क्योंकि जब लोकसेवक जनता के प्रति दया एवं करुणा का भाव रखते हैं उनकी सहायता करते हैं तो जनता भी प्रशासन का सहयोग करती हैं।
घटना प्रबंधन में सहायक:- अनेकों बार जब लोक सेवक किसी घटना का प्रबंधन पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को स्वयं की पीड़ा समझकर एवं पीड़ित व्यक्ति को तार्किक मदद देकर करता है तो घटना का स्वाभाविक समाधान हो जाता है।
जैसे:- यदि किसी महिला का बेटा एक्सीडेंट के कारण खत्म हो गया है, तो रोड में ट्रैफिक लग जाता है ऐसी स्थिति में यदि लोक सेवक लाठीचार्ज भीड़ को हटाता है तो हिंसक विद्रोह हो सकता है किंतु यदि वह उस महिला के दुख को समझ कर उसको तार्किक मदद (समझा-बुझाकर) देकर शांत करता है तो भीड़ स्वाभाविक रूप से ही हट जाएगी।
लोक सेवकों को प्रेरित करने में सहायक:– यदि लोक सेवक जनता के प्रति समानुभूति रखता है तो उसके अंदर जनता की सहायता का भाव होगा, यही भाव उसे जनसेवा के लिए प्रेरित करेगा।
सुशासन की स्थापना में सहायक:-
जनता के प्रति समानुभूति के प्रभाव प्रशासनिक अधिकारी जनता का कार्य बिना रिश्वत के, बिना विलंब के करेंगे। जिससे प्रशासन में भ्रष्टाचार का उन्मूलन होगा एवं समय प्रतिबद्धता बढ़ेगी।
मानसिक संतोष:- समानुभूति के भाव द्वारा किया गया कार्य प्रशासनिक अधिकारियों को मानसिक संतोष प्रदान करता है।
कमजोर वर्गों के प्रति संवेदना/करूणा
कमजोर वर्गों का आशय समाज के ऐसे वर्ग के लोगों से है, जो जीवन की मूलभूत आवश्यकता जैसे- रोटी ,कपड़ा, मकान ,शिक्षा ,स्वास्थ आदि की पूर्ति स्वशक्ति से करने में असमर्थ होते हैं।
और संवेदना या करुणा का तात्पर्य- दूसरों के कष्टों व दुखों को समझकर, उनके कष्टों एवं दुखों का निवारण करने की भावना से है।
अर्थात करुणा, समानुभूति से एक कदम आगे है क्योंकि इसमें ना केवल दूसरों की समस्याएं दुखो कष्टों को महसूस किया जाता है। बल्कि दूसरों के दुखो कष्टों को कम करने की सक्रिय इच्छाशक्ति भी निहित होती है।
जैसे:- किसी विकलांग व्यक्ति को देखकर उसकी दुख में कष्टों को समझना और समझने के साथ-साथ उसको किसी अन्य कार्य में सामर्थ्य बनाने की तीव्र इच्छा-शक्ति करूणा कहलाएगी।
एक लोक सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समाज के कमजोर वर्गों के लोगों के कष्टों एवं दुखों को समझ कर उन्हें दूर करने की चाहत रखे, अर्थात उनका उत्थान करके मुख्यधारा में लाए।
कमजोर वर्ग के प्रति करुणा की आवश्यकता एवं महत्व
कमजोर वर्ग का उत्थान कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए।
सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए
प्रशासनिक अधिकारियों और सामान्य लोगों के मध्य अलगाव की भावना को कम करने के लिए
प्रशासन में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए।
समय प्रतिबद्धता के साथ जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए।
सहिष्णुता (tolerance)
सहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ है-: सहन करना।
अर्थात् अपने से भिन्न मत, विचार, व्यवहार, सिद्धांत, धर्म आदि को सहन करने की योग्यता/क्षमता सहिष्णुता कहलाती है।
सकारात्मक अर्थ में सहिष्णुता का आशय है:- अपने मनोवृति के विरुद्ध दूसरों के मत,विचार, व्यवहार, सिद्धांत, धर्म आदि को स्वीकार करके उनका सम्मान करने की योग्यता/क्षमता से है।
जैसे:- हिन्दू धर्म का होते हुए भी मुश्लिम धर्म के आदर्शों का सम्मान करना।
भारत जैसे देश जहां पर विभिन्न जाति, धर्म ,भाषा ,संस्कृति के लोग रहते हैं, वहां वहां सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए सहिष्णुता का मूल्य होना आवश्यक है।
लोक सेवक के लिए सहिष्णुता
लोक सेवक के अंदर अपनी मनोवृति के विपरीत एवं विरोधी मतों,विचारों को भी सुनने, समझने ,उनको स्वीकार करने एवं तार्किक होने पर अपनी सहमति प्रकट करने की क्षमता या योग्यता होनी चाहिए। क्योंकि लोक सेवक किसी एक धर्म, जाति ,भाषा व संस्कृति का नहीं होता बल्कि समस्त जनता का होता है, जिसके अंतर्गत विभिन्न जाति, धर्म, भाषा ,संस्कृति के लोग शामिल होते हैं जिनकी अपने अलग-अलग मत एवं विचार हो सकते हैं। अतः एक लोक प्रशासन के अंदर सहिष्णुता का गुण होना चाहिए, ताकि सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा मिल सके।
सहिष्णुता के लाभ/आवश्यकता
सहिष्णुता द्वारा सामाजिक शांति सुनिश्चित होती है,क्योंकि सहिष्णुता से विभिन्न सामाजिक द्वेष जैसे- जातिवाद, क्षेत्रवाद ,संप्रदाय वाद की समाप्ति होती है।
सहिष्णुता से लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास होता है जैसे- निष्पक्षता ,न्यायवादिता, समानता।
सहिष्णुता प्रशासन के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने में सहायक है, क्योंकि जब प्रशासनिक अधिकारी सभी वर्ग के सभी मतों को सुनेंगे तो सभी जनता का प्रशासन के प्रति विश्वास होगा।
साक्षरता प्रशासन में वस्तुनिष्ठता एवं निष्पक्षता बढ़ाने में सहायक है।
सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है।
सहिष्णुता नैतिक प्रगति में सहायक है क्योंकि यदि एक व्यक्ति सहिष्णु तरीके से दूसरों के विचारों एवं मतों को स्वीकार ता है सम्मान करता है तो दूसरा व्यक्ति भी उस व्यक्ति के विचारों एवं मतों को स्वीकार करता है जिससे नैतिक प्रगति होती है।
लोक सेवा के प्रति समर्पण:-
समर्पण(dedication)-:
समर्पण का सामान्य अर्थ व्यक्ति की उस मन:स्थिति से है, जिसमें वह किसी कार्य से लगाव रखते हुए, उस कार्य को करने के प्रति पूर्णरूप से प्रतिबंध रहता है।
अर्थात् (निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए,)किसी कार्य को पूर्ण प्रतिबध तरीके से , लग्न के साथ, करने की मानसिकता समर्पण कहलाती है।
लोकसेवक का समर्पण:-
भले ही किसी लोकसेवक में लोक सेवक बनने के सभी गुण या योग्यताएं निहित हों, लेकिन जब तक कुछ लोग सेवक के अंदर लोक सेवा करने की प्रतिबद्ध मानसिकता नहीं होगी तब तक वह एक अच्छा नौकरशाह तो बन सकता है लेकिन एक अच्छा लोक सेवक नहीं बन सकता, अतः एक लोक सेवक के अंदर लोक सेवा के प्रति समर्पण का भाव होना आवश्यक है। अर्थात उसके अंदर यह भाव नहीं होना चाहिए कि हमें वेतन पाने के लिए नौकरी करनी है बल्कि उसके अंदर यह भाव होना चाहिए कि मुझे जनता की समस्याओं का समाधान कर उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है। भले ही मुझे इसके लिए तन ,मन, धन का त्याग क्यों ना करना पड़े।
किसी लोक सेवक के अंदर समर्पण की भावना निहित होने पर दिखाई देने वाले लक्षण;-
वह अपनी जिम्मेदारियों का समय के साथ निर्वहन करेगा।
वह अपने काम को 9:00 से 6:00 बजे तक की नौकरी समझकर नहीं करेगा बल्कि उत्साह पूर्वक समय के बाद भी करेगा।
वह वंचित वर्गों की सहायता करने पर गहरा संतोष महसूस करेगा।
वह जनता के साथ अपने बच्चों के समान ही व्यवहार करेगा, अर्थात जनता के साथ उसका व्यापार समानुभूति पूर्ण होगा।
उसे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त होगा।
प्रशासन में समर्पण का आवश्यकता/महत्व
प्रशासनिक अधिकारियों की कर्तव्य निष्ठा बढ़ाने के लिए
क्योंकि जब लोक सेवा के प्रति समर्पण का भाव होता है तो वह अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्ण तरीके से पालन करते हैं।
प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यकुशलता बढ़ाने में सहायक:-
क्योंकि जब प्रशासनिक अधिकारी लोक सेवा के प्रति समर्पित हो जाते हैं तो वह प्रशासन के कार्य को अपना कार्य समझकर कार्य करते हैं जिससे कार्य कुशलता बढ़ती है।
मानसिक संतुष्टि:-
हमें किसी भी कार्य में तभी संतुष्टि मिलती है जब हम उस कार्य के प्रति समर्पित है अतः उसी प्रकार लोक प्रशासकों को जनता के लिए कार्य करने पर तभी संतुष्टि मिलेगी जब भी लोक सेवा के प्रति समर्पित होंगे।
समयप्रतिबद्धता बढ़ाने में सहायक
लोकसेवा के प्रति समर्पण प्रशासनिक कार्यों की समय प्रतिबद्धता को बढ़ाता है अर्थात लोक सेवक अपना कार्य समय पर करते हैं। लेट लालफीताशाही पर रोक लगती है।
प्रशासन में जन सहयोग में बढ़ोतरी
जब प्रशासनिक अधिकारी जनता को मालिक समझकर उनकी सेवा का भाव रखते हैं तो जनता भी प्रशासन का सहयोग एवं समर्थन करती है।
आपसी सामंजस्य
लोक सेवा के प्रति समर्पित सभी प्रशासकों का एक ही लक्ष्य होता है जनसेवा इसलिए उनके अंदर इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए आपसी सामंजस्य रहता है।
अन्य योग्यताएं
अनामिकता:-
लोक सेवक को अपना नाम जाहिर किए बिना कार्य करना चाहिए। जैसे:- यदि किसी विकास खंड अधिकारी को सड़क बनवाने का कार्य दिया गया है, तो उसे यह नहीं कहना चाहिए कि मैंने सड़क बनवाई है।
सहयोग की भावना:-
एक लोक सेवक के अंदर मिलजुल कर ,कार्य को साझा करके करने की क्षमता होनी चाहिए।
साहस:-
लोक सेवक के अंदर विपरीत परिस्थिति में भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का साहस होना चाहिए।
आदर:-
लोक सेवक के अंदर दूसरों का आदर करने का गुण होना चाहिए, अर्थात सामने वाले के साथ विनम्रता से बात करना चाहिए।
रचनात्मकता:-
लोक सेवक को वर्तमान परिवेश के अनुसार किसी भी समस्या का समाधान या किसी भी कार्य को रचनात्मक तरीके से करना चाहिए।
उत्साह:-
एक लोक सेवक के अंदर सदैव अपने कार्य के प्रति उत्साह की भावना होनी चाहिए, वह बुजदिल नहीं होना चाहिए।
उत्कृष्टता का भाव:-
लोक सेवक के अंदर प्रत्येक कार्य को उत्कृष्ट तरीके से करने की भावना होनी चाहिए।
क्षमा:-
लोक सेवक के अंदर एक निश्चित नैतिक दायरे तक, अपने अधीनस्थों या जनता की गलतियों को माफ करने की क्षमता होनी चाहिए,
गोपनीयता:-
एक लोक सेवा के अंदर प्रशासनिक कार्यों को गोपनीय रखने का गुण होना चाहिए।